
इस दिन पवित्र नदियों के किनारे दीपदान करने की परंपरा है. कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली के दिन दीपदान करने से भगवान का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. मोक्ष के द्वार खुलते हैं, पाप नष्ट होते हैं. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है.

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
देव दीपावली 2025
पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर को देर रात 10 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और 5 नवंबर को शाम 06 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के आधार पर 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा तिथि मानी जाएगी. इसी दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा और देव दीपावली भी मनाई जाएगी. इस साल देव दीपावली पर शाम को पूजा, आरती और दीपदान करने का समय 05 बजकर 15 मिनट से लेकर 07 बजकर 50 मिनट तक है.
साथ ही ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस साल देव दीपावली पर भद्रावास योग और शिववास योग जैसे मंगलकारी योग बन रहे हैं.
देव दीपावली की कथा
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, ”एक बार सभी देवी देवता, ऋषि और मनुष्य त्रिपुरासुर राक्षस से परेशान थे. तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी. इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं.” मान्यता है कि इसी खुशी में देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा की रात काशी में आकर दिवाली मनाई थी. इसलिए इसे देवताओं की दीपावली या देव दिवाली कहते हैं. साथ ही काशी में घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं.


