आज महेश नवमी का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह हिन्दू धर्म का एक पावन अवसर है, जो हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के रूप में मनाया जाता है।

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यह दिन उनके आशीर्वाद से दांपत्य जीवन में प्रेम, समृद्धि और सौहार्द बनाए रखने का प्रतीक माना जाता है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

शिव कथा का श्रवण करते हैं और रुद्राभिषेक व मंत्र जाप के माध्यम से शिव कृपा पाने का प्रयास करते हैं। खास बात यह है कि इस वर्ष महेश नवमी पर तीन शुभ योगों का संयोग बन रहा है, जिससे आज की पूजा और साधना और भी फलदायी मानी जा रही है।

हालांकि इस बार अभिजीत मुहूर्त नहीं है, लेकिन पूरे दिन शिव आराधना के लिए उत्तम माना गया है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा और पारिवारिक सुख-शांति का आधार भी है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

महेश नवमी तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल की नवमी तिथि आरंभ: 3 जून , रात्रि 9:56 मिनट पर
ज्येष्ठ शुक्ल की नवमी तिथि समाप्त: 4 जून , रात्रि11:54 मिनट पर
उदयातिथि के आधार पर महेश नवमी 4 जून दिन बुधवार को मनाई जाएगी।

3 शुभ योग में महेश नवमी

  • इस बार की महेश नवमी पर 3 शुभ योग बन रहे हैं
  • पहला रवि योग: महेश नवमी पर रवि योग पूरे दिन है।
  • दूसरा सिद्धि योग: प्रातः 8:29 मिनट से प्रारंभ होगा, जो उसके बाद पूरे दिन है।
  • नवमी तिथि में सर्वार्थ सिद्धि योग: 5 जून ,तड़के 03:35से प्रात: 05:23 मिनट तक
  • उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र प्रात:काल से लेकर 5 जून को तड़के 03 बजकर 35 मिनट तक
  • इसके बाद से हस्त नक्षत्र है।

महेश नवमी 2025 मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 04:02 से 04:43 तक
विजय मुहूर्: दोपहर 02: 38 से 03:34 मिनट तक
निशिता मुहूर्: रात्रि 11:59 मिनट से देर रात 12 बजकर 40 मिनट तक

महेश नवमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महेश नवमी का पर्व सिर्फ शिव उपासना का दिन नहीं है, बल्कि यह माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति और उसके आध्यात्मिक उत्थान से जुड़ा हुआ विशेष अवसर भी है। मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माहेश्वरी समाज के पूर्वज, जो किसी ऋषि के श्राप से पीड़ित थे, भगवान शिव की कृपा से उस श्राप से मुक्त होकर नया जीवन प्राप्त कर सके। इसी कारण इस दिन को “महेश नवमी” के रूप में मनाया जाता है।

माहेश्वरी समाज इस दिन को अपनी संस्थापक तिथि के रूप में श्रद्धा और भक्ति से मनाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। शिव को कुलदेवता मानने वाला यह समाज मानता है कि शिव की आज्ञा से ही उन्होंने क्षत्रिय कर्म त्यागकर वैश्य धर्म को अपनाया और समाज सेवा, व्यापार और आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हुए। इस दिन शिवभक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गर्व भी सशक्त होता है।


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