
उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की विशेष सर्वे रिपोर्ट
लेखक — अवतार सिंह बिष्ट, संपादक एवं संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर
दो दशक बाद राज्य आंदोलनकारियों की नई उम्मीद?उत्तराखंड के निर्माण को आज पच्चीस वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन पच्चीस वर्षों में बहुत से मुख्यमंत्री आए और गए, कई ने वादे किए, कई ने ‘पर्वतीय राज्य की मूल अवधारणा’ का नाम लेकर जनभावनाओं से खेला। लेकिन लंबे समय बाद ऐसा पहला अवसर है जब उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारियों ने किसी मुख्यमंत्री के प्रति 90 प्रतिशत से अधिक स्तर पर भरोसा जताया है।
यह सर्वे रिपोर्ट हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स द्वारा राज्य के सभी जिलों में सक्रिय राज्य आंदोलनकारियों के साक्षात्कार, समूह चर्चा और व्यक्तिगत मुलाकातों पर आधारित है।
परिणाम स्पष्ट हैं — मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को राज्य आंदोलनकारियों ने “मूल अवधारणा के अनुरूप कार्य करने वाले प्रथम मुख्यमंत्री” के रूप में देखा है।
राज्य निर्माण की मूल अवधारणा क्या थी?राज्य निर्माण की भावना केवल नए सीमांकन या प्रशासनिक ढांचे की नहीं थी, बल्कि यह एक संवेदनशील सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था, जिसका लक्ष्य था —
- स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता,
- पलायन रोकने के लिए ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था,
- महिला सशक्तिकरण और स्थानीय संस्कृति का संरक्षण,
- पारदर्शी प्रशासन और भ्रष्टाचारमुक्त शासन,
- जनभागीदारी आधारित नीति-निर्माण।
आंदोलनकारियों का मानना है कि इन पांच सिद्धांतों में से चार पर मुख्यमंत्री धामी ने व्यावहारिक कदम उठाए हैं। विशेषकर, युवाओं के रोजगार, महिला सुरक्षा, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और पारदर्शी शासन के क्षेत्रों में राज्य आंदोलन की मूल भावना झलकने लगी है।

सर्वे की झलक: 90% आंदोलनकारियों का विश्वास धामी पर?हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स’ सर्वे में राज्य के कुल 13 जिलों से 220 प्रमुख राज्य आंदोलनकारियों की राय ली गई।
सर्वे का प्रश्न था — “क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कार्य राज्य निर्माण की मूल अवधारणा के अनुरूप है?”
परिणाम कुछ यूं रहे — श्रेणी समर्थन में (%) विरोध में (%) भाजपा समर्थक आंदोलनकारी 98% 2% निष्पक्ष या दलरहित आंदोलनकारी 87% 13% कांग्रेस से जुड़े आंदोलनकारी 42% 58% उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़े आंदोलनकारी 63% 37% कुल औसत 90% समर्थन में10% विरोध में
सर्वे से यह भी स्पष्ट हुआ कि राजनीतिक दल चाहे जो हो, राज्य आंदोलनकारियों के मन में धामी को लेकर “निष्ठा और अपेक्षा दोनों” हैं।
कुमाऊं से गढ़वाल तक सकारात्मक रुझान?रुद्रपुर, किच्छा, हल्द्वानी, खटीमा ,अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ से लेकर श्रीनगर, पौड़ी, उत्तरकाशी देहरादून खटीमा उधम सिंह नगर, नैनीताल, चमोली और टिहरी तक, सर्वे में एक समान स्वर सुनाई दिया —
“मुख्यमंत्री धामी में राज्य आंदोलन की तपस्या और युवाशक्ति दोनों दिखाई देती हैं।”
कुमाऊं क्षेत्र के आंदोलनकारियों का मानना है कि धामी की कार्यशैली में व्यवहारिकता और कर्मठता है। वहीं गढ़वाल क्षेत्र के वरिष्ठ आंदोलनकारियों ने कहा कि “धामी ने राज्य निर्माण के सपने को राजनीतिक भाषणों से आगे बढ़ाकर योजनाओं में रूपांतरित किया है।”
इस तरह 2027 के विधानसभा चुनाव में आंदोलनकारियों की यह एकजुटता भाजपा के लिए राजनीतिक पूंजी सिद्ध हो सकती है।
राज्य निर्माण आंदोलन की पीढ़ी और धामी का जुड़ाव?पुष्कर सिंह धामी स्वयं आंदोलनकारी परिवार से आते हैं। छात्र जीवन में वे उत्तराखंड छात्र संघर्ष वाहिनी से जुड़े रहे। यही कारण है कि राज्य आंदोलनकारी उन्हें “अपनों में से एक” मानते हैं।
उनकी नीतियों में आंदोलन की आत्मा झलकती है —
- “उत्तराखंड रोजगार गारंटी पोर्टल” से स्थानीय युवाओं को अवसर,
- “वोकल फॉर लोकल” से पहाड़ी उत्पादों को बाजार,
- “धामी दरबार” जैसी जनसुनवाई व्यवस्थाएं,
- और “एक जिला, दो उत्पाद” योजना के तहत क्षेत्रीय पहचान।
विपक्षी आंदोलनकारियों का मतभेद, पर ‘विचारधारा नहीं’ उद्देश्य पर?सर्वे के दौरान यह भी सामने आया कि जो राज्य आंदोलनकारी कांग्रेस या उक्रांद से जुड़े हैं, वे धामी सरकार के कार्यों से असहमति रखते हैं, परंतु उनकी आलोचना राजनीतिक रेखा तक सीमित है।
अधिकांश ने स्वीकार किया कि —
