वा शिंगटनः तकनीकी श्रेष्ठता और सैन्य ताकत के दम पर पूरी दुनिया में अपनी दबदबा बनाए रखने वाला अमेरिका, इन दिनों अपने ही दो सबसे आधुनिक और घातक लड़ाकू विमानों को लेकर असहज स्थिति में नजर आ रहा है.

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पहले ब्रिटिश एयरफोर्स का F-35B फाइटर जेट, जो 14 जून को भारतीय राज्य केरल में उतरा और 11 दिनों बाद भी तकनीकी खराबी के चलते उड़ान नहीं भर सका. अब अमेरिका के सबसे महंगे और एडवांस्ड स्टील्थ बॉम्बर B-2 स्पिरिट को भी तकनीकी गड़बड़ी के चलते आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी है.

रणनीति के बीच आई तकनीकी रुकावट

21 जून को अमेरिकी वायुसेना का एक B-2 बॉम्बर होनोलुलु के डैनियल के. इनौये इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर अचानक उतरा. यह लैंडिंग अचानक नहीं थी, बल्कि एक इमरजेंसी का नतीजा थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह विमान उस समय एक “डिकॉय मिशन” (छलावा मिशन) का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य ईरान जैसे दुश्मन देशों को गुमराह करना था. इस मिशन के तहत B-2 बॉम्बर्स को टैंकर विमानों के साथ जानबूझकर प्रशांत क्षेत्र की ओर रवाना किया गया, ताकि दुनिया को लगे कि हमला पश्चिम से आने वाला है.

वास्तविक हमला अटलांटिक से पूर्व की दिशा में लॉन्च होना था. लेकिन इस रणनीतिक भ्रम के बीच एक B-2 को तकनीकी गड़बड़ी ने जकड़ लिया और उसे हवाई के एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी.

पहले भी इसी एयरपोर्ट पर फंसा था B-2

गौरतलब है कि यही वही जगह है जहां साल 2023 में एक और B-2 बॉम्बर को इमरजेंसी में उतारना पड़ा था, जो महीनों तक वहां खड़ा रहा और महंगी मरम्मत की प्रतीक्षा करता रहा. अब दोबारा उसी एयरपोर्ट पर एक और B-2 का रुक जाना, अमेरिका के स्टील्थ बॉम्बर फ्लीट की बढ़ती उम्र और रखरखाव की चुनौतियों को उजागर करता है.

ऑपरेशनल दबाव में हैं B-2 बॉम्बर्स

1980 के दशक की तकनीक पर आधारित B-2 स्पिरिट को “लो डेंसिटी, हाई वैल्यू एसेट” माना जाता है. दुनिया में फिलहाल केवल 19 B-2 बॉम्बर ऑपरेशन में हैं, जिनका हर मिशन खास रणनीति का हिस्सा होता है. लेकिन इनकी जटिल संरचना और भारी रखरखाव लागत अमेरिका के रक्षा बजट पर दबाव डाल रही है. यही वजह है कि अमेरिका अब तेजी से B-21 रेडर की ओर बढ़ रहा है – अगली पीढ़ी का स्टील्थ बॉम्बर जो B-2 की जगह लेने के लिए तैयार किया जा रहा है.

टेक्नोलॉजी के भरोसे, लेकिन कब तक?

F-35B की भारत में तकनीकी असफलता और B-2 की बार-बार आपात लैंडिंग यह संकेत दे रही है कि सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक ही सफलता की गारंटी नहीं है. रखरखाव, भरोसेमंद सिस्टम और सटीक योजना – यह सब जरूरी है. अमेरिका जैसे तकनीकी महाशक्ति के लिए यह घटनाएं आत्मनिरीक्षण का विषय बन गई हैं, खासकर तब जब दुनिया एक बार फिर भू-राजनीतिक तनावों की ओर बढ़ रही है.

वाशिंगटनः तकनीकी श्रेष्ठता और सैन्य ताकत के दम पर पूरी दुनिया में अपनी दबदबा बनाए रखने वाला अमेरिका, इन दिनों अपने ही दो सबसे आधुनिक और घातक लड़ाकू विमानों को लेकर असहज स्थिति में नजर आ रहा है. पहले ब्रिटिश एयरफोर्स का F-35B फाइटर जेट, जो 14 जून को भारतीय राज्य केरल में उतरा और 11 दिनों बाद भी तकनीकी खराबी के चलते उड़ान नहीं भर सका. अब अमेरिका के सबसे महंगे और एडवांस्ड स्टील्थ बॉम्बर B-2 स्पिरिट को भी तकनीकी गड़बड़ी के चलते आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी है.

रणनीति के बीच आई तकनीकी रुकावट

पहले भी इसी एयरपोर्ट पर फंसा था B-2

ऑपरेशनल दबाव में हैं B-2 बॉम्बर्स

टेक्नोलॉजी के भरोसे, लेकिन कब तक?


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