उत्तराखण्ड स्वाभिमान मोर्चा विशेष संपादकीय 🔴 “टेंडर से पहले ठेका – क्या यही है धामी राज का डिजिटल उत्तराखंड?”✍️ लेखक: उत्तराखण्ड स्वाभिमान मोर्चा संपादकीय मंडल!न्याय की प्रतीक्षा में जनता, और मुनाफे की होड़ में ठेकेदार!”

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9 जून 2025 की रात — जब उत्तराखंड की अधिकांश जनता चैन की नींद सो रही थी, देहरादून के गढ़ी कैंट में ‘महिंद्रा ग्राउंड’ पर एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने पूरे सरकारी तंत्र की पोल खोल दी। कृषि विभाग द्वारा प्रस्तावित मेले का टेंडर तो 11 जून रात 9:30 बजे खुलना था, लेकिन दो दिन पहले ही वहां हाइड्रा मशीनें दौड़ रही थीं, सामान उतारा जा रहा था, और मजदूर पूरे जोश से काम में लगे थे

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

सवाल यह है — किसके कहने पर? किस अधिकार से?

यह दृश्य सिर्फ “पूर्व-निर्धारित ठेकेदारी” का नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षित भ्रष्टाचार का जिंदा प्रमाण है।


🔍 घटना का विवरण: टेंडर से पहले ठेके की तैयारी

📍 स्थान: महिंद्रा ग्राउंड, गढ़ी कैंट

📦 कार्य: कृषि विभाग का वार्षिक मेला आयोजन

🏗️ ठेकेदार: सहारनपुर से बुलाया गया (पूर्व निर्धारित?)

⚠️ तथ्य: 11 जून को टेंडर खुलना था, लेकिन 9 जून को ही भारी निर्माण सामग्री, वाहन, मजदूर, सब तैनात!

जब उत्तराखण्ड स्वाभिमान मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य त्रिभुवन चौहान जी व संपादकीय प्रतिनिधि मौके पर पहुंचे, तो यह सबकुछ उनकी आंखों के सामने हो रहा था। यह कैसे संभव है कि बिना टेंडर स्वीकृति के कोई भी ठेकेदार लाखों रुपये की सामग्री और मज़दूरों को पहले ही मौके पर भेज दे?

क्या उसे पूर्व जानकारी थी? या फिर पूरी शासन व्यवस्था एक रची-बसी मिलीभगत में शामिल है?


⚖️ प्रशासन का रुख – नकारात्मक और दिशाहीन

जब इस मामले में तत्काल कृषि निदेशक से बात की गई तो उन्होंने कहा — “काम रोक दो”।

थानाध्यक्ष से संपर्क किया गया — उन्होंने कहा “यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता”।

तो फिर सवाल यह है — इस घोटाले का अधिकार क्षेत्र आखिर किसके पास है?

क्या यह सिर्फ ठेकेदार का मामला है? या सरकार की छत्रछाया में फलता-फूलता एक माफिया नेटवर्क?


🧾 कौन हैं जिम्मेदार?

यह कार्यक्षेत्र उसी मंत्री का है, जिनका नाम अक्सर विवादों में रहता है — मंत्री गणेश जोशी

क्या मंत्रीजी के आशीर्वाद से यह ठेका पूर्व-निर्धारित कर दिया गया था?

क्या कृषि विभाग की निविदा प्रणाली अब केवल दिखावा बन गई है?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ‘डिजिटल इंडिया’, ई-गवर्नेंस, और पारदर्शिता की बात तो करते हैं, लेकिन उनके राज्य में टेंडर से पहले ही ठेकेदारों को ग्रीन सिग्नल कैसे मिल जाता है?


💣 यह “डिजिटल उत्तराखंड” नहीं, “डिजिटल भ्रष्टाचार” है

  • ई-निविदा का कोई मतलब नहीं अगर कार्य पहले ही आरंभ हो जाए।
  • पारदर्शिता का ढिंढोरा तब ध्वस्त हो जाता है, जब परिणाम पहले से तय हों।
  • लोक सेवा आयोग से लेकर गांव के विकास कार्य तक — हर जगह फिक्सिंग!

क्या यही है ‘डबल इंजन सरकार’ का असली चेहरा?


📢 जनता की अदालत में सरकार कटघरे में

हम, उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा, स्पष्ट शब्दों में कहना चाहते हैं कि यह घोटाला केवल एक टेंडर का नहीं है

यह पूरी राजनीतिक व्यवस्था में सड़ांध का प्रमाण है।

आज उत्तराखंड की न्यायपालिका, पत्रकारिता, और प्रशासन के सामने एक ऐतिहासिक अवसर है —

या तो सच्चाई के साथ खड़े हों, या मौन होकर भ्रष्टाचार के सहभागी बनें।


🙏 हमारा संकल्प — संघर्ष न्याय तक।हम इस मामले को:

  • उत्तराखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका के रूप में ले जाएंगे।
  • RTI और तथ्यात्मक जांच द्वारा पूरे प्रकरण को उजागर करेंगे।
  • जरूरत पड़ने पर जन आंदोलन का बिगुल भी फूंकेंगे।

क्योंकि यह आंदोलन किसी व्यक्ति या संगठन का नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा का सवाल है।


🔥 यह सवाल सिर्फ टेंडर का नहीं — उत्तराखंड की प्रतिष्ठा का है

क्या जनता की गाढ़ी कमाई से इस प्रकार पूर्व नियोजित भ्रष्टाचार होगा?

क्या हर ठेकेदार को सरकार की मिलीभगत से ‘शॉर्टकट’ मिलेगा?

👉🏼 न्यायपालिका को निर्णय करना है — क्या वह सत्ता के दबाव से ऊपर है?👉🏼 सरकार को जवाब देना है — क्या यह शासन है या कारोबार?


उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा
“अब ये संघर्ष थमेगा नहीं – जब तक पारदर्शिता का सूरज नहीं उगेगा”


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