संपादकीय:उधमसिंह नगर में फिर गूंजने लगी उत्तराखंड क्रांति दल की आवाज़: उत्तराखंड क्रांति दल की नई करवट? 

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उत्तराखंड राजनीति का स्वरूप कभी स्थिर नहीं रहता। यह समय-समय पर बदलते सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों से संचालित होता है। उत्तराखंड की राजनीति में भी कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। राज्य निर्माण के बाद से लेकर अब तक यहाँ की राजनीति मुख्यतः राष्ट्रीय दलों – भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस – के इर्द-गिर्द घूमती रही। किंतु इसके साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की भी भूमिका रही है, जिनमें उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) का नाम सबसे प्रमुख है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

उक्रांद का इतिहास बताता है कि यह केवल एक राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन की आत्मा रही है। यही वह मंच था, जिसने राज्य के जनांदोलन को वैचारिक शक्ति दी। परंतु राज्य बनने के बाद यह पार्टी आंतरिक कलह, नेतृत्व संकट और संगठनात्मक कमजोरियों के कारण धीरे-धीरे हाशिए पर चली गई। लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल रही हैं।

मलिक कॉलोनी की अहम बैठक?रुद्रपुर स्थित मलिक कॉलोनी में आयोजित बैठक इस बदलाव का प्रतीक बनी। बैठक में केंद्रीय महामंत्री सुशील उनियाल, केंद्रीय संगठन मंत्री भूवन बिष्ट, वरिष्ठ नेता हरीश पाठक और प्रमोद सती उपस्थित रहे। इस बैठक में राज्य के ज्वलंत मुद्दों – पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा – पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ। इसने स्पष्ट किया कि उक्रांद फिर से जनता की समस्याओं को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाने की तैयारी में है।

सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह रहा जब रुद्रपुर के प्रमुख समाजसेवी दीपक चिराया ने उत्तराखंड क्रांति दल की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की। उनका यह निर्णय केवल एक व्यक्ति का दल में प्रवेश नहीं है, बल्कि यह सामाजिक चेतना और राजनीतिक वैकल्पिकता का उद्घोष है।

दीपक चराया का जुड़ना: नई ऊर्जा का संचार

दीपक चराया, जो लंबे समय से सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे हैं, का उक्रांद से जुड़ना यह संकेत देता है कि पार्टी अब केवल पुराने चेहरों तक सीमित नहीं है। वह समाज का वह तबका भी आकर्षित कर रही है, जो राजनीति में पारदर्शिता, ईमानदारी और जनता की भागीदारी चाहता है।

उनका संकल्प कि वे “उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना के अनुरूप कार्य करेंगे”, इस बात को पुष्ट करता है कि अब दल का एजेंडा फिर से जनता की आकांक्षाओं से जुड़ रहा है। रुद्रपुर जैसे औद्योगिक शहर में उक्रांद की यह सक्रियता भविष्य की राजनीति में एक नए समीकरण को जन्म दे सकती है।

सम्मेलन और नई रणनीति?बैठक में यह भी तय हुआ कि बहुत जल्द रुद्रपुर में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। यह सम्मेलन केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं होगा, बल्कि जनता और पार्टी के बीच संवाद का सेतु बनेगा। इसके अलावा रामनगर में होने वाले प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में पूरे राज्य के कार्यकर्ता और नेता एक साथ जुटेंगे। वहाँ नई रणनीति और दिशा पर विचार होगा।

यदि उक्रांद इस सम्मेलन में ठोस नीतियाँ और स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करती है, तो निश्चित ही वह 2027 के चुनावों में आश्चर्यजनक परिणाम दे सकती है।

उधमसिंह नगर में नई हलचल?दीपक चराया की सदस्यता ने उधमसिंह नगर की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह जिला हमेशा से उत्तराखंड की राजनीति का अहम केंद्र रहा है। यहाँ का सामाजिक और राजनीतिक ताना-बाना ऐसा है कि कोई भी दल यदि यहाँ मजबूत पकड़ बना ले, तो उसका असर पूरे कुमाऊँ क्षेत्र पर पड़ता है।

