कोई छोटा-मोटा नक्सली नहीं, नक्सलियों का हाफिज सईद था बसवराजूसुरक्षाबलों ने जंगल में घुसकर किया ढेर, 70 घंटे की घेराबंदी, आतंक के युग का खात्मा रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्स

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वो केवल एक नक्सली नहीं था। वो आतंक की रणनीति का वह ब्रेन था जिसने भारतीय सुरक्षा बलों को कई बार गहरा जख्म दिया। नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू—भारतीय माओवादियों का शीर्ष कमांडर, जिसकी तुलना आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद से की जाती है—अब इस धरती पर नहीं रहा। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में 70 घंटे तक चले सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान में उसे घेरकर ढेर कर दिया गया।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह

कौन था बसवराजू?आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियन्नापेटा गांव में जन्मा बसवराजू कोई सामान्य ग्रामीण युवक नहीं था। उसने वारंगल के रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री ली। लेकिन 1970 के दशक में नक्सली आंदोलन से जुड़कर उसने हिंसा को जीवन का आदर्श बना लिया।

1980 के दशक में वह सीपीआई (माओवादी) का पूर्णकालिक सदस्य बन गया और तीन दशक से अधिक समय तक संगठन की केंद्रीय समिति में सक्रिय रहा। 2018 में मुप्पला लक्ष्मण राव (गणपति) के स्थान पर महासचिव पद संभालने के बाद वह माओवादी संगठन का सर्वोच्च नेता बन गया।

लिट्टे से लिया ट्रेनिंग, बम निर्माण का मास्टर,बसवराजू केवल विचारधारा का प्रचारक नहीं, हिंसा का योजनाकार था। उसने श्रीलंका के तमिल आतंकी संगठन लिट्टे (LTTE) से गुरिल्ला युद्ध, बारूदी सुरंग और बम विस्फोट की ट्रेनिंग ली थी। वह माओवादियों के लिए रणनीतिक दस्तावेज तैयार करता, हमलों की योजना बनाता और कैडर को युद्ध कौशल सिखाता था।

1 करोड़ का इनामी, 50 गार्ड और 5-लेयर सुरक्षा घेरा

छत्तीसगढ़ सरकार ने बसवराजू पर ₹1 करोड़ का इनाम घोषित कर रखा था। तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी उस पर भारी इनाम था। वह हर समय 50 से ज्यादा हथियारबंद गार्ड्स और 3 से 5 लेयर की सुरक्षा घेरे में रहता था।

कैसे हुआ खात्मा: जंगल में घुसकर मौत का ऑपरेशन,खुफिया इनपुट था कि बसवराजू नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा के ट्राई-जंक्शन इलाके में 50-60 माओवादियों के साथ मौजूद है। इसके बाद चार जिलों की संयुक्त सुरक्षा टीम—DRG, STF और स्पेशल यूनिट्स ने घेराबंदी की।

लगातार 70 घंटे तक ऑपरेशन चला। सुरक्षाबलों ने पहले बाहरी घेरे को तोड़ा, फिर अंदरूनी सुरक्षा लेयर भेदकर सीधे उस जगह पहुंचे जहां बसवराजू डेरा डाले था। मुठभेड़ में वह ढेर हो गया। साथ ही 27 नक्सली भी मारे गए।

बसवराजू के खौफनाक कारनामे:

  • 2003, अलीपीरी विस्फोट: आंध्र के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू की हत्या की साजिश
  • 2010, दंतेवाड़ा हमला: 76 CRPF जवान शहीद
  • 2013, झीरम घाटी हमला: 27 कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता मारे गए
  • 2019, श्यामगिरी: बीजेपी विधायक भीमा मंडावी की हत्या
  • 2020, सुकमा: 17 सुरक्षाकर्मी शहीद
  • 2021, बीजापुर: 22 जवान शहीद

क्या सीएम को मारने की थी योजना?सूत्रों के अनुसार बसवराजू लगातार बड़े नेताओं को निशाना बनाने की योजना पर काम कर रहा था। उसके पास से बरामद दस्तावेजों में एक मुख्यमंत्री स्तर के VIP पर संभावित हमले के संकेत भी मिले हैं। कई विधायकों की हत्या में उसका नाम सीधे तौर पर जुड़ा रहा।

नक्सलवाद का अंतिम अध्याय शुरू?केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एलान किया कि भारत सरकार 2026 तक देश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त करना चाहती है।

जहां पहले 90 जिले प्रभावित थे, अब केवल 6 रह गए हैं। जो हथियार छोड़ेंगे उन्हें मुख्यधारा में लाया जाएगा, लेकिन जो बंदूक उठाएंगे, उन्हें जमीन के नीचे भेजा जाएगा।

एक युग का अंत,बसवराजू की मौत केवल एक व्यक्ति का अंत नहीं, बल्कि उस खूनी सोच का अंत है जिसने लाल गलियारे को दशकों तक जलाए रखा। उसके मारे जाने के बाद माओवादी संगठन बिखराव की स्थिति में है। नेतृत्व संकट, मनोबल में गिरावट और लगातार बढ़ती सुरक्षा कार्रवाईयों ने इस विचारधारा को सांसें गिनने पर मजबूर कर दिया है।


क्या यह बसवराजू का अंत है या नक्सलवाद का?यह सवाल इतिहास पूछेगा। लेकिन इतना तय है कि भारतीय सुरक्षा तंत्र अब सिर्फ जवाब नहीं दे रहा, निर्णायक प्रहार कर रहा है।

और जंगल में अब बंदूकें कम, राष्ट्रगान ज्यादा गूंजेगा।



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