संपादकीय विशेष: सरोवर नगरी की आत्मा पर आघात—‘उस्मानों’ की सरपरस्ती में बदलती नैनीताल की पहचान लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संपादक (शैल ग्लोबल टाइम्स/हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स)

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नैनीताल, जिसे कभी पहाड़ की रानी कहा जाता था, आज न तो रानी रही और न पहाड़ की। बीते एक दशक में इस ऐतिहासिक शहर में जो कुछ बदला है, वह सिर्फ भौगोलिक या संरचनात्मक नहीं, बल्कि एक खतरनाक डेमोग्राफिक और सांस्कृतिक अतिक्रमण है—जो अब नासूर बन चुका है। और यह सब सत्ता, प्रशासन और चुनावी वोटबैंक की सांठगांठ का फल है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

इस सड़ी हुई व्यवस्था की सबसे भयानक अभिव्यक्ति उस वक्त सामने आई जब रुकुट कंपाउंड निवासी उस्मान अली पर 12 वर्षीय मासूम बच्ची के साथ बलात्कार का आरोप लगा। वह सिर्फ एक आरोपी नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रवृत्ति का चेहरा है, जो उत्तराखंड के सांस्कृतिक संतुलन को योजनाबद्ध ढंग से बिगाड़ रही है।

डेमोग्राफिक बदलाव या सांस्कृतिक विस्थापन?
नैनीताल, भवाली, श्यामखेत से लेकर मल्लीताल और बारापत्थर तक, हर इलाके में एक सुनियोजित पैटर्न दिखाई देता है—बाहरी राज्यों के धनाढ्य और विशेष समुदाय के लोगों द्वारा जमीनें खरीदना, अवैध निर्माण करना और टूरिज़्म कारोबार पर कब्जा जमाना। यह बदलाव अब केवल दृश्य नहीं, बल्कि व्यावहारिक प्रभाव भी छोड़ चुका है।

स्थानीय टैक्सी चालकों, गाइडों, नाविकों और फड़ दुकानदारों की आजीविका खत्म हो रही है। घोड़ा स्टैंड से लेकर पंत पार्क तक, अब ‘स्थानीय’ शब्द केवल कागज़ों में बचा है।उस्मान अली: एक केस स्टडी नहीं, सत्ता संरक्षित सिंडिकेट का हिस्सा,उस्मान अली पर लगे बलात्कार के आरोप जितने भयावह हैं, उससे कहीं ज्यादा भयावह उसकी आर्थिक और राजनीतिक पकड़ है। यही व्यक्ति कुछ वर्षों पहले तक मामूली काम करता था, लेकिन आज वह करोड़ों की संपत्ति का मालिक और सरकारी ठेकों में दखल रखने वाला एक रसूखदार चेहरा बन चुका है।,इसकी सफलता की कहानी किसी उद्यमशीलता की मिसाल नहीं, बल्कि प्रशासन की चुप्पी, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक वोटबैंक राजनीति की वह तस्वीर है, जिसे देखने से हर ईमानदार नागरिक आंखें फेर लेना चाहता है।

टूरिज्म सेक्टर पर सामूहिक कब्जा: स्थानीय रोजगार की हत्या
नैनीताल का पर्यटन व्यवसाय, जो यहां के युवाओं के लिए रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम था, अब बाहरी लोगों और समुदाय विशेष के ठेकेदारों के लिए सोने की खान बन चुका है।

  • टैक्सी स्टैंड्स पर स्थानीय ड्राइवरों की जगह बाहरी नेटवर्क हावी है।
  • घोड़ा चालकों के रूप में कार्य कर रहे अधिकांश लोगों के पास टैक्सी भी हैं, और काठगोदाम से नैनीताल तक उनका नेटवर्क स्थानीय लोगों की कमाई के रास्ते बंद कर रहा है।
  • फड़ बाजारों और गाइडिंग जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में भी स्थानीय युवाओं को दरकिनार किया जा रहा है।

क्या यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक विस्थापन नहीं?

