पुरी की जगन्नाथ यात्रा भारत की सबसे पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक यात्राओं में गिनी जाती है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है और दशमी तिथि तक चलती है।

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इस वर्ष यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक संपन्न होगी।

श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि इस यात्रा में भाग लेना और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करना जीवन के कष्टों को दूर करता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस यात्रा में सच्चे मन से शामिल होता है, उसे न केवल शांति और सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि मृत्यु के बाद मोक्ष भी मिलता है। जगन्नाथ मंदिर से कई रोचक कथाएं और परम्पराएं जुड़ी हुई हैं। इसी परम्परा में मंदिर के शीर्ष पर लगी हुई ध्वजा को बदलना भी शामिल है। जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि श्रद्धा, रहस्य और भक्ति से जुड़ी हुई एक महान परंपरा है। आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

प्रतिदिन क्यों बदली जाती है ध्वजा?
पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर पर हर दिन शाम को ध्वजा बदली जाती है। यह कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक धार्मिक अनिवार्यता मानी जाती है। पौराणिक मान्यता है कि यदि किसी दिन ध्वजा नहीं बदली गई, तो मंदिर 18 वर्षों तक स्वतः बंद हो जाएगा। इस मान्यता के पीछे यह विश्वास छिपा है कि भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति और उनकी कृपा ध्वजा के माध्यम से आकाश की ओर फैलती है। यदि यह ध्वजा पुरानी, फटी या अनुपस्थित हो जाए, तो वह दिव्य ऊर्जा बाधित हो जाती है। इसलिए, हर दिन सूर्यास्त से पूर्व इसे बदला जाना आवश्यक है।

ध्वजा की दिशा और प्राकृतिक रहस्य
श्री जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा अपने आप में एक अनोखा रहस्य समेटे हुए है यह सदैव हवा की दिशा के विपरीत लहराती है। सामान्यतः समुद्र तटीय क्षेत्रों में हवा समुद्र से भूमि की ओर बहती है, लेकिन पुरी में यह नियम उलट जाता है। यहाँ हवा भूमि से समुद्र की ओर बहती है। अचरज की बात यह है कि मंदिर की ध्वजा इन प्राकृतिक हवाओं की विपरीत दिशा में फहराती है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अब तक समझ नहीं आया है। यह रहस्य आज तक विज्ञान के लिए चुनौती है, लेकिन भक्तों के लिए यह भगवान जगन्नाथ की अलौकिक शक्ति का प्रमाण है।

सेवा की 800 वर्षों पुरानी परंपरा
ध्वजा को बदलने का कार्य किसी साधारण व्यक्ति का नहीं, बल्कि पुरी के चोला परिवार का विशेष उत्तरदायित्व है। यह परिवार पिछले 800 वर्षों से यह सेवा लगातार निभा रहा है। इस सेवा को कोई आम धार्मिक कर्तव्य नहीं माना जाता, बल्कि यह भगवान के प्रति समर्पण, साहस और निष्कलंक परंपरा का प्रतीक है। मंदिर की शिखर तक चढ़कर, बिना किसी सुरक्षा उपकरण या मशीन के, प्रतिदिन सैकड़ों फीट ऊंचाई पर ध्वजा को चढ़ाना अत्यंत कठिन कार्य है। इस जोखिम भरे सेवा को यह परिवार श्रद्धा से निभाता है, जिससे यह परंपरा आज भी जीवित है।

भगवान का स्वप्न और परंपरा की उत्पत्ति
ध्वजा को प्रतिदिन बदलने की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान जगन्नाथ ने मंदिर के सेवकों को स्वप्न में दर्शन दिए और संकेत दिया कि मंदिर पर लगी उनकी ध्वजा पुरानी और फटी हुई है। जब अगली सुबह सेवकों ने ध्यान दिया, तो वास्तव में ध्वजा जीर्ण अवस्था में थी। यह घटना भगवान की ओर से चेतावनी मानी गई और तभी से यह निर्णय लिया गया कि अब से प्रतिदिन नई ध्वजा अर्पित की जाएगी। इस तरह यह परंपरा आरंभ हुई, जो आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है।

ध्वजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
ध्वजा को केवल एक प्रतीकात्मक झंडा नहीं, बल्कि भगवान की जीवंत उपस्थिति का संकेत माना जाता है। यह मंदिर के शिखर पर फहराते हुए न केवल आकाश की ओर भगवान की सत्ता का संदेश देती है, बल्कि भक्तों को दूर से दर्शन का भी अवसर प्रदान करती है। ऐसी मान्यता है कि पुरानी ध्वजा नकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेती है। जब इसे हटाकर नई ध्वजा स्थापित की जाती है, तो वातावरण में सकारात्मकता, दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। ध्वजा में भगवान का तेज, बल और आशीर्वाद समाहित माना जाता है।

ध्वजा निर्माण और अर्पण की प्रक्रिया
प्रतिदिन जो नई ध्वजा अर्पित की जाती है, वह विशेष रूप से तैयार की जाती है। यह ध्वजा लगभग 20 फीट लंबी त्रिकोणीय आकृति की होती है, जिस पर विशेष धार्मिक रंग और चिन्ह अंकित होते हैं। भक्तजन भी अकसर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु भगवान को ध्वजा अर्पण करते हैं। ऐसी ध्वजाएं मंदिर के सेवकों को दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन शिखर पर चढ़ाया जाता है।
श्री जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा दूर से ही दिखाई देती है। इसे देखने मात्र से भक्तों को पुण्य लाभ प्राप्त होता है। कई श्रद्धालु केवल ध्वजा के दर्शन के लिए ही मंदिर परिसर में आते हैं, क्योंकि इसे देखने से भगवान के दर्शन जैसा ही फल मिलता है।
ध्वजा की उपस्थिति बताती है कि भगवान मंदिर में विराजमान हैं, और उनके आशीर्वाद की ऊर्जा संपूर्ण दिशा में फैल रही है।


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