एक पीड़िता ने कोर्ट पहुंचकर गवाही दी। सुरक्षा में लाकर यहां पेश किया। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 20 मार्च की तिथि निर्धारित कर दी।
पृथक उत्तराखंड गठन के लिए दो अक्टूबर 1994 को हुए आंदोलन के दौरान हंगामा हुआ था। छपार थाना क्षेत्र के रामपुर तिराहा पर हुए हंगामे के दौरान पुलिस फायरिंग में सात आंदोलनकारी मारे गए थे, जबकि कई महिला आंदोलनकारियों से दुष्कर्म और छेड़छाड़ की घटना को अंजाम देने के आरोप लगे थे। सीबीआइ ने दुष्कर्म के दो मामलों की विवेचना कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। दोनों मामलों की सुनवाई एडीजे शक्ति सिंह की कोर्ट में चल रही है। एडीजीसी परविंदर सिंह ने बताया कि सरकार बनाम राधामोहन द्विवेदी मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई। बताया कि मंगलवार को सीबीआइ ने कोर्ट में एक पीड़िता को चमौली से लाकर पेश किया। बताया कि पीड़िता ने मामले में अपने बयान दर्ज कराए। कोर्ट में सरकार बनाम मिलाप सिंह मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है। उक्त मामले में कोर्ट ने 15 मार्च को फैसला सुनाने की तिथि घोषित की है।
पीड़िताओं के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म का आरोप है। शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि शुक्रवार को मिलाप सिंह पत्रावली में सुनवाई पूरी हो गई। आरोपी गाजियाबाद पीएसी में तैनात थे। आंदोलनकारियों को रोकने के लिए उनकी ड्यूटी रामपुर तिराहा पर लगाई गई थी।
सीबीआई ने 22 गवाह पेश किए गए। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-सात के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की। अदालत ने फैसले के लिए 15 मार्च की तिथि तय कर दी है। दोनों आरोपियों पर पीड़िताओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज है।
यह था मामला
एक अक्तूबर 1994 को अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। रात में रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। आंदोलनकारी नहीं माने तो पुलिसकर्मियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने मामले की जांच के बाद पुलिसकर्मियों पर मुकदमे दर्ज कराए थे। चार पत्रावलियों पर मुजफ्फरनगर में सुनवाई चल रही है।
मुजफ्फरनगर के रामपुर-तिराहा कांड में गवाहों से जिरह:आंदोलनकारी 13 महिलाओं ने लगाए थे पुलिसकर्मियों पर संगीन आरोप, तत्कालीन एसएचओ सहित 27 आरोपित
एक अक्तूबर, 1994 को अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। देर रात रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। आंदोलनकारी नहीं माने तो पुलिसकर्मियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। सीबीआई ने मामले की जांच की और पुलिस पार्टी और अधिकारियों पर मुकदमे दर्ज कराए थे। जिनका ट्रायल चल रहा है।
रामपुर तिराहा कांड: ऐसा काला दिन जिसे यादकर आज भी सहम जाते हैं लोग
रामपुर तिराहा कांड को लेकर राजनीतिक तौर पर पार्टियां एक-दूसरे पर तक आरोप लगाती रही हैं। 2 अक्टूबर 1994 का दिन राज्य आंदोलकारियों के लिए काला अध्याय साबित हुआ था।
मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर 1994 के दिन में जो हुआ उसके घाव आज भी लोगों को सन्न कर देते हैं। 1 अक्टूबर की रात में दमन और अमानवीयता के बीच ऐसी बीती कि दो दिन इतिहास में काले अध्याय के रूप में छप गए। यह वो दौर था जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य की मांग कर रहे थे। उस वक्त ‘बाड़ी-मडुआ खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे’ जैसे नारे हवा में तैर रहे थे।
राज्य में आंदोलन की आग तेज हुई और पहाड़ ने मुझे वोट नहीं दिया कहने वाले नेता कुछ ही पल में जनता के लिए खलनायक बन गए। आंदोलन को दिल्ली तक ले जाने के लिए 1 अक्टूबर को पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली की तरफ रवाना हुए। पहले इन्हें रुड़की के नारसन बॉर्डर पर रोका गया लेकिन जत्था आगे बढ़ गया फिर आंदोलनकारियों को तैयारी रामपुर तिराहे पर रोकने की तैयारी की गई।