
ऊधमसिंहनगर उत्तराखंड की राजनीति में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी हमेशा से ताकत, धन और रणनीति का केंद्र रही है। पिछले 23 वर्षों से यह कुर्सी गंगवार परिवार के पास रही, जिसने सत्ता के गलियारों में अपनी गहरी पकड़ बनाई। परंतु इस बार हालात अलग हैं—भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर साफ संकेत दे दिया है कि वह अब इस परंपरा को तोड़ना चाहती है।
।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


राजनीतिक गणित
जिला पंचायत में कुल 35 सदस्य हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के पास 12-12 सदस्य हैं, जबकि 11 सदस्य निर्दलीय हैं। जीत के लिए 18 वोट चाहिए। खबरों के मुताबिक, गंगवार परिवार पहले ही 15 सदस्यों को अपने पाले में ले चुका है, और एक वोट उनका खुद का है। ऐसे में उन्हें सिर्फ दो और सदस्यों की जरूरत है, जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार बताए जा रहे हैं।
भाजपा का ‘चक्रव्यूह’
भाजपा ने गंगवार परिवार को दरकिनार कर अजय मौर्या को प्रत्याशी बनाया है। यह कदम चौंकाने वाला नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा चाहती है कि लंबे समय से जमे गंगवार परिवार का प्रभुत्व खत्म हो और पार्टी संगठन के प्रति वफादार चेहरा इस कुर्सी पर बैठे।
कांग्रेस की दुविधा
राज्य गठन के 25 साल बाद भी कांग्रेस आज उत्तराखंड की राजनीति में बैकफुट पर है—चाहे वह विधानसभा चुनाव हों, निकाय चुनाव या फिर पंचायत स्तर की राजनीति। ऊधमसिंहनगर में भी कांग्रेस की स्थिति अलग नहीं है। हालांकि गंगवार परिवार के पास कांग्रेस से समर्थन लेने का विकल्प खुला है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की ढुलमुल नीति और अंदरूनी गुटबाजी अक्सर ऐसे मौकों पर उसे ‘किंगमेकर’ बनने से रोक देती है।
धनबल बनाम सियासी चाल
जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में पैसे का खेल कोई नई बात नहीं है। गंगवार परिवार धनबल में अव्वल माना जाता है, लेकिन इस बार भाजपा सत्ता में है, और प्रशासनिक तंत्र पर उसकी पकड़ मजबूत है। ऐसे में ‘खरीद-फरोख्त’ की कोशिशें उल्टा असर भी डाल सकती हैं, जिससे गंगवार परिवार के 23 साल का साम्राज्य खतरे में पड़ सकता है।
जनता की नजर
राज्य गठन के बाद जनता हमेशा से बदलाव की उम्मीद करती रही है। एक ही परिवार का लंबे समय तक जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बने रहना लोकतांत्रिक दृष्टि से सवाल खड़े करता है। यही कारण है कि इस बार के चुनाव को लोग सिर्फ एक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि ऊधमसिंहनगर की सियासी परंपराओं को बदलने के अवसर के रूप में देख रहे हैं।
भाजपा के लिए यह चुनाव गंगवार युग को खत्म करने का मौका है, जबकि गंगवार परिवार के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई। कांग्रेस के लिए यह अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने का अवसर है—बशर्ते वह सही समय पर सही फैसला ले। लेकिन उत्तराखंड की राजनीति के अनुभव बताते हैं कि यहां अक्सर ‘वोट’ से ज्यादा ‘वोटर का भरोसा’ जीतना कठिन होता है, और यही असली परीक्षा होगी।
ऊधमसिंहनगर जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव: धनबल, तोड़फोड़ और उत्तराखंड की अवधारणा पर सवाल
उत्तराखंड राज्य गठन की मूल भावना साफ थी—ईमानदार, पारदर्शी और जनहितकारी राजनीति। लेकिन ऊधमसिंहनगर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव इस भावना के ठीक उलट दिशा में जाता दिख रहा है। यहां सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने का असली खेल धनबल, जोड़-तोड़ और गुटबाजी से तय होता है।
पिछले 23 वर्षों से गंगवार परिवार का दबदबा रहा, जो इस बार भाजपा के चक्रव्यूह में फंसा नजर आ रहा है। भाजपा ने अजय मौर्या को प्रत्याशी बनाकर साफ कर दिया कि वह बदलाव चाहती है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या बदलाव के नाम पर सिर्फ चेहरा बदलेगा या राजनीति की शैली भी?
यदि भाजपा का जिला पंचायत अध्यक्ष बनता है तो भी सत्ता समीकरण स्थायी नहीं रहेंगे। उधमसिंहनगर की सीट पर हमेशा तोड़फोड़ की संभावना बनी रहेगी, और मौका मिलते ही गंगवार परिवार वापसी कर सकता है। यहां सत्ता की कुर्सी स्थायित्व की जगह ‘राजनीतिक सौदेबाजी’ का केंद्र बन चुकी है।
यह स्थिति न सिर्फ ऊधमसिंहनगर बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए चिंता का विषय है। राज्य की मूल अवधारणा के विपरीत, राजनीति में सिद्धांत पीछे और पैसे का प्रभाव आगे आ चुका है—और जब तक यह प्रवृत्ति नहीं बदलेगी, तब तक चाहे जो भी जीते, असली हार जनता की ही होगी।

