विश्वनाथ-जगदी शिला डोली रथ यात्रा-2025: हरिद्वार से उठी धर्म, समाज और संस्कृति की अलख दिनेश चंद्र भट्ट

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08 मई 2025 को धर्मनगरी हरिद्वार एक बार फिर अध्यात्म, संस्कृति और सामाजिक समरसता के संगम का साक्षी बनी। उत्तराखंड के पूर्व कबीना मंत्री श्री मंत्री प्रसाद नैथानी के संयोजन में ‘श्री विश्वनाथ-जगदी शिला डोली रथ यात्रा-2025’ का भव्य शुभारंभ हुआ। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामाजिक चेतना, सर्वधर्म समभाव, पर्यावरणीय जागरूकता और भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुकी है।

रिपोर्टर,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /दिनेश भट्ट

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और परंपरा का गौरव‘डोली यात्रा’ की परंपरा कोई आज की नहीं है। सदियों से देवभूमि उत्तराखंड में देव डोलियों के माध्यम से देवस्थलों का भ्रमण और जनमानस से उनका संवाद एक पवित्र रिवाज रहा है। ‘श्री विश्वनाथ-जगदी शिला’ यात्रा इसी परंपरा की जीवंत कड़ी है, जिसका मूल उद्देश्य समाज में नैतिकता, आध्यात्मिकता और एकता का भाव जगाना रहा है।

हरिद्वार से हुआ शुभारंभ: आस्था का सागर उमड़ा,हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी से जब यात्रा का शुभारंभ हुआ, तो पूरा क्षेत्र “हर हर महादेव”, “जय जगदी शिला”, और “सर्वधर्म समभाव की जय” के नारों से गूंज उठा। डोलियों को रथों में सुसज्जित कर भव्य श्रृंगार किया गया। साथ ही मंत्रोच्चारण, वैदिक हवन, संगीतमय भजन और शंखनाद से वातावरण पूरी तरह आध्यात्मिक हो गया।

यात्रा की विशेषताएं: केवल धार्मिक नहीं, सामाजिक आंदोलन भी

  • सर्वधर्म समभाव: यात्रा में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह सच्चे अर्थों में धार्मिक समरसता का उदाहरण बना।
  • पर्यावरण जागरूकता: हर प्रमुख पड़ाव पर वृक्षारोपण, प्लास्टिक मुक्त अभियान और नदी स्वच्छता कार्यक्रम चलाए गए।
  • सांस्कृतिक प्रस्तुति: प्रत्येक रात्रि विश्राम स्थल पर स्थानीय कलाकारों द्वारा उत्तराखंडी लोकनृत्य, लोकगीत और पौराणिक कथाओं की प्रस्तुतियां दी गईं।
  • प्राचीन धरोहरों का संरक्षण: यात्रा मार्ग में पड़ने वाले पुरातात्विक स्थलों की जानकारी जनमानस को दी गई और युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया गया।

संयोजक श्री मंत्री प्रसाद नैथानी का दृष्टिकोण,श्री नैथानी ने इस यात्रा को “धर्म के माध्यम से समाज परिवर्तन” का उपकरण बताया। उन्होंने कहा:

“डोली यात्रा हमारे समाज को जोड़ने, जागरूक करने और भारतीय संस्कृति की आत्मा को पुनर्स्थापित करने का एक माध्यम है। आज जब समाज में भौतिकवाद, धार्मिक विघटन और पर्यावरणीय संकट बढ़ रहा है, तब ऐसी यात्राएं एक समाधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं।”


जनसहभागिता और जनआस्था: एक जनांदोलन की शक्ल

  • विभिन्न जिलों से हजारों श्रद्धालु पैदल, बाइक और ट्रैकिंग के माध्यम से यात्रा में जुड़े।
  • महिला समूहों ने कांवड़ शैली में डोलियों का स्वागत किया।
  • युवा स्वयंसेवकों ने सुरक्षा, चिकित्सा सहायता और व्यवस्था में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

मीडिया और सामाजिक संगठनों की भूमिका,उत्तराखंड भर के मीडिया संस्थानों ने इस यात्रा को विशेष कवरेज दी।सामाजिक संगठनों ने भोजन, जल व्यवस्था, चिकित्सा सहायता, और स्वच्छता में भागीदारी निभाई।

यात्रा का सामाजिक प्रभाव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण,सांप्रदायिक सौहार्द: विभिन्न धर्मों के लोगों का मिलकर पूजा करना एक संदेश देता है कि भारत की आत्मा एकता में बसती है।

  • स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल: जहां-जहां यात्रा पहुंची, वहां के स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प, पर्यटन स्थलों को नई पहचान मिली।
  • युवाओं में जिम्मेदारी: यात्रा में शामिल युवा धर्म और समाज के बीच संतुलन बनाने वाले भविष्य के नेता बन सकते हैं।

उत्तराखंड की पहचान: देवभूमि से ‘संवेदनशील समाज’ की ओर
उत्तराखंड को केवल ‘देवभूमि’ कहना आज पर्याप्त नहीं। ‘श्री विश्वनाथ-जगदी शिला डोली यात्रा’ जैसी पहलें राज्य को एक संवेदनशील, जिम्मेदार और पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज में बदलने की ओर कदम हैं। इस यात्रा ने यह सिद्ध किया है कि धार्मिकता केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सामाजिक कर्तव्य भी है।

एक यात्रा, अनेक संदेश,श्री विश्वनाथ-जगदी शिला डोली रथ यात्रा-2025’ आज एक उदाहरण बन गई है—कैसे धार्मिक आयोजनों को केवल कर्मकांड न बनाकर, सामाजिक चेतना और विकास का आधार बनाया जा सकता है। श्री मंत्री प्रसाद नैथानी जैसे जनप्रतिनिधि जब धर्म को सामाजिक दायित्व से जोड़ते हैं, तब एक आंदोलन जन्म लेता है।



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