रुद्राक्ष रोपण के माध्यम से उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों ने दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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नैनीताल,उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारी अब प्रदेश के पर्यावरणीय संरक्षण व सांस्कृतिक पुनरुद्धार की दिशा में भी अहम योगदान दे रहे हैं। इसी कड़ी में आज चमोली (गढ़वाल) से आए उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों व पर्यावरण प्रेमियों ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत के आवास परिसर में रुद्राक्ष का पौधा रोपित किया।✍️अवतार सिंह बिष्ट,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी

यह रोपण एक विधिवत अनुष्ठान के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर कुलपति प्रो. डी०एस० रावत ने इसे एक ऐतिहासिक पहल करार देते हुए कहा कि — “नैनीताल जैसे ठंडे मौसम में रुद्राक्ष का पल्लवित होना न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कुमाऊँ विश्वविद्यालय के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। इस वृक्ष की देखरेख के लिए विश्वविद्यालय हर संभव प्रयास करेगा।”

परंपरा और पर्यावरण का समागम

रुद्राक्ष को भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और दिव्य माना जाता है। भगवान शिव के आभूषण स्वरूप प्रसिद्ध यह वृक्ष धार्मिक आस्था, शांति, एकता व सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इसी विश्वास को जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है आंदोलनकारी व पर्यावरणविदों ने।

हिमालय संग्रहालय की प्रभारी व इतिहास विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सावित्री कैड़ा जन्तावल ने कहा — “रुद्राक्ष का यह पौधा हमारे विश्वविद्यालय की धरती पर एक शुभ संदेश लेकर आया है। यह पहल आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति और परंपरा के प्रति जागरूक बनाएगी।”

आन्दोलनकारी अब पर्यावरण के प्रहरी

उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए संघर्ष करने वाले कई आंदोलनकारी अब राज्य के सामाजिक व पर्यावरणीय सुधार में अग्रसर हैं। चमोली जनपद के कई आंदोलनकारी, जैसे भूपाल सिंह रावत, राजेश्वरी गेरौला, कमला जोशी, राजेन्द्र चौहान और कपिल चौहान, न केवल वृक्षारोपण कर रहे हैं बल्कि ऐसे पौधों की प्रजातियों को ठंडी जलवायु में स्थापित करने का साहसिक प्रयास भी कर रहे हैं, जो पहले केवल गर्म क्षेत्रों में पनपते थे।

इन पर्यावरण प्रेमियों की टीम ने रुद्राक्ष जैसे पौधों को गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, पोखरी जैसे क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाने का कार्य किया है और अब उनका प्रयास है कि यह वृक्ष पूरे उत्तराखण्ड में फैले, जिससे यह ‘शिव भूमि’ और अधिक पावन व हरित हो सके।

समारोह में अनेक विद्वान हुए शामिल

इस अवसर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ शिक्षाविद, शोधार्थी एवं पर्यावरण कार्यकर्ता उपस्थित रहे। जिनमें प्रमुख रूप से प्रो. डी०एस० बिष्ट, प्रो. संजय टम्टा, डॉ. शिवानी रावत, डॉ. पूरन सिंह अधिकारी, डॉ. भुवन शर्मा, डॉ. हरदयाल सिंह जलाल, डॉ. वीरेंद्र पाल, डॉ. शिवराज सिंह कपकोटी, भुवन पाठक आदि शामिल रहे। सभी ने इस आयोजन की सराहना की और रुद्राक्ष जैसे आध्यात्मिक वृक्षों के संरक्षण और प्रचार हेतु आंदोलनकारियों की सराहना की।


🖋 प्रोफेसर सावित्री कैड़ा जन्तावल, डी० लिट०
प्रभारी, हिमालय संग्रहालय
पूर्व संयोजक एवं विभागाध्यक्ष
इतिहास विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल


संपादकीय: रुद्राक्ष रोपण—संस्कृति, पर्यावरण और आंदोलन की त्रिवेणी

कुमाऊँ विश्वविद्यालय में उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों द्वारा रुद्राक्ष का पौधा रोपना केवल एक पर्यावरणीय पहल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और जनचेतना का प्रतीकात्मक संदेश है। यह वृक्ष, जिसे शिव का आभूषण कहा जाता है, आज उत्तराखण्ड की धरा पर पल्लवित हो रहा है, तो यह उस संघर्षशील चेतना का प्रतिफल है जिसने राज्य निर्माण के लिए आंदोलन किया और अब प्रकृति के संरक्षण में समर्पित हो गई है।

रुद्राक्ष का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व, दोनों ही इसकी महत्ता को रेखांकित करते हैं। चमोली से आए आंदोलनकारियों ने जिस संकल्प से इसे नैनीताल जैसे ठंडे क्षेत्र में रोपा, वह इस बात का संकेत है कि उत्तराखण्ड की आत्मा आज भी जिंदा है — हरियाली, श्रद्धा और संघर्ष से भरी हुई।

यह पहल विश्वविद्यालयों के लिए भी प्रेरणास्रोत है कि अकादमिक परिसरों में शोध और ज्ञान के साथ-साथ परंपरा और पर्यावरण को भी स्थान मिलना चाहिए। जब आंदोलनकारी पौधारोपण को संस्कृति से जोड़ते हैं, तो यह पर्यावरणीय संरक्षण की एक नई परिभाषा रचता है। उत्तराखण्ड को ऐसे ही संतुलित प्रयासों की आवश्यकता है।


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