
रुद्रपुर,भारत की संस्कृति में नारी को शक्ति, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक माना गया है। हर युग में स्त्री ने अपने प्रेम, त्याग और तप के माध्यम से न केवल परिवार को जोड़ा है बल्कि समाज और संस्कृति को भी नई दिशा दी है। इन्हीं भावनाओं का मूर्त रूप हैं करवा चौथ और वट सावित्री व्रत—दो ऐसे पर्व जो अलग-अलग क्षेत्रों में मनाए जाते हैं, परंतु इनका उद्देश्य एक ही है — पति की दीर्घायु, सौभाग्य और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना।

करवा चौथ का पावन पर्व?करवा चौथ (करक चतुर्थी) हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागन स्त्रियां दिनभर निर्जला उपवास रखकर भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रदेव की आराधना करती हैं।
पर्व का शुभ मुहूर्त इस वर्ष सायं 06:19 से 07:33 बजे तक रहेगा। चंद्रोदय का समय रात्रि 08:03 बजे है।
इस बार करवा चौथ पर विशेष सिद्धि योग बन रहा है। चंद्रदेव अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे तथा कृतिका और रोहिणी नक्षत्रों का संयोग महिलाओं के लिए मानसिक शांति, सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा का वरदान लाएगा।
करवा चौथ की पूजा-विधि?भोर से पहले महिलाएं स्नानादि कर सोलह श्रृंगार करती हैं और उपवास का संकल्प लेती हैं। पूरे दिन बिना जल-पान किए वे अपने पति की लंबी आयु के लिए तप करती हैं।
सायं मुहूर्त में चौथ माता, भगवान शिव, माता गौरी, गणेशजी और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। पूजा में रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, पंचामृत, मेवा, मिठाई और करवा (जल पात्र) का विशेष महत्व होता है।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
मंत्रोच्चार के साथ व्रत कथा का श्रवण किया जाता है —
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”
पूजन के बाद महिलाएं छलनी से चंद्र दर्शन कर अर्घ्य देती हैं और फिर अपने पति के दर्शन कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करती हैं। पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है।
छलनी से चंद्र दर्शन का रहस्य?छलनी से चंद्र दर्शन करने की परंपरा के पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा है। चंद्रदेव प्रेम, सौंदर्य और शीतलता के प्रतीक हैं। छलनी से देखने का अर्थ यह है कि जैसे छलनी अशुद्धियों को अलग कर देती है, वैसे ही स्त्रियां अपने मन और प्रेम की शुद्धता का प्रतीक बनकर अपने वैवाहिक जीवन की पवित्रता को बनाए रखने का संकल्प लेती हैं। यह प्रेम और समर्पण का सबसे सुंदर प्रतीक है।
उत्तराखंड की परंपरा — वट सावित्री व्रत?उत्तर भारत में जहां करवा चौथ का प्रचलन अधिक है, वहीं उत्तराखंड की पर्वतीय संस्कृति में वट सावित्री व्रत को विशेष महत्व प्राप्त है।
यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या या पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं वट (बरगद) वृक्ष की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
वट वृक्ष भारतीय संस्कृति में त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु, महेश—का प्रतीक माना गया है। इसकी जड़ें ब्रह्मा, तना विष्णु और शाखाएं महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। अतः इसकी पूजा का अर्थ है सम्पूर्ण सृष्टि के पालनकर्ता ईश्वर से सौभाग्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करना।
सावित्री-सत्यवान की अमर कथा?वट सावित्री व्रत का आधार सावित्री और सत्यवान की दिव्य कथा है।
कथा के अनुसार, सत्यवान की मृत्यु नियति द्वारा निश्चित थी, परंतु सावित्री ने अपने अद्भुत साहस, तप और भक्ति से यमराज से अपने पति का प्राण वापस ले लिया।