अवैध निर्माण और सरकारी खामोशी: किसकी शह पर हो रहा है सब?
सीआरएसटी कॉलेज की पहाड़ी, मल्लीताल क्षेत्र, गाड़ीपड़ाव और अन्य संवेदनशील इलाकों में अवैध निर्माण का जो खेल चल रहा है, वह केवल भवन निर्माण कानून की अनदेखी नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमि घोटाला है।

जब ज़िला विकास प्राधिकरण ने कुछ निर्माणों पर चालान और सीलिंग की कार्रवाई की, तो वह सिर्फ दिखावा था। कुछ हफ्तों बाद निर्माण दोबारा शुरू हो गया। कौन देता है इन्हें हिम्मत? जवाब सीधा है—तंत्र की शह और मौन समर्थन।

नकली दस्तावेज़, फर्जी सबलेटिंग और पालिका की चुप्पी
शहर के बाजारों में बड़ी संख्या में दुकानें फर्जी तरीके से सबलेट की जा चुकी हैं। जिनके पास स्थानीय निवासी का प्रमाणपत्र है, उनकी हकीकत भी संदिग्ध है। नगर पालिका को सब पता है, परंतु कोई कार्रवाई नहीं होती। आखिर क्यों?

क्या इसलिए कि ये लोग चुनाव में ‘ब्लॉक वोट’ बनाकर किसी एक पार्टी विशेष को समर्थन देते हैं?

नितिन कार्की का पत्र और शून्य नतीजे
नैनीताल नगर के भाजपा अध्यक्ष नितिन कार्की ने डेमोग्राफिक बदलाव और समुदाय विशेष की बढ़ती आर्थिक-सामाजिक घुसपैठ को लेकर प्रधानमंत्री तक पत्र भेजा। प्रधानमंत्री ने मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए, लेकिन महीनों बीत गए—न जांच पूरी हुई, न रिपोर्ट आई।क्यों? क्या सिस्टम यह मान बैठा है कि नैनीताल अब किसी ‘मिनी सहारनपुर’ या ‘मिनी मुरादाबाद’ में बदल जाने को अभिशप्त है?समाज में बढ़ती बेचैनी, पर आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं
मूल निवासी, स्थानीय व्यापारी और समाजसेवी इन बदलावों को देख रहे हैं, पर डर और असहायता में चुप हैं। दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध ने उनमें आक्रोश भर दिया है, लेकिन शासन-प्रशासन के ढीले रवैये ने उन्हें निराश भी किया है।अब भी समय है जागने का

  1. स्थानीय आरक्षण नीति लागू हो, जहां पर्यटन व्यवसाय में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता मिले।
  2. लाइसेंस प्रक्रिया में चरित्र प्रमाणपत्र और स्थायी निवास का सख्ती से पालन हो।
  3. अवैध निर्माणों की पूर्ण जांच हो और दोषियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हों।
  4. फर्जी दस्तावेज़ों की पुनः जांच हो, खासकर उन लोगों की जो टूरिज्म व्यवसाय से जुड़े हैं।
  5. जनसुनवाई समितियों का गठन हो, जहां मूल निवासी खुलकर अपनी शिकायत रख सकें।

नैनीताल किसकी है?

क्या नैनीताल अब उस्मान अली जैसे लोगों का शहर बनने जा रहा है? या यह आज भी उन लोगों का है, जिनके पूर्वजों ने इस नगरी को बसाया, सँवारा और इसकी संस्कृति को जिंदा रखा?यदि उत्तराखंड का शासन और प्रशासन इस सवाल का उत्तर नहीं देना चाहता, तो जनता को खुद सामने आकर जवाब लेना होगा।

क्योंकि यदि अब भी हम नहीं जागे, तो शायद कल हमें यह कहने का भी अधिकार न हो कि “हम नैनीताल के हैं।”



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