रुद्रपुर,अब तक जो नगर निगम गली-नालियों की सफाई और सड़कों के गड्ढे तक नहीं भर पाया, वह अब पूरे विज्ञान के सहारे मृत पशुओं से ‘स्वच्छता’ और ‘समृद्धि’ का मंत्र फूंकने चला है। जनता के ज़िंदा मुद्दे हल नहीं हुए, लेकिन मरे पशुओं की मुक्ति की तैयारी ज़ोरों पर है।


यह जानकर खुशी हुई कि प्लांट लगाने के लिए जो ज़मीन मिली है, वह दो साल में उपयोग न होने पर वापस ले ली जाएगी — यानी जनता अब दो साल तक एक और शव योजना की प्रतीक्षा में रहेगी, जो कागज़ों में प्लांट और ज़मीन के नाप-जोख में ही सड़ती रहेगी, जैसे अब तक खुद मरे पशु सड़ते आए हैं।
सवाल ये भी है कि अगर चमड़ा, हड्डी और चर्बी से कमाई होगी, तो क्या नगर निगम इसके लिए अब ‘स्मार्ट बाजार’ योजना भी लाएगा? कहीं ऐसा न हो कि अगली प्रेस विज्ञप्ति में लिखा जाए — “रूद्रपुर बनेगा उत्तर भारत का पशु अवशेष व्यापारिक हब!”
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह
और अंत में सबसे बड़ा सवाल:
क्या नगर निगम अब जीते-जागते नागरिकों की समस्या भी इतने ही जोश से हल करेगा, जितना मरे हुए पशुओं के लिए नई योजनाएं बना रहा है?
नरक को गंगा बनाकर स्वर्ग बताने की यह सरकारी कला वाकई बेमिसाल है।

