दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का पर्व आज पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल और बरसाना जैसे ब्रज क्षेत्र में इस दिन का अत्यधिक धार्मिक महत्व है.

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इस पर्व पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट का भोग अर्पित किया जाता है.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्रदेव के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी. तभी से इस दिन को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है.

गोवर्धन पूजा 2025 का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि 21 अक्टूबर की शाम 5:54 बजे से शुरू होकर 22 अक्टूबर की रात 8:16 बजे तक रहेगी. इस पावन अवसर पर गोवर्धन पूजन के लिए तीन विशेष मुहूर्त निर्धारित हैं:-

  • प्रथम मुहूर्त: सुबह 6:26 से 8:42 तक
  • द्वितीय मुहूर्त: दोपहर 3:29 से शाम 5:44 तक
  • तृतीय मुहूर्त: शाम 5:44 से 6:10 तक
  • श्रद्धालुओं को इन शुभ समयों में पूजन कर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने की सलाह दी जाती है.

गोवर्धन पूजा की विधि

गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः स्नान के पश्चात घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है. इसके चारों ओर छोटे-छोटे ग्वाल, गौएं और वृक्षों की सजावट की जाती है. पर्वत के मध्य में श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उन्हें अन्नकूट का भोग अर्पित किया जाता है.

इस भोग में गेहूं, चावल, बेसन और विविध पत्तेदार सब्जियों से बने 56 प्रकार के व्यंजन सम्मिलित होते हैं. पूजा के बाद व्रत कथा सुनने और प्रसाद वितरण की परंपरा निभाई जाती है.

हिंदू धर्म में दिवाली के ठीक बाद की जाने वाली गोवर्धन पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. यह पूजा पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण और उनके प्रतीक माने जाने वाले गिरिराज यानि गोवर्धन महाराज को समर्पित होती है.

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के घमंड को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था. जब इंद्रदेव ने गोकुल पर मूसलधार वर्षा करके वहां के लोगों को दंडित करना चाहा, तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को आश्रय देने के लिए सात दिन तक पर्वत को उठाए रखा.

इंद्रदेव को जब अपनी गलती का एहसास हुआ, तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी. इसके बाद श्रीकृष्ण ने स्वयं गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा आरंभ की, जो आज तक चली आ रही है.

ब्रजभूमि में उत्सव का विशेष रंग

मथुरा-वृंदावन सहित सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है. यहां के मंदिरों में भव्य अन्नकूट सजाया जाता है और हजारों श्रद्धालु दर्शन हेतु पहुंचते हैं. श्रद्धालु ‘गिरिराज महाराज की जय’ के उद्घोष के साथ परिक्रमा करते हैं और गोवर्धन पर्वत की महिमा का गुणगान करते हैं.

जाती है और भगवान श्रीकृष्ण को 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है. आज के दिन किस राशि के व्यक्ति को गोवर्धन या फिर कहें अन्नकूट की पूजा किस मंत्र और भोग को 


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