संपादकीय “खेल परिसरों का नव नामकरण: राज्य आंदोलन की भावना को मिला सम्मान”नामों में छिपा है सांस्कृतिक संदेश उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद उत्तराखंड

Spread the love

रुद्रउत्तराखंड राज्य की परिकल्पना केवल एक भौगोलिक सीमांकन नहीं था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक चेतना का उदय था — जहां पहाड़ की आत्मा को पहचान, सम्मान और आत्मनिर्भरता मिले। राज्य निर्माण के 25 वर्षों बाद जब सरकार खेल परिसरों के नाम परिवर्तन की घोषणा करती है, तो यह एक प्रशासनिक निर्णय भर नहीं, बल्कि आंदोलन की चेतना को संस्थागत स्वरूप देने का अभिनव प्रयास है।

कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या द्वारा रजत जयंती खेल परिसर (देहरादून), शिवालिक खेल परिसर (रुद्रपुर), योगस्थली खेल परिसर (हरिद्वार) और मानसखंड खेल परिसर (हल्द्वानी) जैसे नामों की घोषणा करना, उन असंख्य राज्य आंदोलनकारियों को आत्मिक श्रद्धांजलि है, जिन्होंने अपने खून-पसीने से इस राज्य की नींव रखी थी।


नामों में छिपा है सांस्कृतिक संदेश

इन नामों को केवल ‘ब्रांडिंग’ मानना एक भूल होगी। यह नामकरण इतिहास, परंपरा, भूगोल और आध्यात्म का समन्वय है:

  • रजत जयंती खेल परिसर: यह केवल 25 वर्षों का सूचक नहीं, बल्कि यह स्मृति का स्तम्भ है, जो हमें आंदोलन के संघर्ष, बलिदान और उस लोकभावना की याद दिलाता है जिसने उत्तराखंड राज्य को जन्म दिया।
  • शिवालिक खेल परिसर: शिवालिक की गोद में बसे तराई क्षेत्र को यह नाम देना उस भू-भाग को पहाड़ी अस्मिता से जोड़ता है, जिसे अक्सर विकास की दौड़ में हाशिए पर रखा गया।
  • योगस्थली खेल परिसर: हरिद्वार की तपोभूमि में स्थापित खेल परिसरों को यह नाम देना भारतीय ज्ञान परंपरा और शारीरिक स्फूर्ति के योग को जोड़ने का प्रतीक है।
  • मानसखंड खेल परिसर: कुमाऊं क्षेत्र के लिए ‘मानसखंड’ शब्द का प्रयोग उस प्राचीन पौराणिक गरिमा की पुनर्स्थापना है, जिसे अक्सर शासन की योजनाओं में उपेक्षित रखा गया।
  • उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी परिषद की भूमिका

राज्य निर्माण के बाद यह पहला अवसर है जब सरकार ने किसी निर्णय में राज्य आंदोलन की भावना और जनभावनाओं को सम्मानपूर्वक समाहित किया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी परिषद पिछले दो दशकों से इस बात की माँग कर रही थी कि राज्य के संस्थानों, योजनाओं, खेल परिसरों और सांस्कृतिक संस्थाओं का नाम उत्तराखंडी अस्मिता से जुड़ा होना चाहिए। इस नाम परिवर्तन को केवल सरकारी अधिसूचना नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना की पुनर्जागृति के रूप में देखा जाना चाहिए।


जनभावनाओं में हर्ष की लहर

चाहे वह रुद्रपुर के मनोज सरकार स्टेडियम के खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया हो, या हरिद्वार की हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के क्षेत्रीय गौरव की अनुभूति — इस निर्णय ने हर खिलाड़ी, कोच और खेल प्रेमी के भीतर आत्मगौरव की भावना को जागृत किया है।

इन नामों ने खिलाड़ियों को यह संदेश दिया है कि वे केवल मैदान पर भाग नहीं रहे, बल्कि उत्तराखंड की परंपरा और पहचान को आगे बढ़ा रहे हैं।


राजनीतिक निर्णय नहीं, सांस्कृतिक पुनर्जागरण

यह निर्णय सत्ता की राजनीति से परे है। जब सरकार राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम का नाम रजत जयंती खेल परिसर रखती है, तो यह ऐतिहासिक न्याय है। यह उन हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो खेल के माध्यम से उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गौरवान्वित कर रहे हैं।

यह नामकरण धरोहरों के पुनर्निर्माण जैसा है — जो राजनीति से परे जाकर उत्तराखंड की आत्मा को संजोता है।


उत्तराखंड की अस्मिता का पुनर्सृजन

उत्तराखंड की भूमि सदियों से आध्यात्मिकता, प्रकृति और वीरता की प्रतीक रही है। चाहे बद्री-केदार की धार्मिकता हो, चिपको आंदोलन का पर्यावरणीय चेतावनी हो या राज्य आंदोलन का लोकतांत्रिक संघर्ष — हर मोड़ पर उत्तराखंड ने भारत को नई दिशा दी है।