सावित्री का यह तप स्त्री शक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है — एक पत्नी का अपने पति के प्रति समर्पण इतना प्रबल कि मृत्यु भी उसके प्रेम को जीत न सकी।
इसी कारण हिमालयी क्षेत्र की महिलाएं सावित्री की भक्ति को जीवन का आदर्श मानकर यह व्रत रखती हैं।
पहाड़ की महिलाएं क्यों रखती हैं वट सावित्री व्रत
?उत्तराखंड की पर्वतीय समाज-व्यवस्था में करवा चौथ जैसी परंपरा का स्थान वट सावित्री व्रत ने लिया है।
इसका मुख्य कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति और जीवनशैली है। पहाड़ों में महिलाएं सदियों से अपने पतियों के परदेश जाने के बाद वर्षों तक उनकी प्रतीक्षा करती हैं।
वट सावित्री का व्रत उनके धैर्य, विश्वास और प्रेम की प्रतीक साधना है।
वट वृक्ष के नीचे पूजा करना, उसकी जड़ों में सूत लपेटना और कथा सुनना — यह सब प्रकृति और देवी शक्ति के साथ आत्मिक संवाद का प्रतीक है।
करवा चौथ और वट सावित्री—दो रूप एक भावना?हालांकि इन दोनों पर्वों की तिथि और विधि भिन्न हैं, परंतु दोनों की आत्मा एक ही है — पति-पत्नी के बीच निष्ठा, प्रेम और आध्यात्मिक संबंध का उत्सव।
करवा चौथ में जहां चंद्रमा साक्षी है, वहीं वट सावित्री में वट वृक्ष।
दोनों ही स्त्री की भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से सौभाग्य और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
उत्तराखंड की महिलाएं वट सावित्री के माध्यम से प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करती हैं, वहीं मैदानी क्षेत्रों की महिलाएं करवा चौथ में चंद्रदेव की कृपा से अपने दांपत्य जीवन को और भी मधुर बनाती हैं।
आधुनिक समाज में इन पर्वों का महत्व
?आज जब जीवन भागदौड़ और भौतिकता में उलझा हुआ है, तब ऐसे पर्व नारी को आध्यात्मिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
ये पर्व हमें स्मरण कराते हैं कि दांपत्य जीवन केवल आकर्षण नहीं, बल्कि आस्था और अनुशासन का बंधन है।
सावित्री का साहस और करवा चौथ की तपस्या आज की नारी को यह सिखाती है कि प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि निःस्वार्थ समर्पण में जीना चाहिए।
करवा चौथ और वट सावित्री व्रत — दोनों ही भारतीय नारी की आत्मा के दो आयाम हैं।
एक में चंद्रदेव की शीतलता है, दूसरे में वट वृक्ष की अडिग स्थिरता।
दोनों ही पर्व हमें बताते हैं कि जब नारी अपने प्रेम में अडिग होती है, तब प्रकृति भी उसके साथ खड़ी होती है।
ऐसे पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की धड़कनें हैं — जो हर वर्ष हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा प्रेम वही है जिसमें निष्ठा, भक्ति और त्याग का संगम हो।
व्रत नारी का नहीं केवल तप, यह तो संस्कृति की आत्मा है;
प्रेम और श्रद्धा का यह दीपक, हर युग में उजियारा करता रहा है।”
अब ऐसे में अगर इस दिन जो महिलाएं व्रत रख रही हैं, उन्हें जानना बेहद जरूरी है कि आपके शहर में चांद कब दिखेगा?
आइए इस लेख में विस्तार से आपके शहर के समय के बारे में जानते हैं।
करवा चौथ के दिन अपने शहर में चांद निकलने का समय जानें
- दिल्ली – रात 8 बजकर 13 मिनट
- नोएडा – रात 8 बजकर 13 मिनट
- मुंबई – रात 8 बजकर 55 मिनट
- गांधीनगर – रात 8 बजकर 46 मिनट
- शिमला – रात 8 बजकर 06 मिनट
- कोलकाता – रात 7 बजकर 41 मिनट
- चंडीगढ़ – रात 8 बजकर 08 मिनट
- पंजाब – रात 8 बजकर 10 मिनट
- अहमदाबाद – रात 8 बजकर 47 मिनट
- भोपाल – रात 8 बजकर 26 मिनट
- हरिद्वार – रात 8 बजकर 05 मिनट
- जम्मू – रात 8 बजकर 11 मिनट
- देहरादून – रात 8 बजकर 04 मिनट
- लखनऊ – रात 8 बजकर 02 मिनट
- पटना – रात 7 बजकर 48 मिनट
- जयपुर – रात 8 बजकर 23 मिनट
- रायपुर – रात 8 बजकर 01 मिनट
- लखनऊ – 8 बजकर 02 मिनट
- कानपुर – 8 बजकर 06 मिनट
- अगरा – 8 बजकर 14 मिनट
- मथुरा – 8 बजकर 16 मिनट
- झांसी – 8 बजकर 17 मिनट
