अंतरिक्ष से पाताल तक की यात्रा: ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल सुरंग और आध्यात्मिक उत्तराखंड की विजय गाथा

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भूमिका: सुरंग नहीं, एक संतुलन का सेतु

उत्तराखंड की धरती योग, तप और साधना की भूमि रही है। जहाँ हर पत्थर में शिव की छवि और हर नदी में गंगा का पावन स्पर्श महसूस होता है। ऐसी पावन भूमि पर जब आधुनिक विज्ञान और निर्माण तकनीक के ज़रिए एक सुरंग बनाई जाती है, तो यह केवल एक भौतिक संरचना नहीं, बल्कि विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय का प्रतीक बन जाती है।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

जनासू सुरंग का ब्रेकथ्रू: धरती की नाभि को चीरकर बनाई गई आध्यात्मिक धरोहर

14.57 किलोमीटर लंबी सौड़-जनासू सुरंग का ब्रेकथ्रू केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, यह एक ऐतिहासिक क्षण है जब मानव संकल्प, परिश्रम और तकनीक ने हिमालय की छाती में मार्ग बनाकर देवभूमि की आध्यात्मिक यात्रा को सुलभ किया।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सांसद अनिल बलूनी की मौजूदगी में जब ‘शक्ति’ मशीन ने सुरंग को आर-पार कर दिया, तो लगा जैसे शंकर की तीसरी आंख ने धरती के गर्भ में एक उजियारा पैदा कर दिया हो।

‘शिवा’ और ‘शक्ति’: सिर्फ मशीन नहीं, शक्ति-तत्व का मूर्त रूप

इस परियोजना में लगे दो प्रमुख टीबीएम (Tunnel Boring Machines)—‘शक्ति’ और ‘शिवा’—के नाम स्वयं इस कार्य को आध्यात्मिक भाव प्रदान करते हैं। ‘शक्ति’ ने जहां ब्रेकथ्रू पूरा कर लिया, वहीं ‘शिवा’ जुलाई 2025 तक अपना कार्य पूर्ण करेगी। यह कोई संयोग नहीं बल्कि देवभूमि का संकेत है—शिव और शक्ति के बिना कोई सृजन संभव नहीं।

साधकों की तरह काम करते मज़दूर और इंजीनियर

रेल परियोजना में कार्यरत मज़दूर, इंजीनियर, अधिकारी सब मिलकर उस तपस्वी की तरह दिखते हैं जो गुफा में बैठकर अनवरत साधना कर रहा हो। हर पत्थर की खुदाई, हर इंच की माप—एक आरती की तरह की गई। जब सुरंग आर-पार हुई, तो वंदे मातरम के जयकारों ने सुरंग को एक मंदिर जैसा पवित्र अनुभव दिया।

विश्व की सबसे बड़ी रेल सुरंग: भारत की आध्यात्मिक चेतना का विस्तार

जनासू सुरंग न केवल भारत की, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी रेल सुरंगों में से एक है। 413 मीटर प्रति माह की खुदाई दर ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। लेकिन यह आंकड़े केवल अभियांत्रिकी उपलब्धि नहीं, एक संकेत हैं कि भारत अब केवल धार्मिक भूमि ही नहीं, तकनीकी शक्ति का भी केंद्र बन रहा है।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल: तीर्थयात्रा का नया अध्याय

कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, और गौचर जैसे स्थान जो अब तक केवल कठिन यात्रा के बाद पहुंचते थे, अब रेलमार्ग से जुड़ने जा रहे हैं। यह परियोजना श्रद्धालुओं के लिए केवल यात्रा को सरल नहीं बनाएगी, बल्कि उनके भीतर की आध्यात्मिक यात्रा को भी सशक्त करेगी।

प्रधानमंत्री का स्वप्न और देवभूमि का भविष्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई इस परियोजना को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने “लोगों का सपना” कहा। यह परियोजना उस विराट कल्पना का मूर्त रूप है जिसमें सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक आस्था और आधुनिकता का अद्भुत संगम है।

रायवाला का महत्व: द्वारपाल का सम्मान

पूर्व महापौर अनिता ममगाईं द्वारा रायवाला स्टेशन को सभी ट्रेनों का स्टॉपेज बनाने का प्रस्ताव केवल यातायात की दृष्टि से नहीं, एक आध्यात्मिक द्वारपाल को सम्मान देने जैसा है। रायवाला वह प्रवेश द्वार है जो गढ़वाल मंडल और योगनगरी की ऊर्जा को जोड़ता है।

सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक स्वाभिमान

जब सुरंग की खुदाई चल रही थी, तब भी परियोजना में धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखा गया। नदियों, पर्वतों, और मंदिरों की ऊर्जा को किसी प्रकार क्षति न पहुँचे, इसके लिए हर कदम पर विशेष ध्यान दिया गया। यह परियोजना विज्ञान और अध्यात्म के बीच संतुलन की मिसाल है।

स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया: उम्मीदों का उजियारा

स्थानीय लोगों के लिए यह सुरंग केवल एक मार्ग नहीं, वर्षों की प्रतीक्षा का परिणाम है। गाँवों के बुज़ुर्गों ने इसे एक चमत्कार बताया, तो युवाओं ने इसे अवसरों का नया द्वार माना। व्यापार, पर्यटन और तीर्थयात्रा की दृष्टि से इस सुरंग को ‘जीवनरेखा’ कहा जा रहा है।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण: प्रकृति के साथ संवाद

रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) और परियोजना से जुड़ी टीमों ने पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता दी। हिमालयी पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए सुरंग के निर्माण में जलस्रोतों और वन्य जीवों के मार्गों को संरक्षित रखा गया। यह परियोजना ‘सतत विकास’ का अनुकरणीय उदाहरण बन गई है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: दशकों पुराना सपना

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की कल्पना वर्षों पुरानी है। स्वतंत्रता के बाद से ही यह सपना लोगों के मन में था। 2014 के बाद इस पर तीव्र गति से काम शुरू हुआ और आज यह अपने अंतिम चरण की ओर अग्रसर है। यह इतिहास की धारा को भविष्य की ओर मोड़ने का अद्वितीय उदाहरण है।

धरती के गर्भ में साधना का आरंभ

सौड़-जनासू सुरंग के इस ब्रेकथ्रू ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि संकल्प दृढ़ हो और मार्गदर्शक योग्य हो, तो पर्वत भी रास्ता दे देता है। यह परियोजना केवल एक रेलवे निर्माण नहीं, एक महायात्रा का आरंभ है—जो भारत की आस्था, संस्कृति और आधुनिकता को जोड़ती है। यह सुरंग हिमालय में बनी एक आधुनिक यज्ञशाला है जहाँ तकनीक, तप और त्याग की आहुति देकर भविष्य के लिए एक दिव्य मार्ग तैयार किया गया है।


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