इन नामों के माध्यम से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह बता सकेंगे कि खेल के मैदान भी इतिहास और संस्कृति के संवाहक होते हैं।


अन्य राज्यों से तुलना

उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में अनेक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का नामकरण वहाँ के महान विभूतियों और सांस्कृतिक प्रतीकों के नाम पर किया गया है। उत्तराखंड देर से सही, पर अब सही दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

भविष्य की अपेक्षाएँ
इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद अब उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी परिषद सरकार से निम्नलिखित अपेक्षाएँ करती है:

  1. हर ज़िले में खेल परिसरों को स्थानीय सांस्कृतिक नामों से जोड़ा जाए
  2. खेल नीति में राज्य आंदोलनकारियों के परिजनों को खेल छात्रवृत्ति या कोटा दिया जाए
  3. ‘राज्य आंदोलन स्मृति परिसर’ की स्थापना की जाए — जहाँ आंदोलन के ऐतिहासिक दस्तावेज़, चित्र, वीडियो संरक्षित हों।
  4. राज्य आंदोलन पर आधारित खेल व सांस्कृतिक महोत्सव हर वर्ष आयोजित हो

मंत्री रेखा आर्या को बधाई

रेखा आर्या का यह निर्णय केवल एक मंत्री का औपचारिक कार्य नहीं था, बल्कि यह एक उत्तराखंडी बेटी की संवेदनशीलता का उदाहरण है, जो राज्य की जड़ों से जुड़ी है। आंदोलनकारी परिषद उनकी इस भावना को प्रणाम करती है।नाम केवल शब्द नहीं होते, वे इतिहास के दरवाज़े होते हैं। आज जब देहरादून, रुद्रपुर, हरिद्वार और हल्द्वानी के खेल परिसर उत्तराखंड की आत्मा को अपने नामों में समेटे हुए दिखाई देते हैं, तब हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन सफल हुआ — जब सरकार ने मैदानों को भी पहाड़ की पहचान दे दी

पुराने नाम यथावत, केवल एकीकृत नामकरण: राज्य सरकार ने खेल परिसरों को लेकर भ्रम किया दूर

उत्तराखंड प्रदेश के प्रमुख खेल परिसरों के नाम बदलने को लेकर उपजे भ्रम पर राज्य सरकार ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। सरकार ने साफ किया है कि किसी भी स्टेडियम या खेल अवस्थापना के पुराने नामों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। केवल इन परिसरों को एकीकृत स्वरूप में नाम दिया गया है, जिससे प्रशासनिक और विकासात्मक दृष्टिकोण से समन्वय स्थापित किया जा सके।

सरकार की ओर से जारी स्पष्टीकरण के अनुसार देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंहनगर और हल्द्वानी के विभिन्न खेल परिसरों को एकीकृत कर उनका सामूहिक नामकरण किया गया है, लेकिन इन परिसरों में स्थित किसी भी स्टेडियम या हॉल के नाम में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

उदाहरण के तौर पर, रुद्रपुर स्थित “मनोज सरकार स्टेडियम” का नाम पूर्ववत रहेगा। इसके अतिरिक्त स्टेडियम परिसर में निर्मित मल्टीपरपज हॉल और साइक्लिंग वेलोड्रोम जैसे अन्य ढांचों के नाम भी यथावत रहेंगे। लेकिन इन सभी खेल सुविधाओं को मिलाकर अब उन्हें “शिवालिक खेल परिसर, रुद्रपुर” के नाम से एकीकृत रूप में पहचाना जाएगा।

इसी प्रकार, देहरादून रायपुर क्षेत्र में स्थित राजीव गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम और महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के नामों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इन दोनों सहित रायपुर स्थित सभी खेल व्यवस्थाओं को अब मिलाकर “रजत जयंती खेल परिसर” कहा जाएगा।

हल्द्वानी गौलापार में स्थित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम और हरिद्वार रोशनाबाद का वंदना कटारिया हॉकी स्टेडियम भी अपने नाम के साथ ही काम करते रहेंगे। इनके साथ बने अन्य खेल ढांचे भी पुराने नामों से ही पहचाने जाएंगे, किंतु इनका समेकित नामकरण प्रशासनिक सुविधा के लिए किया गया है।

राज्य सरकार का कहना है कि इस एकीकरण का उद्देश्य खेल गतिविधियों के समन्वय, बजट प्रबंधन, और भविष्य की योजना प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना है।

सरकार ने दो टूक शब्दों में कहा है कि —

“यदि कोई कहता है कि किसी भी खेल अवस्थापना का पुराना नाम बदलकर नया नाम दिया जा रहा है, तो वह तथ्यात्मक रूप से गलत है।”

इस स्पष्टीकरण के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि नाम परिवर्तन को लेकर फैली भ्रांतियां खत्म होंगी और खेल संरचनाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा।



उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद उत्तराखंड ,अध्यक्ष ,अवतार सिंह बिष्ट ।संवाददाता हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स।

उत्तराखंड की जनता को समर्पित

जय उत्तराखंड!



Spread the love