
इसी के चलते अब भारत हजारों करोड़ का रक्षा सामान विदेशों को बेच तक रहा है। भारत ने इसी बीच अपना स्वदेशी जेट एयरक्राफ्ट तेजस भी बनाया है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह
कुछ ऐसी तकनीकें अभी भी है, जिनके लिए भारत विदेशों पर निर्भर है। लड़ाकू विमानों के इंजन ऐसी ही एक तकनीक है। भारत यह तकनीक हासिल करने के लिए ‘कावेरी’ इंजन बना रहा है। इसमें तेजी लाई जाए, इसके लिए अब लोग सोशल मीडिया पर Fund Kaveri Engine (फंड कावेरी इंजन) ट्रेंड चला रहे हैं।
यह सोशल मीडिया ट्रेंड सोमवार (26 मई, 2025) से चालू हुआ। इस दौरान नेटीजेंस ने मोदी सरकार से अपील की कि वह कावेरी इंजन के लिए और भी धनराशि मुहैया करवाएँ और जल्द से जल्द जेट इंजन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर कर दें।
‘Zoomerjeet’ नाम के एक सोशल मीडिया हैंडल ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की। नाम ना बताने वाले इस अकाउंट से सबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर ट्वीट के रिप्लाई में कावेरी इंजन को अधिक फंड देने की माँग की। यह काफी क्रिएटिव तरीके से किया गया।
प्रधानमंत्री के लगभग हर ट्वीट पर ऐसे रिप्लाई किए गए। 26 मई की शाम तक यह राष्ट्रीय स्तर का ट्रेंड बन गया और इसमें कई और लोग शामिल हो गए। अभय नाम के एक यूजर ने लिखा कि निर्मला जी (वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण) भले ही आप GST 18% की जगह 20% ले लो, लेकिन कावेरी के लिए फंड बढ़ाओ।
लोगों ने इसके लिए जल्द ही कई और क्रिएटिव तरीके निकाले और इस संबंध में पोस्टर बनाने भी चालू कर दिए। कई यूजर्स ने इसके लिए सोवियत स्टाइल वाले प्रोपेगेंडा पोस्टर बनाए और सरकार से माँग की कि जल्द कावेरी इंजन को फंड करके देश को आत्मनिर्भर बनाया जाए।
कई लोगों ने तो इसे भारत की सांस्कृतिक संप्रभुता से भी जोड़ दिया और उस तरह के पोस्टर बना कर फंडिंग की माँग की। एक यूजर ने तो कहा कि हमें इस इंजन के लिए क्राउडफंडिंग (जनता से पैसा इकट्ठा करना) की कोशिश करनी चाहिए।
क्या है कावेरी इंजन?
‘कावेरी’ उस इंजन प्रोग्राम का नाम है, जिसे डिफेन्स रिसर्च एंड डेवेलपमेंट आर्गेनाईजेशन (DRDO) भारत के लिए विकसित कर रहा है। DRDO की GTRE लैब इसे बना रही है। योजना है कि यह कावेरी इंजन आने वाले समय में हमारे स्वदेशी लड़ाकू विमानों में लगाया जाएगा। इस पर लम्बे समय से काम चल रहा है। कुछ तकनीकी सीमाओं और कभी कभार फंडिंग की कमी के चलते यह प्रोजेक्ट लटका हुआ है। सबसे पहले कल्पना की गई थी कि कावेरी इंजन को भारत के अपने लड़ाकू विमान LCA तेजस में लगाया जाएगा।
कावेरी इंजन के समय पर तैयार ना हो पाने और इसका प्रदर्शन आशानुरूप ना होने के चलते इसे LCA तेजस प्रोग्राम से अलग कर दिया गया था। इसके LCA तेजस में अमेरिकी कम्पनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के बने F404 इंजन लगाए गए हैं। भारत अब बड़ी संख्या में तेजस विमान बना रहा है लेकिन अमेरिकी कम्पनी GE इंजन की डिलीवरी में देरी कर रही है। इसके चलते नए तेजस मार्क-1A विमानों का निर्माण धीमी गति से हो रहा है। इसका सीधा प्रभाव भारत की एयरफ़ोर्स पर पड़ रहा है, जो विमानों की कमी से जूझ रही है।
क्यों हुई कावेरी इंजन बनाने में देरी?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कावेरी इंजन एक महत्वपूर्ण परियोजना है और इसके बनने पर तकनीकी क्षमताओं में कई गुने की बढ़ोतरी होगी। हालाँकि, इसमें काफी देरी हुई है। इसके पीछे बड़ा कारण इंजन बनाने में होने वाले तकनीकी जटिलताएँ हैं।
इस इंजन को बनाने के लिए एयरोथर्मल डायनेमिक्स, मैटेरियल साइंस, एडवांस्ड मेटलर्जी और कंट्रोल सिस्टम जैसे मामलों में रिसर्च करनी पड़ी है। यह सभी तकनीकें बनाना काफी कठिन है। एक और समस्या भारत को इस इंजन के तकनीकी विकास में मदद ना मिलना है।
इसके अलावा इंजन की तकनीकों को बनाने के लिए विशेषज्ञों और इन्फ्रा की कमी भी है। कई बार भारत में विकसित तकनीकों के टेस्ट के लिए रूस पर निर्भर रहना पड़ा है। इसके अलावा विकसित होने के बाद भी इंजन केवल 70-75 kN (किलोन्यूटन) का थ्रस्ट ही पैदा कर पाया था।
यह शक्ति उस इंजन क्षमता से कम थी, जिसकी जरूरत भारतीय विमानों को थी। तेजस जैसे विमानों को 90-100 kN की आवश्यकता थी। ऐसे में अब इसे AMCA और UCAV जैसे प्रोजेक्ट के लिए विकसित किया जा रहा है।
इससे पहले फ्रांस की स्नेक्मा के साथ इस इंजन के विकास की बात चल रही थी। लेकिन 2013 में इस पर भी सहमति नहीं बनी क्योंकि यह कम्पनी पूरी तकनीकें साझा नहीं करना चाहती थी। भारत को यह स्वीकार नहीं था।
Fund Kaveri Engine में क्या माँग?
नेटीजेंस की माँग है कि जो भी तकनीकें अभी भारत हासिल नहीं कर पाया है, इसके लिए लगभग ₹16000-₹17000 करोड़ की फंडिंग की दी जाए। उनका कहना है कि अभी तक कावेरी प्रोग्राम को ₹2000 करोड़ की फंडिंग मिली है, जो कम है।
नेटीजेंस ने इसके लिए विदेशों का उदाहरण दिया है, जहाँ एक जेट इंजन के निर्माण पर ₹40 हजार करोड़ तक का खर्च किया गया है। उनका कहना है कि यदि इस काम के लिए फंडिंग बढ़ा दिए जाए तो यह प्रोग्राम जल्दी पूरा हो सकेगा और भारत इस संबंध में आत्मनिर्भर हो जाएगा। इसी लिए यह ट्रेंड चलाया जा रहा है।
