वक्फ में पारदर्शिता: मुसलमानों के हक की वापसी या राजनीतिक शोर? वक्फ में पारदर्शिता: मुसलमानों के नाम पर लूट के खिलाफ एक ईमानदार पहल

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संपादकीय;भारत में वक्फ संपत्तियाँ मुस्लिम समुदाय की एक अमूल्य धरोहर हैं, जिनका उद्देश्य गरीबों, यतीमों, और मजलूमों की सेवा करना है। परंतु वर्षों से वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और बंद कमरे की राजनीति ने इनका मूल उद्देश्य ही धुंधला कर दिया है। ऐसे में जब मोदी सरकार ने नया वक्फ बिल लाकर वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता लाने की बात की है, तो इसे मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों के नाम पर वक्फ को लूटने वालों के खिलाफ एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]

क्यों जरूरी है वक्फ में पारदर्शिता?

वक्फ संपत्तियाँ करोड़ों की हैं — स्कूल, अस्पताल, दुकानें, जमीनें — पर इनमें से ज्यादातर या तो अवैध कब्जों में हैं या फिर प्रभावशाली लोगों के निजी हितों में इस्तेमाल हो रही हैं। पारदर्शिता से यह सुनिश्चित होगा कि:

  1. संपत्तियों की सही निगरानी हो।
  2. जो लाभ गरीब मुसलमानों को मिलना चाहिए, वह उन तक पहुँचे।
  3. वक्फ बोर्ड की नियुक्तियाँ योग्यता के आधार पर हों, न कि राजनीतिक सिफारिश से।
  4. भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर लगाम लगे।

मुसलमानों को इससे क्या फायदा होगा?

  • शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार: वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय को स्कूलों, कॉलेजों और अस्पतालों पर खर्च किया जा सकता है।
  • रोजगार के अवसर: यदि वक्फ की जमीनों पर व्यवसायिक परियोजनाएँ पारदर्शी तरीके से शुरू हों, तो समुदाय को नौकरियाँ मिल सकती हैं।
  • यतीमों और विधवाओं को मदद: मूल उद्देश्य के अनुरूप इनकी देखभाल की जा सकती है।

क्या हो सकते हैं नुकसान?

  • राजनीतिक रंग दिए जाने का खतरा: सुधारों को “धर्म विरोधी” बताकर भावनाएं भड़काने की कोशिश हो सकती है।
  • स्थानीय दबंगों का विरोध: जिनका अब तक इस सिस्टम पर कब्जा रहा है, वे पारदर्शिता के खिलाफ माहौल बना सकते हैं।

वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता का विरोध दरअसल उस वर्ग को खलता है जो वर्षों से इसकी मलाई काट रहा है। यदि वक्फ का असली हक़दार — गरीब, वंचित, और जरूरतमंद मुसलमान — इससे लाभान्वित हो, तो यह किसी भी सुधार से बढ़कर एक इंकलाब होगा।

मुस्लिम समाज को चाहिए कि वह राजनीति से ऊपर उठकर इस पहल को समझे, सवाल पूछे और सिस्टम का निगरानीकर्ता बने। क्योंकि जब हक़ खुद जागता है, तो कोई उसे छीन नहीं सकता।


वक्फ में पारदर्शिता: मुसलमानों के नाम पर लूट के खिलाफ एक ईमानदार पहल

“नया वक्फ बिल मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के खिलाफ है जो मुसलमानों के नाम पर वक्फ की संपत्तियों को लूट रहे हैं।” — यह बात समझना आज हर मुसलमान के लिए बेहद जरूरी है, खासकर उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहां मुस्लिम आबादी सीमित जरूर है, लेकिन उनकी ज़रूरतें और समस्याएं गहरी हैं।

वक्फ क्या है?

वक्फ एक धार्मिक न्यास होता है, जिसमें मुसलमान अपनी संपत्ति दान करते हैं ताकि उसका उपयोग यतीमों, गरीबों, छात्रों और मजलूमों की मदद के लिए हो। पूरे देश में लाखों एकड़ वक्फ संपत्ति है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और निजी हितों की भेंट चढ़ चुका है।

मोदी सरकार का मकसद क्या है?

सरकार का इरादा है कि वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता लाई जाए ताकि इन संपत्तियों का सही इस्तेमाल हो सके। नया वक्फ बिल इसी दिशा में एक प्रयास है:

  • ऑडिट और निगरानी अनिवार्य बनाना
  • संपत्तियों की डिजिटल मैपिंग और रिकॉर्डिंग
  • बोर्ड की नियुक्तियों में योग्यता का मानदंड
  • वक्फ संपत्तियों के इस्तेमाल पर रिपोर्टिंग और जवाबदेही

उत्तराखंड में स्थिति

उत्तराखंड में भी वक्फ संपत्तियाँ मौजूद हैं, जिनका सही उपयोग होने पर:

  • मुस्लिम बच्चों की शिक्षा में सुधार हो सकता है,
  • छोटे हॉस्पिटल या क्लिनिक खोले जा सकते हैं,
  • छोटे व्यापारियों को सस्ती दरों पर दुकानें दी जा सकती हैं,
  • यतीम और विधवाओं की सहायता की जा सकती है।

लेकिन आज ये संपत्तियाँ या तो बेकार पड़ी हैं या कुछ गिने-चुने प्रभावशाली लोगों के कब्जे में हैं। पारदर्शिता न होने से आम मुसलमान वंचित रह जाता है।

पारदर्शिता से फायदे:

  • हक़दार को उसका हक़ मिलेगा
  • गरीब मुसलमानों की ज़िंदगी सुधरेगी
  • वक्फ बोर्ड की साख बढ़ेगी
  • राजनीति से ऊपर उठकर समाज हित होगा

क्या हो सकते हैं नुकसान?

  • कुछ लोगों के निजी स्वार्थ खत्म होंगे, वे इसका विरोध कर सकते हैं
  • गलत अफवाहें फैलाकर इसे धार्मिक मुद्दा बनाया जा सकता है
  • यदि समुदाय ने चुप्पी साध ली, तो सुधार अधूरा रह जाएगा

उत्तराखंड के मुसलमानों को अब जागना होगा। वक्फ संपत्तियाँ उनकी सामाजिक और आर्थिक तरक्की का माध्यम बन सकती हैं, अगर वे जागरूक हों, सवाल पूछें और पारदर्शिता की माँग करें।

अब वक्त है कि हम वक्फ को “सिर्फ एक बोर्ड” न समझें, बल्कि उसे अपनी तरक्की का जरिया बनाएं।




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