आज हम को एक फोन के लिए लाइन में लगी भारत की Gen-Z का विश्लेषण करेंगे. आखिर उस फोन में ऐसा क्या है, जिसके लिए Gen-Z का एक तबका घंटों भर लाइन में लगा रहा. आज देश के कई बड़े शहरों में युवा लाइन में लगे दिखे.

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लाइन लगाना स्टेटस, डिजिटल रूम का जुनून…क्यों फोन बदलना Gen-Z का लाइफस्टाइल बन गया?

कोई 24 घंटे से लाइन खड़ा था, तो कोई 12 घंटे लाइन में खड़ा था. ये लाइन किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए नहीं थी. ये लाइन किसी नौकरी का फॉर्म भरने के लिए नहीं थी. ये लाइन थी एक फोन खरीदने के लिए.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

भारत में आज से अमेरिकी कंपनी एपल के आई फोन 17 की बिक्री शुरू हुई. आप तो जानते ही हैं कि एपल के फोन आम फोन के मुकाबले बहुत महंगे होते हैं. बावजूद इसके फोन खरीदने के लिए जेन-जी वाली पीढ़ी के नौजवान घंटों लाइन में लगे रहे. एक फोन के लिए मारामारी क्यों हो रही है हम आपको बताएंगे लेकिन पहले सुनिए आईफोन खरीदने के लिए जेन जी वाली पीढ़ी ने कैसी-कैसी मशक्कत की.

महंगे फोन की ऐसी दीवानगी क्यों हैं?

भारत में आम धारण यही है कि लाइन वहां लगती है जहां कोई चीज मुफ्त में या सस्ती कीमत पर मिल रही हो. लाइन अस्पताल के बाहर लगती है. लाइन फॉर्म भरने के लिए लगती है. लेकिन ये जेन जी का जमाना है. यहां लाइन वो फोन खरीदने के लिए लगी जो आम फोन से महंगा है और भारत में तीन चौथाई आबादी के लिए आउट ऑफ बजट है. आखिर इस महंगे फोन की ऐसी दीवानगी क्यों हैं.

इसपर चर्चा से पहले आपको मुंबई के बीकेसी से आई तस्वीरें जरूर देखनी चाहिए. बीकेसी में एपल स्टोर के बाहर आईफोन खरीदने के लिए भीड़ बहुत थी. जेन जी वाले होनहारों को लग रहा था कि आज फोन नहीं खरीदा तो जैसे कयामत आ जाएगी. इसी अफरातफरी में मारपीट शुरू हो गई. आईफोन के स्मूथ की पैड पर उंगुली चलाने को बेताब जेन जी वाले नौजवान मुक्का चलाने लगे.

फोन पहले दिन ही खरीदना ये वाली सोच जेन जी में क्यों?

अब सवाल ये है कि आखिर फोन पहले दिन ही खरीदना ये वाली सोच जेन जी में क्यों है. दो दिन बाद फोन खरीद लेंगे तो क्या ही बिगड़ जाएगा. अब हम इस सोच को समझते हैं. इसे मार्केटिंग की भाषा में FOMO यानी Fear of Missing Out कहते हैं. ये मार्केटिंग की बहुत सोची-समझी रणनीति है

इसमें ऐसे प्रचारित किया जाता है जैसे प्रोडक्ट का स्टॉक जल्द ही खत्म हो जाएगा. यानी अगर आपने पहले नहीं खरीदा तो आपको लंबा इंतजार करना पड़ेगा. खरीदार को ये महसूस कराया जाता है कि आप प्रोडक्ट को पहले खरीद कर स्पेशल बन जाएंगे. इसे सीधे खरीददार के सम्मान से जोड़ा जाता है. मार्केटिंग से ऐसा माहौल बनाया जाता है कि प्रोडक्ट अगर आपके पास नहीं है तो आप स्पेशल नहीं है. बाकी काम सोशल मीडिया में रील और पिक्चर वाली आदत कर देती है. प्रोडक्ट खरीदने के बाद खुद को स्पेशल बताने के लिए जेन-जी वाली पीढ़ी फोटो, रील और स्टेट्स के जरिए इसे सोशल मीडिया पर प्रमोट करेगी. खुद को दूसरे से स्पेशल बताएगी. इससे दूसरे को लगेगा की कुछ छूट गया. ये अंधी दौड़ है. जिसे इस बार प्रोडक्ट पहले नहीं मिला वो अगली बार 24 घंटे पहले यूं ही स्टोर के बहर खड़ा नज़र आएगा.

