सावन में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करने से विशेष पुण्य मिलता है. शिव पुराण में पार्थिव शिवलिंग पूजा का महत्व बताया है. कलयुग में कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजा की नींव रखी थी.

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कई लोग पार्थिव शिवलिंग बनाने का सही तरीका नहीं जानते हैं और अक्सर गलती कर देते हैं. आज हम आपको बता रहे हैं कि सावन में पुजा के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाने की सही विधि क्या है?

क्या है पार्थिव पूजा का महत्व?

शिव महा पुराण में पार्थिव पूजा का विशेष महत्व है. इस पुजा को करने से धन्य, धान्य और संतान प्राप्ति की कामना पुरी होती है. इस पुजा को करने से मानसिक और शारीरिक बीमारियां से भी छुटकारा मिलता है. जब राजा दक्ष के श्राप के कारण चंद्रमा को कोढ़ की बीमारी हो गई थी तब चंद्रमा ने भी सावन मास में पार्थिव शिवलिंग की पुजा कर रोग से छुटकारा पाया था.

हालांकि, पुराणों में पार्थिव शिवलिंग के पूजा का महत्व तो बहुत है पर कई लोग सही तरीका नहीं जानते लिंग को बनाने का. कुछ लोग तो कहीं की भी मिट्टी का इस्तेमाल कर लेते हैं पर असल में नदी-तालाब की शुद्ध और साफ मिट्टी से ही पार्थिव शिवलिंग बनाना चाहिए.

क्या है मिट्टी लाने का सही नियम?

पार्थिव शिवलिंग को बनाने का सही तरीका लिंग पुराण में मिलता है. अगर इस नियम से सावन शिवलिंग बनाएंगे तो हर मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. पर करना क्या है?

  • सब से पहले नदी-तालाब या कही से एकदम साफ मिट्टी लें जिसमें कोई गंदगी न हो.
  • जिस दिन मिट्टी घर में लाते हैं उस दिन मिट्टी को गंगा जल, दूध, बेल पत्री या इत्र से शुद्ध कर के ही घर के अंदर लाए.
  • पूजा वाले दिन, पुजा से पहले ब्रह्म मुहूर्त में मिट्टी को गला लेना चाहिए.
  • मिट्टी को गलाने के लिए रसोई में एक रात पहले, एक कलश में पानी ढक कर रख लें और उसके ऊपर चावल का एक दाना रख कर रात भर छोड़ दें
  • पुराणों में लिखा गया है कि पितृ, अन्नपूर्णा और सारे देवी-देवता का निवास कलश में होता है और जब वह जल हम मिट्टी में मिलाते हैं तब सभी देवताओं का भाव उस जल में आ जाता है और जल पवित्र हो जाता है.
  • इसी पानी के इस्तेमाल से मिट्टी को ब्रह्म मुहूर्त में गला कर कुछ देर के लिए छोड़ दें.

किस विधि से बनता है पार्थिव शिवलिंग?

  • सब से पहले जिस भी पात्र में आप शिवलिंग बना रहे हैं उस पात्र के नीचे तीन पत्तों वाला बेल पत्री रखें.
  • बेल पत्री की डंडी याद से उत्तर दिशा में ही रखें और खुद पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें.
  • फिर मिट्टी को सान कर सब से पहले शिवलिंग के ऊपर का भाग बनाएं. फिर जलाधारी का निर्माण करें.
  • जब भगवान का सुंदर रूप तैयार हो जाए, फिर शिवलिंग का श्रृंगार करके शुद्ध भाव से उसे परम ब्रम्ह मानकर पूजन और ध्यान करें.
  • पार्थिव पूजा का मतलब ही होता है कि हर दिन शिवलिंग बना कर पूजा करना फिर विसर्जन कर देना.
  • नियम के अनुसार शाम से पहले पार्थिव पूजा का विसर्जन कर दें जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो.

सपरिवार पार्थिव बनाकर शास्त्रवत विधि से पूजन करने से परिवार सुखी रहता है. पार्थिव पूजा में नियम और मन की शुद्धता से पालन करना जरूरी है वरना इससे परिवार या स्वयं पर दूष्प्रभाव भी हो सकते हैं.


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