“धामी में ईमानदारी है, वे दूसरों की तरह घोषणाओं तक सीमित नहीं रहते।”
कुछ कांग्रेस समर्थक आंदोलनकारियों ने कहा कि “यदि राज्य की मूल अवधारणा को कोई पुनर्जीवित कर सकता है, तो वह धामी जैसा कर्मठ मुख्यमंत्री ही कर सकता है — बशर्ते वह राजनीतिक दबावों से मुक्त होकर निर्णय ले।”
हिंदुत्व और ‘मूल अवधारणा’ का संतुलन?मुख्यमंत्री धामी को प्रायः हिंदुत्व के चेहरे के रूप में देखा जाता है, परंतु आंदोलनकारियों का मत है कि उन्होंने सांस्कृतिक अस्मिता को विकास के साथ जोड़ा है।
चाहे चारधाम यात्रा के सुगमीकरण की बात हो, सनातन संस्कृति आधारित पर्यटन मॉडल हो या महिलाओं के मंदिर प्रवेश सुरक्षा कानून — इन सबमें सांस्कृतिक गौरव और प्रशासनिक संतुलन दोनों दिखाई देते हैं।
एक वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी, पौड़ी गढ़वाल से विशंबर खगरियाल के शब्दों में —
“धामी ने हिंदुत्व को उत्तराखंडी अस्मिता से जोड़ा है, न कि राजनीति से।”
स्थापना दिवस पर उम्मीदों की नई किरण
राज्य आंदोलनकारियों का यह समर्थन मुख्यमंत्री धामी के लिए केवल एक सर्वे परिणाम नहीं, बल्कि नैतिक जनादेश है।
यह समर्थन संकेत देता है कि—
- राज्य आंदोलन की आत्मा अभी जीवित है।
- जनसंगठन और सरकार के बीच संवाद संभव है।
- युवा पीढ़ी पुनः राज्य की दिशा तय करने को तैयार है।
राज्य स्थापना दिवस पर यह भावना और प्रबल हो जाती है कि उत्तराखंड अब ‘अवधारणा से उपलब्धि’ की ओर बढ़ रहा है।
अब भी बाकी हैं कुछ अपूर्ण वादे
सर्वे में आंदोलनकारियों ने कुछ सुझाव और शिकायतें भी दीं—
- राज्य आंदोलनकारी पेंशन अभी सभी पात्रों तक नहीं पहुंची है।
- राज्य आंदोलनकारियों का पहचान-पत्र प्रणाली में पारदर्शिता की कमी है।
- स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में 80% आरक्षण की मांग अधूरी है।
- ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में प्रयास और तेज करने की आवश्यकता है।
इन बिंदुओं पर आंदोलनकारियों का कहना था कि “यदि मुख्यमंत्री धामी इन मुद्दों पर ठोस निर्णय लेते हैं, तो वे राज्य निर्माण के असली नायक कहलाएंगे।”
2027 की राह और जनविश्वास का आधार?यदि मुख्यमंत्री धामी 2027 तक इसी जनआस्था को बनाए रखते हैं, तो उत्तराखंड में पहली बार कोई मुख्यमंत्री दो बार से अधिक सत्ता में लौट सकता है।
कुमाऊं क्षेत्र से उनके प्रति रुझान अत्यधिक सकारात्मक है और गढ़वाल में भी उनके नेतृत्व को स्थिरता का प्रतीक माना जा रहा है।
राज्य आंदोलनकारी धामी को “युवाओं के सपनों का प्रतिनिधि” और “आंदोलन की संवेदना का राजनैतिक चेहरा” कह रहे हैं।
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स विशेष सर्वे रिपोर्ट से — राज्य आंदोलनकारियों की सामूहिक मांग?उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर आयोजित सर्वे में शामिल सभी प्रमुख राज्य आंदोलनकारियों ने एक स्वर में मांग उठाई है कि जिस प्रकार लोकतंत्र सेनानियों को ₹20,000 मासिक सम्मान पेंशन दी जाती है, उसी तर्ज पर राज्य आंदोलनकारियों को भी ₹20,000 मासिक पेंशन प्रदान की जाए।राज्य निर्माण के लिए जेल गए, लाठियां खाईं और बलिदान दिए आंदोलनकारियों का कहना है कि यह केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि सम्मान की पहचान है।
सर्वे में शामिल आंदोलनकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य की मूल अवधारणा जीवित हुई है, अब समय है कि उन लोगों को भी समान मान्यता दी जाए जिन्होंने इस राज्य के निर्माण की नींव रखी थी“राज्य आंदोलनकारी सिर्फ इतिहास नहीं, उत्तराखंड की आत्मा हैं — और आत्मा को सम्मान मिलना ही सच्चा विकास है।”
उत्तराखंड फिर से ‘विचार’ बन रहा है, सिर्फ राज्य नहीं?पच्चीस वर्ष बाद जब आंदोलनकारी फिर से एक मुख्यमंत्री पर भरोसा जता रहे हैं, तो यह केवल किसी व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता नहीं, बल्कि राज्य निर्माण की पुनः चेतना है।
मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड अब केवल ‘प्रशासनिक इकाई’ नहीं, बल्कि एक विचार, एक जनभावना और एक नवचेतना बनता दिखाई दे रहा है।
राज्य आंदोलनकारियों के इस सर्वे से यह संदेश निकलता है —
“उत्तराखंड की आत्मा जिंदा है, और जब तक आंदोलनकारी सचेत हैं, तब तक राज्य की दिशा सही रहेगी।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस विश्वास के केंद्र बन चुके हैं —
नए उत्तराखंड की यात्रा में, आंदोलन की ज्योति अब उनके हाथों में है।
🖋️ लेखक:
अवतार सिंह बिष्ट
संपादक एवं संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
अध्यक्ष, उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद
रुद्रपुर, उत्तराखंड




