संपादकीय: “जनसेवा या जनधन संग्रह? गणेश जोशी से जवाब चाहता है उत्तराखंड”

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रुद्रपुर उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर आ गई है जहां सवाल उठ रहे हैं, जवाब नहीं। राजनेता गणेश जोशी के खिलाफ हाईकोर्ट में आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुनवाई शुरू हो चुकी है और यह न सिर्फ एक व्यक्ति विशेष का मामला है, बल्कि पूरे उत्तराखंड की राजनीतिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह है।

पिछले कुछ वर्षों में गणेश जोशी का नाम जितनी बार विकास कार्यों को लेकर चर्चा में आया है, उससे कहीं ज्यादा बार वह विवादों, घोटालों और आरोपों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं — फिर चाहे वह उद्यान विभाग में फलों के पौधों की काल्पनिक संख्या हो, सैन्यधाम निर्माण की अनियमितताएं हों, जैविक खेती के नाम पर विदेशी दौरों की श्रृंखला हो या हाल ही में विवादित कृषि मेला, जो अंततः रद्द करना पड़ा। लेकिन इन सबके बावजूद सबसे बड़ा और गंभीर सवाल अब यह है कि मात्र 15 वर्षों की राजनीतिक पारी में उन्होंने 9 करोड़ की संपत्ति कैसे अर्जित की?

हाईकोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार, जोशी द्वारा 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान दाखिल हलफनामे में घोषित संपत्ति को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता विकेश नेगी ने यह सवाल उठाया है। अब अदालत ने जोशी से स्पष्ट काउंटर एफिडेविट मांगा है कि यह संपत्ति कैसे और किन स्रोतों से अर्जित की गई। यह कदम न केवल कानूनी दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि उत्तराखंड की जनता के लिए भी राहत देने वाला है जो अक्सर यह देखकर हताश होती रही है कि ‘सफेदपोश’ लोग जनता के भरोसे को किस तरह निजी हित में बदल लेते हैं।

गणेश जोशी कोई साधारण विधायक नहीं हैं, वे प्रदेश सरकार में मंत्री हैं और ‘कृषि और सैनिक कल्याण’ जैसे संवेदनशील विभागों को संभालते हैं। ऐसे में उनके ऊपर लगे आरोप सिर्फ व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत विफलता और नैतिक पतन का द्योतक हैं। क्या यह विडंबना नहीं है कि एक ओर पांच राज्यों के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक सरकारी अस्पताल के आईसीयू में जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं जोशी जैसे अपेक्षाकृत नए नेता भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन बैठे हैं?

उत्तराखंड की राजनीति में यह कोई पहला मामला नहीं है, लेकिन अब बदलाव जरूरी है। मुख्यधारा की मीडिया, जिसे सटीक रूप से “गणेश मीडिया” कहा गया है, ने इस मामले पर मौन साध रखा है, जिससे साफ होता है कि सत्ता और पत्रकारिता के बीच जो स्वस्थ दूरी होनी चाहिए, वह ध्वस्त हो चुकी है। इसीलिए अब जनता, न्यायपालिका और स्वतंत्र आवाज़ों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी नेता ‘जनता के सेवक’ के बजाय ‘जनता का सौदागर’ न बने।

अब गेंद गणेश जोशी के पाले में है। उन्हें यह साबित करना होगा कि उनकी संपत्ति वैध है, अथवा उन्हें सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। उत्तराखंड की जनता अब सिर्फ विकास योजनाओं के उद्घाटन और फ़ोटो खिंचवाने तक सीमित नहीं रहना चाहती, वह जवाबदेही चाहती है — और यह जवाबदेही कोर्ट के कटघरे से होकर ही आएगी।

-अवतार सिंह बिष्ट

वरिष्ठ संपादक, शैल ग्लोबल टाइम्स / हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स

(रुद्रपुर, उत्तराखंड)


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