
रुद्रपुर अल्मोड़ा से उठी एक आवाज़ ने आज पूरे उत्तराखंड की सरकार और व्यवस्था की पोल खोल दी है। सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन—जिसे कभी जनता की उम्मीदों का सहारा कहा गया था—को “जनता की उम्मीदों से विश्वासघात” करार दिया है।



हेल्पलाइन की शुरुआत बड़े दावों के साथ हुई थी। कहा गया था कि अब जनता को भटकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। मुख्यमंत्री कार्यालय तक उनकी आवाज़ सीधे पहुँचेगी और त्वरित समाधान होगा। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। जनता को राहत देने वाली यह व्यवस्था आज काग़ज़ी औपचारिकता बनकर रह गई है।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
शिकायतें बंद, समस्याएं जस की तस?संजय पाण्डे के आरोप बेहद गंभीर हैं। उनका कहना है कि अधिकारी शिकायतों का समाधान करने के बजाय उन्हें “स्पेशल क्लोज़” में डाल रहे हैं। यानी समस्या वहीँ की वहीँ और कागज़ों में दिखा दिया गया कि सब ठीक हो गया।
उदाहरण सामने हैं—
- राज्यपाल के अनु सचिव द्वारा L4 स्तर पर भेजी गई शिकायत को L3 स्तर के अधिकारी ने बिना किसी कार्रवाई के सीधे “स्पेशल क्लोज़” कर दिया।
- मुख्यमंत्री कार्यालय से भेजी गई दो शिकायतें भी यही हश्र झेल चुकी हैं।
यानी जनता जिस भरोसे से अपनी समस्या सरकार तक पहुँचाती है, वही समस्या कचरे के ढेर में डाल दी जाती है।
दो साल से लटकी शिकायतें?यह कहानी नई नहीं है।
- CHML 0820238432564 (24 अगस्त 2023)
- CHML 0920238448554 (26 सितम्बर 2023)
दोनों शिकायतें पिछले दो साल से लंबित हैं।
इसी तरह हाल ही में दर्ज हुई शिकायत—
- CHML 032025870316 (8 मार्च 2025)
का भी आज तक कोई हल नहीं निकला है। जिलाधिकारी अल्मोड़ा की ओर से इस पर कोई रुचि नहीं दिखाई गई।
यह केवल संजय पाण्डे का मामला नहीं है। हज़ारों नागरिक अपनी शिकायतों को लेकर इसी तरह लटके हुए हैं।
चुनिंदा शिकायतें ही सुनी जाती हैं?पाण्डे का सीधा आरोप है—
मुख्यमंत्री केवल चुनिंदा लोगों की शिकायतें सुनते हैं, आम जनता की आवाज़ अनसुनी रह जाती है।
यानी व्यवस्था में “पसंद-नापसंद” का खेल चल रहा है। लोकतंत्र में जहाँ हर नागरिक को समान अधिकार और समान सुनवाई मिलनी चाहिए, वहाँ शिकायतों का चयनित निपटान लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़ा करता है।
अधिकारी समीक्षा तक नहीं करते?स्थिति और भी चिंताजनक तब हो जाती है जब पता चलता है कि जिले के अधिकारी हेल्पलाइन की समीक्षा तक नहीं कर रहे। शिकायतें दर्ज हो रही हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई कौन कर रहा है? जवाब है—कोई नहीं।
जनता ठगी हुई महसूस कर रही है। सिस्टम ऐसा हो गया है कि शिकायतें “बंद” हो जाती हैं, समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं और समाधान का नामोनिशान तक नहीं मिलता।
सरकार की साख पर सवाल?हेल्पलाइन किसी भी सरकार की जनता से सीधी कड़ी होती है। अगर यही कड़ी कमजोर हो जाए, तो सरकार पर से भरोसा उठना लाज़मी है।
संजय पाण्डे ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि—
- हेल्पलाइन प्रणाली की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।
- दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो जनता का भरोसा सरकार से पूरी तरह उठ जाएगा। यह केवल व्यवस्था पर नहीं, बल्कि सरकार की साख पर सीधा हमला होगा।
जनता की आवाज़ क्यों नहीं सुनाई देती?सबसे बड़ा सवाल यही है—
जब मुख्यमंत्री हेल्पलाइन जैसी सीधी व्यवस्था मौजूद है, तो जनता की आवाज़ क्यों दबाई जा रही है?
क्या कारण है कि शिकायतें महीनों और वर्षों तक लंबित रहती हैं? क्या यह लापरवाही है, भ्रष्टाचार है या फिर सरकार का जनता की समस्याओं से दूरी बना लेना?
समाधान क्या है??यदि सरकार सचमुच जनता का भरोसा जीतना चाहती है तो—
- हेल्पलाइन पर आने वाली हर शिकायत की टाइम बाउंड ट्रैकिंग हो।
- “स्पेशल क्लोज़” जैसी मनमानी प्रक्रिया पर रोक लगे।
- हर जिले में हेल्पलाइन की मासिक समीक्षा बैठक अनिवार्य हो।
- जनता को उनकी शिकायत के निपटान की स्पष्ट रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए।
संपादकीय :उत्तराखंड की जनता ने अलग राज्य इसलिए मांगा था ताकि उनकी समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान हो। लेकिन 25 साल बाद भी जनता को यह एहसास हो रहा है कि उनकी आवाज़ दबा दी जाती है, उनकी शिकायतें ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं।मुख्यमंत्री हेल्पलाइन का सच यही है—जनता को सपने दिखाए गए, लेकिन हकीकत में उन्हें ठगा गया।सरकार को समझना होगा कि जनता के भरोसे से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती। अगर यह भरोसा टूटा, तो सत्ता की सारी ताक़त भी सरकार को नहीं बचा पाएगी।यह संपादकीय जनता के मन की पीड़ा है। अगर सरकार अब भी नहीं जागी, तो “मुख्यमंत्री हेल्पलाइन” आने वाले दिनों में उत्तराखंड की राजनीति का सबसे बड़ा वोटकटाऊ मुद्दा बन सकती है।








