TIME मैगजीन की 2025 की सूची और पत्रकारिता का वैश्विक मज़ाक: मोहम्मद यूनुस: मानवता का चेहरा या पक्षपाती चयन?

Spread the love

2025 का वर्ष पत्रकारिता के लिए कई मोर्चों पर ऐतिहासिक साबित हो रहा है। लेकिन इस इतिहास में अगर सबसे बड़ा मज़ाक कहीं दर्ज किया जाएगा, तो वह टाइम मैगजीन की इस साल की “100 प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची” होगी। वह सूची, जिसमें भारत जैसा वैश्विक नेतृत्वकर्ता देश पूरी तरह से नदारद है और बांग्लादेश के विवादित चेहरे मोहम्मद यूनुस को प्रमुखता से स्थान दिया गया है।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

. प्रभाव की परिभाषा या टाइम की भ्रांति?

टाइम मैगजीन की यह सूची एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या वाकई प्रभाव का अर्थ अब नैतिक नेतृत्व, वैश्विक योगदान और लोकसेवा रह गया है, या सिर्फ मीडिया ऑप्टिक्स, लॉबिंग और एकतरफा एजेंडा प्रचार? 2024 की सूची में आठ भारतीय थे, 2025 में एक भी नहीं? क्या 2024 के बाद भारत ने वैश्विक मंच पर कोई योगदान नहीं दिया? या टाइम की घड़ी अब भारत के समय से पीछे चल रही है?

मोहम्मद यूनुस: मानवता का चेहरा या पक्षपाती चयन?

बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस को सूची में प्रमुखता से स्थान देना तब और अधिक आपत्तिजनक हो जाता है, जब हम देखते हैं कि उन्हीं की धरती पर हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को जलाना और महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। यूनुस को मानवाधिकार और गरीबी उन्मूलन का प्रतीक बताया गया है, लेकिन क्या उनकी चुप्पी और सहमति से हुआ यह अत्याचार भी उनकी विरासत का हिस्सा नहीं?

3. भारत की उपेक्षा: संयोग नहीं, साजिश?

मोदी सरकार की वैश्विक कूटनीति, G20 की ऐतिहासिक मेज़बानी, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप क्रांति, और भारत का चंद्रयान मिशन—यह सब क्या प्रभाव नहीं है? फिर भारत को इस सूची से बाहर क्यों रखा गया? क्या यह सिर्फ एक भूल है या जानबूझ कर एक रणनीतिक चुप्पी है ताकि भारत की उभरती हुई शक्ति को वैश्विक विमर्श से दूर रखा जाए?

TIME का ट्रैक रिकॉर्ड: पत्रकारिता या प्रचार तंत्र?

टाइम मैगजीन ने पहले भी विवादास्पद चेहरों को अपनी सूची में स्थान दिया है—कभी ट्रंप, कभी ज़ेलेंस्की, कभी तालिबान के तथाकथित सुधारवादी नेता। पत्रकारिता के नाम पर यह प्रचार और पूर्वाग्रह का खेल बन चुका है, जहां नैरेटिव वही चलेगा जो ‘पश्चिमी एजेंडा’ से मेल खाता हो। क्या अब पत्रकारिता में लोकप्रियता का पैमाना सोशल मीडिया फॉलोअर्स और पश्चिमी मीडिया संस्थानों की लॉबिंग बन चुकी है?

‘Bad Journalism Day’ और ‘Good Friday’

14 अप्रैल को जब विश्वभर में लोग Good Friday पर संयम और आत्मविश्लेषण में लीन थे, टाइम मैगजीन ने पत्रकारिता की शवयात्रा निकाल दी। यह दिन अब ‘Bad Journalism Day’ के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए, जब विश्व की सबसे प्रसिद्ध मैगजीन ने साबित कर दिया कि पत्रकारिता अब नैतिकता नहीं, बल्कि बाजारवाद और एजेंडे की कठपुतली बन चुकी है।

मोदी फैक्टर: सबसे बड़ा अनुपस्थित चेहरा

दुनिया भर में नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक सक्रियता, उनका वैश्विक नेतृत्व और राष्ट्र निर्माण की दिशा में उनके कदमों को भले ही लाखों लोग मान्यता दें, लेकिन TIME मैगजीन को वह दिखाई नहीं देता। शायद इसलिए कि मोदी किसी लॉबी के सदस्य नहीं हैं, किसी एजेंडे का चेहरा नहीं हैं और स्वतंत्र राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं—जो पश्चिमी मीडिया के लिए असहज करने वाला है।

TIME मैगजीन: एक पीआर एजेंसी का लिबास पहने पत्रकारिता

अब यह पूछना जरूरी हो गया है—क्या TIME मैगजीन वाकई एक पत्रकारिता संस्थान है या यह एक वैश्विक पीआर एजेंसी है, जो अपने हितधारकों की छवि निर्माण और ध्वस्त करने का ठेका लेती है? इसकी सूची अब ‘Influential People’ की नहीं, बल्कि ‘Influence Bought People’ की हो चुकी है।

पाठकों और समाज की प्रतिक्रिया

भारत ही नहीं, विश्व भर में सोशल मीडिया पर इस सूची को लेकर आक्रोश फूटा है। लाखों पोस्ट्स, मीम्स और टिप्पणियों ने इस सूची को ‘Joke of the Year’ और ‘Agenda Driven Listing’ की संज्ञा दी है। लोग पूछ रहे हैं—अगर भारत जैसे देश को आप नजरअंदाज कर सकते हैं, तो फिर अगली बार यह सूची सीधे किसी सोशल मीडिया पोल से क्यों न बना ली जाए?

निष्कर्ष: TIME मैगजीन का अगला कॉलम—कितना भुगतान हुआ प्रभाव के लिए?

पत्रकारिता को लेकर यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। जब दुनिया को निष्पक्ष, निर्भीक और सच्ची रिपोर्टिंग की सबसे अधिक आवश्यकता है, तब TIME जैसी संस्थाएं एकतरफा एजेंडों की वाहक बन चुकी हैं। अगली बार जब यह सूची प्रकाशित हो, तो उसमें एक कॉलम यह भी हो—”प्रभावशाली बनने के लिए कितना भुगतान हुआ?” शायद तब सूची और भी पारदर्शी हो जाएगी।

भारत को इस सूची में नहीं रखकर, TIME ने अपने ही मूल्यों को खोखला किया है। अब समय है कि विश्व पत्रकारिता जग जाए और भारत जैसे लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और सांस्कृतिक महाशक्ति को उसका यथोचित स्थान दे—सूचियों में भी और विमर्शों में भी।


Spread the love