हिं दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों का विधान है, जिसमें दाह संस्कार अंतिम होता है। सनातन परंपरा के अनुसार, विभिन्न व्यक्तियों के अंतिम संस्कार अलग-अलग तरीके से किए जाते हैं।

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यदि किसी बच्चे का निधन होता है, तो उसे दफनाया जाता है, जलाया नहीं जाता। अकाल मृत्यु होने पर आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। वहीं, यदि किसी सुहागिन महिला की मृत्यु होती है, तो अंतिम संस्कार से पहले उसे सोलह श्रृंगार से सजाया जाता है।

इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है, जो रामायण काल से जुड़ी है। माना जाता है कि विवाहित महिला को ‘सुहागिन’ कहा जाता है, और यदि उसकी मृत्यु सुहागिन रहते हुए हो, तो उसे अंतिम समय में भी सोलह श्रृंगार से सजाकर विदाई दी जाती है। यह एक परंपरा है कि विवाहित स्त्री को मायके से ससुराल सोलह श्रृंगार करके भेजा जाता है, और मृत्यु के बाद भी उसे इसी तरह सम्मानपूर्वक विदा किया जाता है।


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