उक्रांद की यह नई सक्रियता न केवल स्थानीय राजनीति में नई चर्चा पैदा कर रही है, बल्कि यह जनता के लिए भी उम्मीद जगाने वाली है कि क्षेत्रीय मुद्दों को अब फिर से प्रमुखता मिलेगी।

क्यों ज़रूरी है उक्रांद का पुनरुत्थान?उत्तराखंड को बने 25 साल हो चुके हैं। लेकिन क्या यह राज्य वास्तव में अपने नागरिकों की आकांक्षाओं के अनुरूप विकसित हुआ है? उत्तर है – आंशिक रूप से।

  • पलायन: गाँव खाली हो रहे हैं। युवा रोजगार की तलाश में मैदानों और महानगरों की ओर जा रहे हैं।
  • स्वास्थ्य: पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहद कमजोर हैं।
  • शिक्षा: सरकारी स्कूलों की हालत लगातार गिर रही है।
  • भ्रष्टाचार और राजनीति का केंद्रीकरण: राज्य स्तर पर निर्णय जनता से दूर हो गए हैं।

इन परिस्थितियों में एक क्षेत्रीय दल की ज़रूरत और भी अधिक महसूस होती है, जो केवल सत्ता नहीं, बल्कि राज्य के मूल उद्देश्यों की रक्षा करे। उक्रांद यदि अपनी ऐतिहासिक भूमिका को याद रखकर आगे बढ़ती है, तो यह राज्य की राजनीति में फिर से निर्णायक शक्ति बन सकती है।

2027: संभावनाओं का वर्ष?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2027 का चुनाव उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। जनता अब केवल वादों से नहीं, बल्कि ठोस कामकाज और पारदर्शिता की मांग कर रही है। यदि उक्रांद उधमसिंह नगर और अन्य जिलों में अपनी जड़ें मजबूत कर पाती है, तो यह “तीसरा विकल्प” बनकर उभर सकती है।

सुशील उनियाल का नेतृत्व, संगठन मंत्री भूवन जोशी की संगठनात्मक पकड़, और हरीश पाठक व प्रमोद सती जैसे अनुभवी नेताओं की मौजूदगी – यह सभी कारक मिलकर उक्रांद को एक सशक्त स्वरूप दे सकते हैं।

सकारात्मक संदेश?इस बैठक और नई सदस्यता का सबसे बड़ा संदेश यही है कि उत्तराखंड की राजनीति अभी मृतप्राय नहीं हुई। जनता आज भी बदलाव चाहती है। यदि ईमानदार लोग आगे आते हैं, तो राजनीति को फिर से जनता के विश्वास का माध्यम बनाया जा सकता है।

दीपक चराया जैसे समाजसेवियों का राजनीति में प्रवेश यह दर्शाता है कि समाज और राजनीति का रिश्ता जीवंत है। यह उस विचार को पुष्ट करता है कि राजनीति केवल सत्तालोलुपता का साधन नहीं, बल्कि समाज सेवा का बड़ा माध्यम भी हो सकती है।


मलिक कॉलोनी की बैठक, दीपक चराया की सदस्यता और आगामी सम्मेलन – ये सभी घटनाएँ उत्तराखंड क्रांति दल के पुनर्जागरण की ओर संकेत करती हैं। यह केवल क दल का पुनरुत्थान नहीं, बल्कि उस स्वप्न का पुनर्जीवन है, जिसके लिए उत्तराखंड राज्य की नींव रखी गई थी।

आज आवश्यकता इस बात की है कि उक्रांद अपनी पुरानी गलतियों से सबक ले, नई पीढ़ी को जोड़ने की ठोस रणनीति बनाए, और जनता की समस्याओं को अपना मूल एजेंडा बनाए। यदि ऐसा होता है, तो 2027 में निश्चित रूप से उक्रांद आश्चर्यजनक परिणाम लाकर राज्य की राजनीति को नई दिशा देगी।


✍️ लेखक: संपादकीय डेस्क, विशेष संवाददाता



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