
सत्यनारायण कथा का पहला अध्याय भगवान सत्यनारायण की कृपा प्राप्त करने और जीवन को सुखमय बनाने का एक सरल और प्रभावी तरीका है। इसके अतिरिक्त, यह अध्याय मनुष्य को पापों से मुक्ति दिलाता है, दरिद्रता को दूर करता है, और जीवन में आने वाली बाधाओं को शांत करता है, साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी यह कथा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। आईये यहाँ प्रस्तुत है श्री सत्यनारायण व्रत कथा – प्रथम अध्याय


श्री सत्यनारायण व्रत कथा – प्रथम अध्याय
महामुनि ऋषि व्यास जी ने कहा, “बहुत समय पूर्व नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक अट्ठासी हजार ऋषियों ने पुराणवेत्ता श्री सूतजी से पूछा, “हे सूतजी! इस कलियुग में वेद-विद्या-रहित मानवों को ईश्वर भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनिश्रेष्ठ! कोई ऐसा व्रत अथवा तप बताइये जिसके करने से थोड़े ही समय में पुण्य प्राप्त हो तथा मनोवाञ्छित फल भी मिले। ऐसी कथा सुनने की हमारी बहुत इच्छा है।”
इस प्रश्न पर शास्त्रों के ज्ञाता श्री सूतजी ने कहा, “हे वैष्णवों! में पूज्य! आप सभी ने प्राणियों के हित एवम् कल्याण की बात पूछी है। अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों से कहूँगा जिसे श्रेष्ठमुनि नारद जी ने श्री लक्ष्मीनारायण भगवान से पूछा था और श्री लक्ष्मीनारायण भगवान ने मुनिश्रेष्ठ नारद जी को बताया था। आप सभी श्रेष्ठगण यह कथा ध्यान से सुनें-
मुनिनाथ सुनो यह सत्यकथा सब कालहि होय महासुखदायी।
ताप हरे, भव दूर करे, सब काज सरे सुख की अधिकायी ॥
अति संकट में दुःख दूर करै सब ठौर कुठौर में होत सहायी।
प्रभु नाम चरित गुणगान किये बिन कैसे महाकलि पाप नसायी॥
मुनिश्रेष्ठ नारद दूसरों के कल्याण हेतु सभी लोकों में घूमते हुये एक समय मृत्युलोक में आ पहुँचे। यहाँ बहुत सी योनियों में जन्मे प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मानुसार अनेक कष्टों से पीड़ित देखकर उन्होंने विचार किया कि किस यत्न् के करने से निश्चय ही प्राणियों के कष्टों का निवारण हो सकेगा। मन में ऐसा विचार कर श्री नारद जी विष्णुलोक गये।
Satyanarayan Bhagwan ki katha
वहाँ श्वेतवर्ण तथा चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को, जिनके हाथों में शँख, चक्र, गदा तथा पद्म थे तथा वरमाला धारण किये हुये थे, को देखकर उनकी स्तुति करने लगे। नारदजी ने कहा, “हे भगवन्! आप अत्यन्त शक्तिवान हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती, आपका आदि-मध्य-अन्त भी नहीं है। आप निर्गुण स्वरूप सृष्टि के कारण भक्तों के कष्टों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा शत-शत नमन है।”
नारदजी से इस प्रकार की प्रार्थना सुनकर विष्णु भगवान बोले, “हे योगिराज! आपके मन में क्या है? आपका किस कार्य हेतु यहाँ आगमन हुआ है? निःसंकोच कहें।”
Satyanarayan Bhagwan ki katha
तब मुनिश्रेष्ठ नारद मुनि ने कहा, “मृत्युलोक में सब मनुष्य, जो अनेक योनियों में पैदा हुये हैं, अपने-अपने कर्मों द्वारा अनेक प्रकार के कष्टों के कारण दुःखी हैं। हे स्वामी! यदि आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइये, कि उन मनुष्यों के सब कष्ट थोड़े से ही प्रयत्न से किस प्रकार दूर हो सकते हैं।”
Satyanarayan Bhagwan ki katha
श्री विष्णु भगवान ने कहा, “हे नारद! मनुष्यों के कल्याण हेतु तुमने यह बहुत उत्तम प्रश्न किया है। जिस व्रत के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह व्रत मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो, अति पुण्य दान करने वाला, स्वर्ग तथा मृत्युलोक दोनो में दुर्लभ, एक अति उत्तम व्रत है जो आज मैं तुमसे कहता हूँ। श्री सत्यनारायण भगवान का यह व्रत विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न करने पर मनुष्य इस धरती पर सभी प्रकार के सुख भोगकर, मरणोपरान्त मोक्ष को प्राप्त होता है। श्री विष्णु भगवान के ऐसे वचन सुनकर नारद मुनि बोले, “हे भगवन्! उस व्रत का विधान क्या है? फल क्या है? इससे पूर्व किसने यह व्रत किया है तथा किस दिन यह व्रत करना चाहिये? कृपया मुझे विस्तार से समझायें।”
Satyanarayan Bhagwan ki katha
श्री विष्णु भगवान ने कहा, “हे नारद! दुःख-शोक एवम् सभी प्रकार की व्याधियों को दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजय दिलाने वाला है। श्रद्धा और भक्ति के साथ किसी भी दिन, मनुष्य सन्ध्या के समय श्री सत्यनारायण भगवान की ब्राह्मणों एवं बन्धुओं के साथ पूजा करे। भक्तिभाव से नैवेद्य, केले का फल, घी, शहद, शक्कर अथवा गुड़, दूध तथा गेहूँ का आटा सवाया लेवे (गेहूँ के अभाव में साठी का चूर्ण भी ले सकते हैं)। इन सभी को भक्तिभाव से भगवान श्री सत्यनारायण को अर्पण करे। बन्धु-बान्धवों सहित ब्राह्मणों को भोजन कराये। इसके पश्चात् ही स्वयम् भोजन करे। रात्रि में श्री सत्यनारायण भगवान के गीत आदि का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान का स्मरण करते हुये समय व्यतीत करे। इस तरह जो मनुष्य व्रत करेंगे, उनकी मनोकामनायें अवश्य ही पूर्ण होंगी। विशेषरूप से कलियुग में, मृत्युलोक में यही एक ऐसा उपाय है, जिससे अल्प समय तथा अल्प धन में महान पुण्य की प्राप्ति हो सकती है।”
॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा प्रथम अध्याय सम्पूर्ण ॥
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