धराली आपदा: विकास की कीमत और लापता होती संवेदनशीलता?लापता लोगों का आंकड़ा बढ़ा, 42 की पुष्टि…40 होटल, होमस्टे और रिजॉर्ट को हुआ नुकसान

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धराली आपदा: विकास की कीमत और लापता होती संवेदनशीलता

धराली में आई भीषण आपदा को एक सप्ताह हो चुका है, लेकिन मलबे के नीचे दबी सिसकियों और चीखों की गूंज अभी भी सुनाई दे रही है। प्रशासन ने अब 42 लोगों के लापता होने की पुष्टि कर दी है, जबकि स्थानीय स्तर पर तैयार सूची में 73 नाम दर्ज हैं। सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और पुलिस लगातार मलबा हटाने और लोगों को खोजने में जुटी है, पर हर गुजरते दिन के साथ बचने की उम्मीद धुंधली होती जा रही है।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

यह त्रासदी केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह हमारी विकास नीतियों की कमजोरियों और संवेदनशील क्षेत्रों में लापरवाह निर्माण की भयावह परिणति भी है। प्रारंभिक आकलन में 40 होटल, होमस्टे और रिजॉर्ट के नुकसान की बात सामने आई है। सवाल यह है कि क्या ये निर्माण सुरक्षित और नियमानुसार थे? क्या प्रशासन ने समय रहते जोखिम का आकलन किया? अगर किया तो क्या उसके बाद कोई कार्रवाई हुई?

धराली में लापता लोगों में अधिकतर बिहार और नेपाल के मजदूर हैं, जो रोज़ी-रोटी की तलाश में पहाड़ आए थे। यह एक और कड़वी सच्चाई है—कि हमारे पहाड़ी कस्बों का पर्यटन आधारित विकास बाहरी मजदूरों और कम वेतन पर काम करने वाले श्रमिकों पर टिका है, लेकिन आपदा आने पर इन्हें सबसे पहले और सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। इनकी खोजबीन और पुनर्वास की व्यवस्था अक्सर सबसे कमजोर कड़ी बन जाती है।

इस आपदा ने यह भी उजागर किया है कि हमारे आपदा प्रबंधन तंत्र में ‘प्रतिक्रिया’ तो है, पर ‘तैयारी’ नहीं। आपदा के बाद हेल्प डेस्क और राहत शिविर सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन सवाल उठता है—क्या हम इन आपदाओं को रोकने के लिए उतनी ही गंभीरता से काम करते हैं? मौसम विभाग की चेतावनियों, भूगर्भीय सर्वेक्षणों और विशेषज्ञ रिपोर्टों को कितनी बार विकास योजनाओं में शामिल किया जाता है?

धराली आपदा एक चेतावनी है कि हिमालयी क्षेत्र का भूगोल बेहद नाजुक है और यहां का हर विकास कदम सोच-समझकर, प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर उठाया जाना चाहिए। मुनाफे की अंधी दौड़, राजनीतिक संरक्षण में अवैध निर्माण और पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी हमें बार-बार ऐसी त्रासदियों के मुहाने पर लाकर खड़ा कर रही है।

आज जरूरत सिर्फ राहत और बचाव कार्यों की नहीं, बल्कि ईमानदार आत्ममंथन और ठोस नीति बदलाव की है। यदि धराली जैसी त्रासदियों से हम नहीं सीखेंगे, तो आने वाले कल में उत्तराखंड के और कई धराली मलबे के ढेर में बदल जाएंगे—जहां होटल, घर और जिंदगियां सब दफन होंगी, और हमारे पास फिर केवल आँकड़े, अफसोस और खोखले वादे बचेंगे।

इस बीच, राहत कार्यों में बाधा न आए, इसके लिए प्रभावित क्षेत्रों में ड्रोन उड़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है.

ड्रोन पर प्रतिबंध, हेलीकॉप्टरों से राहत कार्य

उत्तरकाशी, धराली, हर्षिल, मातली और चिन्यालीसौड़ जैसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकॉप्टरों के माध्यम से राहत और बचाव कार्य किए जा रहे हैं. हेलीकॉप्टरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ड्रोन उड़ाने पर रोक लगाई गई है. सेना के दो चिनूक और दो एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के साथ-साथ यूकाडा के 8 हेलीकॉप्टर इस अभियान में शामिल हैं. सड़क मार्ग बाधित होने के कारण हवाई मार्ग ही राहत कार्यों का मुख्य आधार बना हुआ है.

जमीनी स्तर पर व्यापक राहत अभियान

जमीनी स्तर पर राहत कार्यों में कुल 815 कर्मचारी और जवान तैनात हैं. इसमें स्थानीय पुलिस प्रशासन के 25 लोग, राजपूताना राइफल्स के 150 जवान, सेना की घातक टीम के 12 जवान, विशेष बल के 10 जवान, बीएजी रुड़की के 30 जवान, आईटीबीपी के 250 जवान, एनडीआरएफ के 113 जवान, एसडीआरएफ के 33 जवान, मेडिकल और अग्निशमन विभाग के कर्मचारी, और अन्य विभागों के कर्मी शामिल हैं. केनाइन डॉग्स भी मलबे में फंसे लोगों की खोज में सहायता कर रहे हैं.

5 अगस्त को आई थी आपदा

5 अगस्त को दोपहर करीब 1:30 बजे खीरगंगा में पहाड़ी से अचानक पानी और मलबे का सैलाब आया, जिसने पलभर में धराली के बाजार को मलबे के ढेर में बदल दिया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, “पानी का सैलाब और मलबा इतनी तेजी से नीचे आया था कि लोगों को भागने तक का मौका नहीं मिला.” इस आपदा ने पूरे क्षेत्र में दहशत फैला दी.


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