
आपदा के दर्द से जूझ रहे परिजनों को राहत देने के लिए सरकार ने मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए डीएनए सैंपल मिलान को आधार नहीं बनाया, इसलिए शायद परिजनों ने भी इन सैंपलों को बाबा केदार की दया पर छोड़ दिया।


केदारनाथ आपदा ने ऐसा दंश छोड़ा है कि उत्तराखंड समेत पूरे देश के लिए इसे भुला पाना आसान नहीं है। 15 और 16 जून 2013 की रात को जल प्रलय के रूप में आई आपदा ने केदारनाथ धाम समेत पूरी घाटी में ऐसी तबाही मचाई कि हजारों लोग अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ गए। इनमें से बड़ी संख्या ऐसी थी, जिनके शव तक नहीं मिले। राज्य सरकार ने मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा 4400 माना है। स्थानीय प्रशासन ने कई मुश्किलों से जूझते हुए आपदा में मारे गए 735 लोगों के डीएनए सैंपल एकत्रित किए थे।
उम्मीद थी कि उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों से इस आपदा के शिकार हुए श्रद्धालुओं के परिजन डीएनए मिलान के लिए आगे आएंगे। हालांकि, देशभर में उत्साह देखा गया और 6000 लोगों ने अपनों को खोजने के लिए डीएनए सैंपल दिए। इनमें से सिर्फ 33 सैंपल ही आपदा में मारे गए लोगों के डीएनए सैंपल से मेल खा पाए। काफी समय बीत जाने के बाद भी शेष 702 डीएनए सैंपल से मिलान के लिए कोई व्यक्ति आगे नहीं आया।
मृतक के परिजनों के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए डीएनए सैंपल मिलान की कोई अनिवार्यता नहीं थी। हालांकि, राज्य सरकार ने पुलिस विभाग से 80 सब इंस्पेक्टर विभिन्न राज्यों में भेजे थे। मृत्यु प्रमाण पत्र वितरित करने के साथ ही मृतक के परिजनों को अन्य राज्यों में डीएनए सैंपल उपलब्ध होने की जानकारी दी गई। अब 12 साल बीत चुके हैं, लेकिन इन नमूनों की किसी ने सुध नहीं ली है और अब पुलिस मुख्यालय ने भी उम्मीद छोड़ दी है। ‘डीएनए नमूनों के मिलान के लिए विभाग ने सालों इंतजार किया है। अब संभावना कम होते देख डीएनए मिलान का काम भी बंद कर दिया गया है।’
केदारनाथ आपदा में लापता हुए कई लोगों के परिजन अपने परिजनों का श्राद्ध सनातन धर्म के अनुसार नारायण नागबली त्रिपिंडी विधि से कर चुके हैं। अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के डीएनए नमूनों के मिलान के लिए अब और इंतजार करना उचित नहीं लगता। शेष सभी नमूनों का पिंडदान इसी विधि से या किसी अन्य शास्त्रीय विधि से बाबा केदार और बद्री विशाल के चरणों में करना उचित होगा।