- गाजियाबाद – 8 बजकर 12 मिनट
- मेरठ – 8 बजकर 10 मिनट
- हापुड़ – 8 बजकर 10 मिनट
- गोरखपुर- 7 बजकर 53 मिनट
- अलीगढ़ – 8 बजकर 12 मिनट
- बनारस – 7 बजकर 58 मिनट
- प्रयागराज – 8 बजकर 02 मिनट
- अयोध्या – 8 बजकर 49 मिनट
- मुरादाबाद – 8 बजकर 06 मिनट
- बरेली – 8 बजकर 05 मिनट
- अमरोहा- 8 बजकर 07 मिनट
- पीलीभीत – 8 बजकर 01 मिनट
- लखीमपुर खीरी – 8 बजे
- बहराइच – 7 बजकर 57 मिनट
- मैनपुरी – 8 बजकर 09 मिनट
- एटा – 8 बजकर 10 मिनट
- देवरिया – 7 बजकर 52 मिनट
- आजमगढ़- 7 बजकर 55 मिनट
- बिजनौर – 8 बजकर 07 मिनट
- बस्ती – 7 बजकर 55 मिनट
- बलिया – 7 बजकर 52 मिनट
- शामली – 8 बजकर 11 मिनट
- शाहजहांपुर – 8 बजकर 04 मिनट
- गोंडा – 7 बजकर 57 मिनट
- मुजफ्फरनगर – 8 बजकर 09 मिनट
- उन्नाव – 8 बजकर 09 मिनट
- हरदोई – 8 बजकर 04 मिनट
- ललितपुर- 8 बजकर 18 मिनट
दरअसल, करवा चौथ सिर्फ़ व्रत का दिन नहीं है, बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते में स्नेह और गरिमा का प्रतीक भी है।
पूरे दिन व्रत रखने के बाद, महिलाएँ शाम को चाँद देखकर अपना व्रत तोड़ती हैं। विशेषज्ञ महिलाओं को शाम को करवा चौथ का व्रत तोड़ने के बाद कुछ हल्का खाने की सलाह देते हैं। विशेषज्ञ महिलाओं को व्रत से पहले सरगी (एक पवित्र भोजन) के दौरान भी पौष्टिक भोजन खाने की सलाह देते हैं, ताकि उन्हें दिन भर किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि करवा चौथ पर महिलाओं को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, और एक स्वस्थ करवा चौथ थाली के लिए वे क्या उपाय अपना सकती हैं।
सरगी में क्या शामिल करें
विशेषज्ञ करवा चौथ का व्रत शुरू होने से पहले सरगी में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल करने की सलाह देते हैं जो ऊर्जा और हाइड्रेशन बनाए रखने में मदद करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थ – आप अपनी करवा चौथ की सरगी में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर पराठे, डोसा या चीला शामिल कर सकते हैं। इन्हें खाने से पेट फूलने और गैस जैसी भूख से जुड़ी समस्याओं से बचाव हो सकता है।
दूध से बनी मिठाइयाँ – आप अपनी सरगी में दूध या दूध से बनी मिठाइयाँ या फेनी भी शामिल कर सकते हैं।
ताज़े फल और सब्ज़ियाँ – ताज़े फल और सब्ज़ियाँ, खासकर अनार, संतरे और अनानास, भी अपनी सरगी में शामिल करें।
सूखे मेवे – भीगे हुए मेवे, बादाम, अखरोट और किशमिश, नारियल पानी के साथ, अपनी सरगी में शामिल कर सकते हैं, जो शरीर को हाइड्रेटेड रखेंगे और पूरे दिन मिनरल बैलेंस बनाए रखेंगे।
व्रत तोड़ने के बाद क्या खाएं
मिठाइयाँ – विशेषज्ञ करवा चौथ का व्रत तोड़ने के तुरंत बाद भारी भोजन से बचने की सलाह देते हैं। व्रत हमेशा मिठाई से तोड़ना चाहिए। इसके लिए आप कुछ मिठाइयाँ या खीर खा सकते हैं। ये तुरंत ऊर्जा प्रदान करती हैं और पेट को हल्का रखती हैं।
नारियल पानी – सूखे उपवास के बाद तरोताज़ा और हाइड्रेटेड रहने के लिए नारियल पानी पीना फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं जो शरीर के खनिज संतुलन को बनाए रखते हैं।
हल्का भोजन – उपवास तोड़ने के बाद मूंग दाल की खिचड़ी, सब्ज़ी उपमा और फलों का सलाद जैसे हल्के खाद्य पदार्थ खाना फायदेमंद होता है। ये पचने में आसान होते हैं और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
उपवास तोड़ने के बाद क्या न खाएं
विशेषज्ञ करवा चौथ का व्रत तोड़ने के बाद तैलीय और तले हुए खाद्य पदार्थों से परहेज करने की सलाह देते हैं, क्योंकि ये खाद्य पदार्थ पेट की समस्याएँ पैदा कर सकते हैं। समोसे, बर्गर और पिज्जा जैसे फास्ट फूड से भी बचना चाहिए, क्योंकि ये पेट पर भारी पड़ सकते हैं। इसके अलावा, उपवास के बाद मांसाहारी भोजन से भी परहेज करने की सलाह दी जाती है।✧ धार्मिक और अध्यात्मिक


