
यह पर्व अनंत चतुर्दशी तक चलता है, जो 6 सितंबर 2025 को समाप्त होगा।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है, इसलिए हर शुभ काम से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होती है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, पूजा के समय यदि कुछ जरूरी नियमों का पालन न किया जाए तो उसका फल सही रूप में नहीं मिलता। आइए जानते हैं, गणेश स्थापना और पूजा के दौरान किन 7 गलतियों से बचना चाहिए ताकि आपकी पूजा सफल और फलदायक हो सके।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
मूर्ति का मुख गलत दिशा में रखना
गणेश जी की मूर्ति स्थापना के समय इसका मुख हमेशा उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इस दिशा को सबसे शुभ माना जाता है क्योंकि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। अगर मूर्ति का मुख किसी अनिष्ट दिशा की ओर रखा जाए तो यह घर में अशांति और परेशानी ला सकता है।
मूर्ति को सीधे जमीन या फर्श पर रखना
गणेश जी की मूर्ति को सीधे फर्श या जमीन पर स्थापित करना शुभ नहीं माना जाता। ऐसा करने से मूर्ति की ऊर्जा प्रभावित होती है। मूर्ति को लकड़ी की चौकी, लाल या पीले रंग के साफ वस्त्र पर स्थापित करें। यह परंपरा पूजा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और धार्मिक नियमों के अनुरूप होती है। इससे पूजा की सफलता सुनिश्चित होती है।
एक से अधिक मूर्तियों की स्थापना करना
कई बार लोग घर या पंडाल में एक से अधिक गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना कर देते हैं, जो उचित नहीं है। एक ही स्थान पर एक मूर्ति की स्थापना करना शुभ होता है। एक से ज्यादा मूर्तियां रखने से पूजा का प्रभाव कमजोर हो जाता है और श्रद्धालुओं के मन में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। यह पूजा के फल को भी कम कर सकता है।
अधूरी या खंडित मूर्ति का प्रयोग
पूजा के लिए हमेशा पूरी, सुन्दर और ठीक स्थिति में मौजूद मूर्ति का ही चयन करें। टूटी-फूटी या अधूरी मूर्ति का उपयोग करना अशुभ माना जाता है। ऐसी मूर्ति नकारात्मक ऊर्जा ला सकती है और पूजा का प्रभाव भी कम हो सकता है। इसलिए मूर्ति की दशा ठीक होनी चाहिए और उसकी शुद्धि का भी ध्यान रखें।
तुलसी और केतकी के फूल चढ़ाना वर्जित
गणेश जी को तुलसी और केतकी के फूल अर्पित करना मना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये फूल उनके लिए अशुभ माने जाते हैं। गणेश जी को दूर्वा घास, लाल रंग के फूल (जैसे गुड़हल के फूल) और मोदक जैसे प्रसाद अर्पित करना शुभ होता है। इससे उनकी पूजा में खास मान्यता मिलती है और उनकी कृपा प्राप्त होती है।
दक्षिणावर्ती शंख बजाना नहीं चाहिए
पूजा के दौरान शंख का बजाना शुभ माना जाता है, लेकिन गणेश पूजा में दक्षिणावर्ती शंख बजाना वर्जित है। दक्षिणावर्ती शंख बजाने से नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं और पूजा का शुभ फल प्रभावित होता है। इसलिए पूजा में हमेशा सामान्य या उत्तरावर्ती शंख का ही प्रयोग करें।
विसर्जन के समय नियमों का पालन न करना
गणेश चतुर्थी की पूजा का समापन विसर्जन से होता है, जिसे पूरी विधि-विधान और मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए। बिना पूजा-पाठ के, जल्दबाजी में या नियमों की अनदेखी कर विसर्जन करना अशुभ माना जाता है। सही मंत्रों के साथ श्रद्धा से विसर्जन करने से गणपति की कृपा बनी रहती है और आने वाले समय में सुख-समृद्धि आती है।

