संपादकीय: नशे के सौदागरों पर कसा शिकंजा – कब तक बचेगा उत्तराखंड?

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उत्तराखंड जैसे शांत और सुरम्य प्रदेश में नशे का अंधकार तेजी से पांव पसार रहा है। ताजा मामला नानकमत्ता निवासी मंजीत सिंह की गिरफ़्तारी का है, जिसे पिथौरागढ़ पुलिस ने उसके घर से दबोचा। मंजीत सिंह पहाड़ों को हेरोइन सप्लाई करने वाले नेटवर्क का सरगना था। उसकी गिरफ़्तारी केवल एक अपराधी की गिरफ्तारी नहीं है, बल्कि नशे के फैलते कारोबार पर करारा प्रहार है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

गत 28 मई को दो व्यक्तियों के पास से 8.48 ग्राम स्मैक की बरामदगी ने इस रैकेट की परतें उधेड़नी शुरू की थीं। जांच के दौरान मंजीत सिंह का नाम सामने आया, जो ऊधमसिंह नगर के नानकमत्ता से इस पूरे नेटवर्क को संचालित कर रहा था। पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 29 जोड़ते हुए उसे पकड़ने में सफलता पाई। यह एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन साथ ही एक डरावनी सच्चाई भी उजागर करती है — कि नशे का जाल अब सिर्फ सीमांत जिलों तक सीमित नहीं, बल्कि देहरादून, हरिद्वार, और ऊधमसिंहनगर जैसे मैदानी जिलों तक फैल चुका है।

ये तीनों जिले अब नशे की गिरफ्त में हैं। स्कूल, कॉलेज, और यहां तक कि गांव-देहात के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। और चिंता की बात यह है कि इस कारोबार की कमान कहीं दूर बैठे किसी एक “डॉन” के हाथ में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे कस्बों और गांवों से ही संचालित हो रही है।

अब समय आ गया है कि राज्य स्तर पर एक समन्वित और ठोस अभियान चलाया जाए, जिसमें पुलिस, समाज, प्रशासन और अभिभावकों की संयुक्त भागीदारी हो। नशे के सौदागरों की धरपकड़ जितनी ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है युवाओं को जागरूक करना और उन्हें नशे से दूर रखने के लिए वैकल्पिक मार्ग दिखाना।

सरकार को चाहिए कि वह केवल गिरफ्तारी तक सीमित न रहकर पूरे नेटवर्क की जड़ों को उखाड़ फेंके। यह एक संगठित अपराध है और इससे निपटने के लिए भी संगठित रणनीति की आवश्यकता है।

उत्तराखंड को नशे के अंधेरे से निकालने का वक्त आ गया है — नहीं तो कल बहुत देर हो जाएगी।


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