भगवान जगन्नाथ का स्वरूप बेहद मनमोहक है. उनकी छवि जो भी देखा है देखता ही रह जाता है. शरीर पर हाथ पैर अधूरे हैं. आंखें हैं पर पलके नहीं हैं. भगवान की यह मूर्ति साधारण नहीं है.

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आश्चर्य चकित कर देने वाली यह मूर्ति भक्तों को अपनी ओर खींच लेती है. लेकिन भगवान की ऐसी छवि क्यों. भगवान की इतनी बड़ी, चौड़ी और गोल आंखें क्यों. आज हम इस लेख में उसी का जवाब देंगे.

भगवान जगन्नाथ का स्वरूप और उनके भाव पुरी में हर कोई जानता है. हर किसी के पास भगवान से जुड़ा कोई ना कोई किस्सा है.उनके पास उनके रूप और उनके इस अद्भुत मूर्ति के कई रहस्य हैं. उसी में से एक रहस्य है उनकी बड़ी चौड़ी आंखें. तो चलिए जानते हैं क्यों है उनकी बड़ी आंखें.

भगवान जगन्नाथ की बड़ी बड़ी आंखों का राज

इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. माना जाता है यह कथा तब की है जब भगवान द्वारका में वास कर रहे थे. इस समय एक दिन बलराम की माता रोहिणी द्वारका की रानियां को कृष्ण और बलराम के बालपन की कहानी सुनाने लगीं और उन्होंने सुभद्रा से वहां दरवाजे पर खड़े रहने को कहा. सुभद्रा वृंदावन की रासलीला में इतनी खो गई कि विस्मय से उनकी आंखें चौड़ी होने लगी और वो देखती क्या हैं कि भगवान श्री कृष्ण और बलराम दोनों उनके बराबर आकर खड़े हो गए और वह भी उस कथा में खो गए. तीनों भाई बहन विस्मय से भर उठे और उनकी आंखें फैल गईं. इस समय नारद मुनि वहां पहुंचे और उन्होंने तीनों भाई बहनों का यह रूप देखकर कहा कि मैं प्रार्थना करता हूं कि यही रूप भक्तों को भी देखने को मिले. कहा जाता है इसीलिए जब भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाई गई तो यह स्वरूप उभरकर सामने आया, जिसके दर्शन आज भी भक्त कर रहे हैं.

भक्तों के भाव से जुड़ जाते हैं भगवान

वही भगवान की गोल बड़ी आंखों के पीछे एक और कहानी छुपी हुई है. कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ जब उड़ीसा के पुरी में राजा इंद्रद्युम्न के राज्य में प्रकट हुए तो भक्त उन्हें देखते ही रह गए भक्तों की आंखें फटी की फटी रह गईं. उनके रूप के दर्शन करके सब की आंखें फैल गई. भगवान ने भक्तों की यह श्रद्धा देखी और भगवान ने भी अपनी आंखें वैसे ही विस्मय भाव में चौड़ी कर लीं. कहा जाता है कि जगन्नाथ अपने भक्तों की सारी बातें सुनते हैं और उनकी भक्ति में भाव विभोर हो जाते हैं. उनकी भावना का यही रूप भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भी देखने को मिलता है.

भगवान जगन्नाथ से जुड़े ना जाने कितने किस्से और कहानी पुरी में बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं. सभी भगवान जगन्नाथ से जुड़ी कहानी बताते हैं और उन पर आस्था और विश्वास भी रखते हैं.

वैसे तो इस मंदिर से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में लोगों को नहीं पता है लेकिन इस लेख में हम आपको बताते हैं जगन्नाथ मंदिर के 4 दरवाजों के बारे में. जगन्नाथ मंदिर के 4 द्वार आज भी रहस्यों से भरे हैं. आइए जानते हैं जगन्नाथ मंदिर में चार दरवाजों का महत्व और रहस्य.

जगन्नाथ पुरी के 4 दरवाजे कौन से हैं?

पुरी जगन्नाथ मंदिर के 4 मुख्य द्वार भी हैं, जिन्हें बहुत रहस्यमयी माना जाता है. इस मंदिर के ये चारों दरवाजे 4 अलग-अलग दिशाओं में स्थित हैं. इन चारों दरवाजों को चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग) और धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है.

सिंह द्वार:- यह द्वार जगन्नाथ मंदिर का पूर्वी द्वार है और इसे मुख्य प्रवेश द्वार माना जाता है. इसी द्वार से श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं. सिंह द्वार का प्रतीक शेर है और इसे मोक्ष का द्वार कहा जाता है.

अश्व द्वार:- यह द्वार मंदिर का दक्षिणी द्वार है और इसका प्रतीक घोड़ा है. धार्मिक मान्यताओं में इसे विजय का द्वार भी माना जाता है. कहते हैं कि प्राचीन समय में योद्धा इस द्वार का प्रयोग जीत की कामना के लिए करते थे.

व्याघ्र द्वार:- यह द्वार जगन्नाथ मंदिर का पश्चिमी द्वार है और इसका प्रतीक बाघ है. यह द्वार धर्म और इच्छा का प्रतीक माना जाता है. व्याघ्र द्वार नरसिंहा भगवान को भी समर्पित माना जाता है.

हस्ति द्वार:- यह द्वार पुरी मंदिर का उत्तरी द्वार है और इसका प्रतीक हाथी है. इस द्वार पर भगवान गणेश विराजमान हैं. मान्यताओं के अनुसार, यह समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है.

शहर में एक निकली एक साथ दो रथ यात्रा से नए,पुराने शहर में जगन्नाथपुरी जैसा दृश्य नजर आया।

कृषि उपज मंडी चौराहा से निकली इस्कान मंदिर की रथ यात्रा में भगवान बलभद्र, सुभद्रा व जगन्नाथ अलग-अलग रथ पर सवार थे। राज्यसभा सदस्य संत बालयोगी उमेशनाथ महाराज, निगम सभापति कलावती यादव ने भगवान की पूजा अर्चना कर सोने की झाड़ू से मार्ग की सफाई कर यात्रा का शुभारंभ किया। पीआरओ राघव पंडित दास प्रभु ने बताया इसके बाद झांझ, डमरू की मंगल ध्वनि के साथ भाव विभोर भक्त रस्सियों के सहारे भगवान जगन्नाथ का रथ खींचते हुए कालिदास अकादमी में बसी गुंडिचा नगरी लेकर पहुंचे।

धर्म, संस्कृति का रंग जमा

किलो मीटर लंबे यात्रा मार्ग पर पांच घंटे तक भक्ति का उल्लास छाया रहा। आह्लादित भक्त हरे रामा, हरे कृष्णा महामंत्र पर नृत्य करते हुए निकले। भगवान राधा, कृष्ण के रूप में युवतियां आस्था का केंद्र रही। जनजातीय कलाकारों ने लोकसंस्कृति की छटा बिखेरी।

खाती समाज की रथ यात्रा…देशभर से पहुंचे समाजजन

कार्तिक चौक स्थित जगदीश मंदिर से निकली रथ यात्रा में देशभर से खाती समाजजन शामिल हुए। सुबह अभिषेक,पूजन के बाद भगवान बलभद्र, सुभद्रा व जगन्नाथ को रथ में विराजित किया गया। पश्चात पारंपरिक यात्रा का शुभारंभ हुआ। पुराने शहर के प्रमुख मार्गों से भ्रमण के पश्चात यात्रा पुन: जगदीश मंदिर पहुंचकर संपन्न हुई।


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