रुद्रपुर खानपुर जब राजनीति की परंपरागत धारणाओं को कोई चुनौती देता है, तब इतिहास बनता है। खानपुर पूर्व जिला पंचायत सीट से निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा हालदार की धमाकेदार बढ़त ने ठीक ऐसा ही कर दिखाया है — लेकिन असली कहानी पर्दे के पीछे उस नेतृत्व की है, जो इस परिवर्तन का वाहक बना। वह नेतृत्व है — पूर्व विधायक, जननायक और हिंदू हृदय सम्राट राजकुमार ठुकराल।
लगभग4000 वोटो से आगे चल रही है खानपुर जिला पंचायत
1. चुनावी समीकरण और राष्ट्रीय दलों की विफलता,भाजपा और कांग्रेस दोनों ने खानपुर में सियासी ताकत झोंकी, लेकिन नतीजा: ‘कैची’ चुनाव चिन्ह वाली निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा हालदार की 2680 वोटों की बढ़त।,भाजपा विधायक शिव अरोरा की प्रतिष्ठा को चुनौती, संगठन के भीतर अंतर्विरोध का पर्दाफाश।कांग्रेस के प्रत्याशी हाशिए पर। आमजन ने राष्ट्रीय दलों की “डाल-रोटी” राजनीति को नकारा।
2. पर्दे के पीछे की ताकत: राजकुमार ठुकराल?राजकुमार ठुकराल ने खुद मैदान में उतरकर “हर गली-हर द्वार” प्रचार किया।उन्होंने न केवल रणनीति बनाई, बल्कि बूथ स्तर पर स्वयं संगठन खड़ा किया।एक निर्दलीय प्रत्याशी को जिस तरह से ठुकराल ने खड़ा किया, वह राजनीतिक मैनेजमेंट का मॉडल बन गया।
3. ठुकराल का जनाधार: ‘रुद्रपुर तक सीमित नहीं’?यह चुनाव केवल खानपुर का नहीं, बल्कि पूरे किच्छा-गदरपुर-रुद्रपुर के लिए एक संदेश है — ठुकराल अब ‘क्षेत्रीय नेता’ नहीं, ‘जनपद स्तर का शक्ति केंद्र’ बन चुके हैं।ग्रामीण इलाकों में अब भी लोगों के मन में है, “भ्रष्टाचार के खिलाफ डंडा ठुकराल का ही चलता है।”25 वर्षों की राजनीति में यह उनकी पुनर्प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा उदाहरण बन सकता है।
4. ‘कैची’ चुनाव चिन्ह बना नया प्रतीक?कमल’ और ‘हाथ’ को पछाड़ते हुए अब चर्चा है कैची चुनाव चिन्ह की — जो ठुकराल के लिए एक नया राजनीतिक प्रतीक बन गया है।यह प्रतीक सिर्फ चुनावी नहीं, “राजनीतिक विद्रोह और स्वाभिमान” का प्रतीक बन गया है।
5. ठुकराल और भाजपा: टकराव की राजनीति या रणनीति की मजबूरी?भाजपा से दूरी बनाकर निर्दलीय समर्थन का फैसला बताता है कि संगठन में सम्मान की कमी ने उन्हें नए रास्ते पर ला खड़ा किया।क्या ठुकराल अब भाजपा में वापसी करेंगे या एक नई राजनीतिक धारा की शुरुआत करेंगे?संगठन के भीतर यह भी सवाल गूंज रहा है — “क्या ठुकराल का कद विधायक से आगे बढ़कर सांसद या मंत्री पद की ओर इशारा कर रहा है?”
6. जीत के समीकरण: सुषमा हालदार की जीत क्यों ठुकराल की जीत है?सुषमा हालदार के नाम पर मतदाताओं ने ठुकराल की नीतियों और कार्यशैली को वोट किया।यह परिणाम नहीं, बल्कि जनादेश है ठुकराल की छवि पर भरोसे का।“महिला प्रत्याशी को आगे करके उन्होंने खुद को जनसरोकार से जोड़ा।”
7. भविष्य की दिशा: जिला पंचायत से विधानसभा या संसद?यदि ठुकराल भविष्य में खुद चुनाव लड़ें तो उनकी स्वतंत्र हैसियत भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।उनका नेटवर्क, जनाधार और साख — उन्हें क्षेत्रीय राजनीति में “किंगमेकर” बना सकती है।
8. जनता के बीच छवि: ठुकराल क्यों लोकप्रिय हैं?सड़क से सदन तक संघर्ष।गुंडा तत्वों के खिलाफ स्पष्ट रुख।गरीबों, दुकानदारों, बेरोजगारों के मुद्दे पर बेबाक राय।धार्मिक आयोजनों से लेकर प्रशासनिक मोर्चों तक हर जगह सक्रिय भूमिका।
9. ‘हिंदू हृदय सम्राट’: केवल उपाधि नहीं, जनभावना का दर्पण?मंदिर निर्माण, सनातन संस्कृति पर गर्व, और धर्म रक्षा के लिए खड़ा रहना — जनता ने उन्हें ‘हिंदू हृदय सम्राट’ यूं ही नहीं कहा।धर्म और विकास के संतुलन की उनकी राजनीति अब फिर जीवित हो रही है।
10. कैची’ से कट गई पार्टियों की सत्ता डोर!यह चुनाव परिणाम भले ही एक जिला पंचायत सीट तक सीमित हो, लेकिन इसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव तक पड़ेगा।भाजपा और कांग्रेस को यह समझ लेना होगा कि जमीन पर काम करने वाले नेता को संगठनात्मक षड्यंत्र से नहीं हराया जा सकता।
सुषमा हालदार की जीत दरअसल ठुकराल की राजनीतिक ‘रि-एंट्री’ है — और वह भी बेहद प्रभावशाली अंदाज़ में। यह सीट सिर्फ एक चुनावी जीत नहीं, राजकुमार ठुकराल की भविष्य की राजनीति का ट्रेलर है। राष्ट्रीय पार्टियों को यह चेतावनी है कि यदि जमीनी नेताओं को दरकिनार किया गया, तो कैची जैसे प्रतीक ही कमल और हाथ को मात दे देंगे।
लेखक: अवतार सिंह बिष्ट
वरिष्ठ संपादक हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / शैल ग्लोबल टाइम्स