सेलिब्रिटी और इंफ्लुएंसर्स

एपल जैसी कंपनियां कोई भी प्रोडक्ट लॉन्च करने से पहले करोड़ों रुपए खर्च करती हैं. आईफोन को लेकर जेन जी में जो क्रेज दिख रहा है ये उस खर्च का भी असर है. इसे थोड़ा डिटेल में समझते हैं. प्रोडक्ट को मार्केट में उतारने से पहले सेलिब्रिटी और दूसरे इंफ्लुएंसर्स के जरिए मीडिया हाइप क्रियेट किया जाता है. प्रोडेक्ट का इस्तेमाल करनेवालों को जेन जी की भाषा में कूल बताया जाता है. स्केर्सिटी थियेटर रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है. यानी जानबूझकर कर कम स्टॉक मार्केट में उतारा जाता है. ताकी सबको प्रोडक्ट नहीं मिले और लोगों को लगे की डिमांड ज्यादा है.

ऐसे में प्रोडक्ट की बिक्री शुरू होते ही वही होता है जो आज भारत के शहरों में दिखा. स्टोर के बाहर भीड़ लग जाती है और हर खरीदार प्रोडक्ट को पहले हाथ में लेकर खुद को दूसरों के मुकाबले स्पेशल दिखाना चाहता है. एपल के केस में ये मनोविज्ञान और भी अलग इसलिए है क्योंकि एपल अपने प्रोडक्ट को ऐसे मार्केट करता है जैसे वो स्टेटस सिंबल है. जानबूझ कर प्रोडक्ट को महंगा रखा जाता है. ताकी खरीदने वाले को महसूस हो सके की वो उन चंद लोगों में है जो ये प्रोडक्ट इस्तेमाल कर रहा है.

भारत में साल 2024 में Gen Z ने करीब 2700 घंटे फोन पर बिताए

इस मार्केटिंग रणनीति के साथ ही आईफोन को लेकर जेन जी की दीवानगी की वजह सोशल मीडिया का बढ़ता असर और फोन का इस्तेमाल भी है. भारत में साल 2024 में Gen Z ने करीब 2700 घंटे फोन पर बिताए. ये करीब साल के 112 दिन का समय होता है.

फोन जेन-जी का डिजिटल रूम!

अब समझिए.. फोन जेन जी के लिए सिर्फ एक उपकरण नहीं उनका डिजिटल रूम बन गया है. फोन से जेन जी कंटेट भी क्रियेट करती है. यानी हम जो रील, वीडियो, ब्लॉग या फोटो इंस्टाग्राम, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देखते हैं वो आमतौर पर फोन से ही शूट किया गया होता है. Gen Z के क्रियेटर्स आईफोन को ब्रांड बिल्डिंग टूल बताते है. यानी इससे कंटेट बनाकर वो ज्यादा व्यूज और क्लाइंट ब्रांड्स को आकर्षित कर सकते हैं. इसलिए अमेरिका में जेन जी के करीब 87% युवा आईफोन इस्तेमाल करते हैं. भारत में जेन जी के करीब 10% युवा आईफोन इस्तेमाल करते हैं. यहां हम आपको ये भी बताना चाहेंगे कि जेन जी वाली पीढ़ी 18 से 24 महीने में अपना फोन बदल देती है. एपल जैसी कंपनियां जेन जी की इस आदत का भी फायदा उठाती हैं. कंपनियां Gen-Z वाले खरीदारों को डिस्काउंट ऑफर करती है. उन्हें EMI पर प्रोडक्ट ऑफर किया जाता है. इतना ही नहीं, पुराने फोन की अच्छी कीमत भी ऑफर की जाती है.

यानी आईफोन के लिए जो क्रेज जेन जी में दिख रहा है वो बनाया गया है. यहां हम ये भी बताना चाहेंगे कि जेन जी अपना ज्यादा समय सोशल मीडिया, वीडियो स्ट्रीमिंग और गेमिंग जैसे काम पर खर्च करता है. प्रोडक्टिविटी के लिहाज से एक्सपर्ट इसे समय का सदुपयोग नहीं मानते. यहां हम आपको बताना चाहेंगे की अमेरिका की जेन जी को सबसे ज्यादा इनोवेटिव माना जाता है. यहां AI सेक्टर में 50 प्रतिशत से ज्यादा वर्कफोस जेन जी से है. अमेरिका में Scale AI, Fizz जैसे जेन जी के स्टार्टअप 100 बिलियन डॉलर की वैल्यूएशन रखते हैं.

चीन में जेन जी के पास सबसे ज्यादा पेटेंट हैं. 2023 में दुनिया के आधे पेटेंट चीन के जेन जी के नाम रजिस्टर्ड किए गए. भारत में भी जेन जी के कुछ उद्यमियों ने EdTech और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में कंपनियां बनाई हैं. लेकिन आबादी के लिहाज से देखे तो इस मोर्चे पर हमारे देश में अभी बहुत सुधार की संभावना है.


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