
रुद्रपुर रुड़की/देहरादून।उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रणेता, पर्वतीय गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी को उनकी पुण्यतिथि एवं शताब्दी अवसर पर राज्य आंदोलनकारियों, उत्तराखंड क्रांति दल और सामाजिक संगठनों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
अहिंसक आंदोलन में उनकी अटूट आस्था और उनके करिश्माई लेकिन सहज व्यक्तित्व के कारण, द वाशिंगटन पोस्ट ने बडोनी को “पहाड़ी गांधी” की संज्ञा दी। 18 अगस्त, 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका निधन हो गया। जीवन भर चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, बडोनी उत्तराखंड के इतिहास में एक सम्मानित और प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे।
पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी : उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आत्मा
उत्तराखंड राज्य आंदोलन का इतिहास केवल जनांदोलनों और संघर्षों का नहीं, बल्कि त्याग और तपस्या से बने उन व्यक्तित्वों का भी है जिन्होंने इस पर्वतीय राज्य की नींव रखी। इनमें सर्वप्रथम नाम आता है पर्वतीय गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी का, जिन्होंने राज्य निर्माण की अलख जगाई और उसे जन-जन तक पहुँचाया।
सन 1979 में मसूरी में गठित उत्तराखंड क्रांति दल से लेकर 1988 की ऐतिहासिक 105 दिवसीय पदयात्रा तक, बडोनी जी ने पर्वतीय राज्य की अवधारणा को गाँव-गाँव, घर-घर तक पहुँचाने का कार्य किया। उनकी सरलता, गहरी राजनीतिक समझ और संघर्षशीलता ने उन्हें जनता का सच्चा नेता बना दिया। पर्वतीय समाज के वे ऐसे पथप्रदर्शक बने, जिनके आह्वान पर पूरा पहाड़ लामबंद हुआ।
उनकी दूरदर्शिता का परिचय 1992 में बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में देखने को मिला, जब उन्होंने गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया। यही घोषणा आगे चलकर आंदोलनकारियों की सबसे बड़ी प्रेरणा बनी। वहीं 1994 में पौड़ी में आमरण अनशन ने आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया। उनके 30 दिन के तप और संकल्प ने उत्तराखंड की जनता को एक स्वर में राज्य निर्माण के लिए खड़ा कर दिया।
18 अगस्त 1999 को उनका देहावसान हुआ, लेकिन उनका जीवन संघर्ष, त्याग और बलिदान का प्रतीक बनकर आज भी आंदोलनकारियों और उत्तराखंड की जनता को प्रेरित करता है।
जब भी उत्तराखंड राज्य आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा, उसमें इंद्रमणि बडोनी का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगा। पर्वतीय गांधी की यही विरासत हमें याद दिलाती है कि राज्य केवल सीमाओं से नहीं, बल्कि आदर्शों और सपनों से जीवित रहता है।
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स परिवार की ओर से पर्वतीय गांधी को शत्-शत् नमन।
इसी क्रम में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) द्वारा घंटाघर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और तत्पश्चात केंद्रीय कार्यालय में पुष्पांजलि व गोष्ठी आयोजित की गई। वक्ताओं ने कहा कि उनकी सादगी, गंभीरता और उत्तराखंड की भूगोल व संस्कृति पर गहरी पकड़ ने उन्हें एक अद्वितीय नेता बनाया।
सन 1979 में मसूरी में गठित उत्तराखंड क्रांति दल के वे आजीवन सदस्य रहे। 1988 में उन्होंने दल के झंडे तले तवाघाट से देहरादून तक 105 दिवसीय ऐतिहासिक पदयात्रा की, जिसने अलग पर्वतीय राज्य की मांग को घर-घर तक पहुँचाया। इसी पदयात्रा से वे जनता के दिलों पर अमिट छाप छोड़कर जनप्रिय नेता बने।
लगातार संघर्ष और तपस्या के बाद 18 अगस्त 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका देहावसान हुआ।
1992 में बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में उन्होंने गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित कर दूरदर्शिता का परिचय दिया। वहीं 2 अगस्त 1994 को पौड़ी में आमरण अनशन पर बैठकर उन्होंने आरक्षण नीति व उपेक्षा का विरोध किया। उनके 30 दिवसीय अनवरत अनशन ने राज्य आंदोलन को निर्णायक धार दी और पूरे उत्तराखंड को एकजुट कर दिया।
स्वर्गीय बडोनी का जीवन त्याग, तपस्या और बलिदान का जीवंत प्रतीक है। जब-जब उत्तराखंड आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा, उसमें उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स परिवार की ओर से उत्तराखंड की पार्वतीय गांधी और राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद के साथ मिलकर हम पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
आपका बलिदान ही उत्तराखंड की पहचान है।”


