शून्य परिणाम, शून्य जवाबदेही: GIC मेदनीपुर की कहानी, उत्तराखंड की शिक्षा नीति पर बड़ा तमाचा!28000 फेल छात्र और मूक शिक्षा मंत्री

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राजकीय इंटर कॉलेज मेदनीपुर, बद्रीपुर से आई यह खबर न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि उत्तराखंड की सरकारी शिक्षा व्यवस्था के खोखलेपन की एक सजीव मिसाल बन गई है। कक्षा 12वीं की पूरी की पूरी क्लास — पूरे 22 छात्र— एक भी पास नहीं। यह घटना कोई साधारण संयोग नहीं, बल्कि सुनियोजित उपेक्षा, प्रशासनिक लापरवाही और एक भ्रष्ट सिस्टम की परिणति है।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

10वीं कक्षा में 94 प्रतिशत सफलता और 12वीं में 100 प्रतिशत असफलता — ये आंकड़े न सिर्फ शिक्षा विभाग की आंखें खोलने के लिए काफी हैं, बल्कि इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि कुछ तो बहुत गड़बड़ है।

विकल्प का अभाव, भविष्य का विनाश

विद्यालय में केवल पीसीएम (फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स) की पढ़ाई होती है। छात्रों के पास कोई विकल्प नहीं, और यह मजबूरी उनके फेल होने का कारण बन गई। सवाल उठता है—जब विद्यालय को मालूम था कि छात्र कला विषय लेना चाहते हैं, तो फिर क्यों उन्हें विज्ञान में जबरन ढकेला गया?

क्या स्कूल केवल छात्र संख्या बनाए रखने के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा था? क्या यही है उत्तराखंड की शिक्षा नीति?

2016 से मांग, 2025 तक इंतज़ार?

विद्यालय 2016 से कला विषय शुरू करने की मांग कर रहा है, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं। ऐसे में क्या यह कह देना गलत होगा कि सरकार की प्राथमिकता में शिक्षा कहीं है ही नहीं? जबकि सरकार “टॉपर बच्चों” को मीडिया के सामने सजाकर शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर चमकाने में जुटी है, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।

28000 फेल छात्र और मूक शिक्षा मंत्री

इस वर्ष उत्तराखंड में करीब 28000 छात्र फेल हुए हैं। क्या यह सामान्य बात है? सरकार इस संख्या को सामान्य बताकर बच नहीं सकती। जिन स्कूलों में लगातार खराब परिणाम आ रहे हैं, उन शिक्षकों के प्रमाणपत्रों और नियुक्तियों की गहन जांच होनी चाहिए। कहीं यह नियुक्तियाँ भी पीछे के दरवाज़े से तो नहीं हुईं?

सरकारी बनाम निजी स्कूल: बढ़ती खाई

जहां एक ओर प्राइवेट स्कूलों के रिजल्ट चमक रहे हैं, वहीं सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। क्या यह दोहरी शिक्षा नीति नहीं है? एक गरीब छात्र, जो सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है, क्या उसकी प्रतिभा को केवल इसीलिए कुचला जा सकता है क्योंकि उसके पास विकल्प नहीं?

  1. तत्काल प्रभाव से कला विषयों की शुरुआत हर ऐसे स्कूल में हो जहां छात्र संख्या हो।
  2. शिक्षकों की योग्यता की जांच, विशेषकर वहां जहां परिणाम बेहद खराब हैं।
  3. स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही तय हो।
  4. शिक्षा विभाग की मासिक समीक्षा, और स्कूलों को प्रदर्शन के आधार पर रैंक किया जाए।

GIC मेदनीपुर की यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक गंभीर संकेत है। यदि अब भी शिक्षा विभाग नहीं जागा, तो आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा 28000 से बढ़कर 1 लाख भी हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह केवल विज्ञापन में नहीं, ज़मीनी स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए कड़े और ईमानदार कदम उठाए। वर्ना आने वाली पीढ़ियों के साथ सबसे बड़ा धोखा इसी व्यवस्था से होगा।


लेखक: अवतार सिंह बिष्ट

विशेष संपादकीय लेखक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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