✍️ संपादकीय: “भगवा वस्त्रों की आड़ में ठगों की दुकान: धर्म या धंधा?”पहचान छुपाकर बाबा बने इमामुद्दीन से उठे कई सवाल

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उत्तर प्रदेश के मंड़ी हसनपुर गांव से आई खबर चौंकाने वाली ही नहीं, बल्कि गहराई से झकझोरने वाली है। पश्चिम बंगाल का मूल निवासी इमामुद्दीन अंसारी पिछले 15 वर्षों से पहचान छुपाकर ‘बालकनाथ’ नाम से मंदिर में रह रहा था। वह पूजा-पाठ करता था, भक्तों से चंदा इकट्ठा करता था, और मंदिर परिसर में निर्माण तक करवा रहा था। उसकी असलियत तब उजागर हुई जब ग्रामीणों को शक हुआ और पुलिस ने तीन आधार कार्ड समेत पूरे मामले का पर्दाफाश किया।

✍️ लेखक: अवतार सिंह बिष्ट
हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स
रुद्रपुर, उत्तराखंड

लेकिन सवाल सिर्फ इमामुद्दीन का नहीं है—सवाल यह है कि क्या भारत में अब भगवा वस्त्रों की आड़ में हर कोई ‘बाबा’ बनकर धर्म और आस्था की ठगी की खुली दुकान चला सकता है?


धर्म के नाम पर ढोंगियों की घुसपैठ?उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हजारों मंदिर हैं—गांव-गांव में, शहर-शहर में। लेकिन इन मंदिरों में आजकल कौन पूजा कर रहा है? किसका बैकग्राउंड क्या है? क्या वो सच में वेद-पुराणों का ज्ञाता है या बस भगवा पहनकर ‘बाबा’ बन बैठा एक प्रवासी ठग?ये वही लोग हैं जो दिन में ‘ओम नमः शिवाय’ बोलते हैं और रात में शराब ठेकों के आसपास पाए जाते हैं। कुछ तो ऐसे गिरोहों से जुड़े हैं जो बच्चों और महिलाओं से मंदिरों में भीख मंगवाते हैं। कई मामलों में बाल तस्करी और देह व्यापार के लिंक भी उभर चुके हैं।


आस्था के साथ ऐसा खिलवाड़ कब तक?उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में अवैध धर्मांतरण और फर्जी बाबाओं के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी, लेकिन वह अब सीमित दिख रही है। आज भी हर तीर्थ क्षेत्र में फर्जी भगवाधारी देखे जा सकते हैं—जो पहचान छिपाकर रह रहे हैं, भीख मांग रहे हैं, और धर्म की आड़ में धंधा कर रहे हैं।ध्यान दें, यह सिर्फ एक धर्म के खिलाफ नहीं—यह पूरे सनातन धर्म के अस्तित्व पर सवाल है। बालकनाथ बनकर बैठा कोई इमामुद्दीन अंसारी हो या आसाराम-जैसे कथित संत—ये सभी समाज और श्रद्धा के लिए कैंसर हैं।


कौन है असली, कौन है नकली बाबा?मंदिरों में सेवा करने वाले पुजारियों का, आश्रमों में रहने वाले साधुओं का कोई सत्यापन नहीं होता। कोई भी भगवा चोला पहनकर “स्वामी”, “महात्मा”, “बाबा”, “ब्रह्मचारी” बन सकता है। न कोई रजिस्ट्रेशन, न कोई प्रमाणपत्र।

तो सवाल यह है:क्या मंदिरों में सेवा कर रहे हर भगवाधारी का पुलिस सत्यापन अनिवार्य नहीं होना चाहिए?क्या राज्य सरकार या अखाड़ा परिषद को आधिकारिक ID कार्ड जारी नहीं करने चाहिए?क्या हर मंदिर समिति को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि सेवा करने वाला व्यक्ति किसी धर्मांतरण मिशन, आपराधिक गिरोह या जाली दस्तावेजों से जुड़ा न हो?


    शंकराचार्य या सरकार—धर्म का पहरेदार कौन?सनातन धर्म कोई NGO नहीं है कि कोई भी आकर CSR चला ले। यह दुनिया का सबसे प्राचीन और जीवंत धर्म है, जिसे बचाने का जिम्मा शंकराचार्य परंपरा और वैदिक संस्थानों का है।सरकार चाहें तो भगवाधारियों को एक “धार्मिक सेवा ID कार्ड” जारी कर सकती है, जैसे पत्रकारों को प्रेस कार्ड दिए जाते हैं। वहीं, चारों शंकराचार्यों और मान्यता प्राप्त अखाड़ों को अधिकार दिया जाए कि वे प्रमाणित करें कौन बाबा है और कौन ठग।


    आस्था की रक्षा नहीं, तो धर्म का पतन निश्चित?अगर समय रहते ऐसे फर्जी बाबाओं और गिरोहों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो वह दिन दूर नहीं जब आमजन का मंदिरों से विश्वास उठ जाएगा। जो जगहें आत्मिक शांति और मोक्ष की प्रतीक हैं, वे अपराधियों और ठगों की मंडी बन जाएंगी।

    यह संपादकीय एक चेतावनी है—केवल मूर्तियों की पूजा से नहीं, बल्कि धर्म की सच्ची सेवा और रक्षा से ही भारत का सनातन भविष्य उज्जवल हो सकता है।


    ✍️ लेखक: अवतार सिंह बिष्ट
    हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स
    रुद्रपुर, उत्तराखंड



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