आज चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है और आज रामभक्त हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। हनुमानजी कलयुग के देवता हैं और जल्द प्रसन्न होने वाले भगवान हैं। हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता के रूप में जाना जाता है। हनुमान चालीसा में वीर हनुमान को प्रसन्न करने के लिए सबसे सरल और शक्तिशाली स्तुति है। इसकी हर चौपाई अलग अलग रूप से शक्तिशाली है। जीवन की हर समस्या का समाधान हनुमान चालीसा द्वारा किया जा सकता है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
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Avtar Singh Bisht, Rudrapur, Uttrakhand
- आत्मविश्वास में वृद्धि के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- हनुमान चालीसा का पाठ करने से भय से मिलती है मुक्ति।
- अगर व्यक्ति के जीवन में आर्थिक परेशानियां चल रही हों तो नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें आर्थिक मुश्किलें दूर हो जाती हैं।
- रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करने विध्न होते हैं दूर।
- रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकारात्मकता दूर होती है।
- हनुमान चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
- हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव कम होता है।
कलयुग के देवता हनुमान जी जल्द प्रसन्न होने वाले भगवान हैं। हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ मंत्रों का जाप भी लाभकारी माना जाता है।
ॐ हं हनुमंते नम:
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट।
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।
ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा ।
ॐ ऋणमोचन हनुमते नमः ।
हनुमान जी की कई महान कथाएं हैं लेकिन हम आपको यहां बताने जा रहे हैं हनुमान जी और शनिदेव से जुड़ी कुछ कथाएं। भगवान शनि खुद को बहुत शक्तिशाली मानते थे और उन्हें इस बात का घमंड भी बहुत था, लेकिन जब हनुमान जी से हुआ उनका सामना तो क्या हुआ? यहां जानिए 5 रोचक कथाएं…
- कहते हैं कि बचपन में शनिदेव अपने माता-पिता से रूठ कर घर से भाग जाते हैं और अपनी शक्ति के बल पर लोगों को परेशान करने लगते हैं। इस तरह शनिदेव एक गांव में इसलिए आग लगा देते हैं, क्योंकि उस गांव के लोग उन्हें पानी नहीं पीने देते हैं।
सभी गांव वाले शनिदेव को घेरकर मारने का प्रयास करते हैं तो हनुमान जी उन्हें बचा लेते हैं। लेकिन शनिदेव इस एहसान को नहीं मानते हैं और हनुमान जी से कहते हैं कि तुम्हें मेरे रास्ते में नहीं आना चाहिए था। हनुमान जी कहते हैं अब तुम सीधे अपने पिता के पास जाओ, लेकिन शनिदेव उनसे वाद-विवाद करने लगते हैं। फिर दोनों में गदा युद्ध होता है तब हनुमान जी उन्हें अपनी पूंछ में लपेटकर उनके पिता के पास ले जाकर छोड़ देते हैं।
- शनिदेव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी तो वे उनसे युद्ध करने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस समय हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन थे। तभी अपने बल के घमंड में चूर शनिदेव आ पहुंचे और उन्होंने हनुमान जी की रामभक्ति में विघ्न डाला और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।
इसके बाद मजबूर होकर हनुमान जी को उनसे युद्ध करना पड़ा और फिर उन्होंने शनिदेव को अपनी पूंछ में बांध लिया और रामभक्ति में लीन हो गए। शनिदेव ने बहुत प्रार्थना की तब उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया और फिर घायल शनिदेव को देखकर हनुमान जी को दया आ गई तो उन्होंने पीड़ा से मुक्त करने के लिए उनके घावों के लिए सरसों का तेल दिया, जिसे लगाकर शनिदेव को आराम मिला।
- एक बार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया। जब तक हनुमान जी लंका नहीं पहुचें तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे। जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान शनिदेव जेल में कैद मिले।
हनुमान जी ने तब शनि भगवान को कैद से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद उन्होंने हनुमान जी का धन्यवाद दिया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन दिया।
- मंदिर शनिदकथा के अनुसार एक बार शनिदेव का धरती पर कोप इतना बढ़ गया कि सभी परेशान होने लगे। तब लोगों ने हनुमान जी की शरण ली। सभी ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु हमें बचाएं।
हनुमान जी को जब यह ज्ञात हुआ कि शनि उनके भक्तों को परेशान कर रहे हैं तो वह क्रोधित हो गए। क्रोध में उन्होंने अपनी गदा उठाई और गदा लेकर शनिदेव को खोजते लगे। शनिदेव को जब इस बात को पता चला तो वे घबरा गए और समझ गए कि अब तो मुझे कोई नहीं बचा सकता। उन्हें छुपने का और कोई उपाय समझ में नहीं आया तो, उनसे बचने के लिए शनिदेव ने तुरंत ही स्त्री रूप धारण कर लिया।
शनिदेव जानते थे कि हनुमान ब्रह्मचारी है और वो कभी किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठा सकते। इसलिए वे स्त्री रूप धारण करके उनके चरणों में बैठ गए और हनुमान जी के समक्ष क्षमा याचना करने लगे। हनुमान जी नारीरूप शनि पर हाथ नहीं उठाते थे, इसलिए उन्होंने शनि देव को क्षमा कर दिया। तभी से वे वहां उनके चरणों में बैठे हैं।
- मान्यता अनुसार एक बार शनिदेव हनुमान जी के पास आते हैं और कहते हैं कि मैं आपको सावधान करने आया हूं कि कृष्ण लीला के समापन के बाद कलियुग का प्रारंभ हो चुका है। इस कलियुग में देवता धरती पर नहीं रह सकते, क्योंकि जो भी धरती पर है उस पर मेरी साढ़ेसाती का असर होगा। इसलिए आप पर भी इसका प्रभाव प्रारंभ होने वाला है।
इस पर हनुमान जी कहते हैं जो भी देवता या मनुष्य राम की शरण में रहता है उस पर तो काल का भी प्रभाव नहीं रहता। इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और जाइए। इस पर शनिदेव कहते हैं कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान के आगे विवश हूं। आपके ऊपर मेरी साढ़ेसाती अभी से प्रभावी हो रही है। इसलिए आज और अभी मैं शरीर पर आ रहा हूं, इसे कोई टाल नहीं सकता।
तब हनुमान जी कहते हैं- ठीक है आ जाइए। परंतु ये बताइएं कि मेरे शरीर पर कहां आ रहे हैं तो इस पर शनिदेव बड़े गर्व से कहते हैं कि ढाई साल आपके सिर पर बैठकर आपकी बुद्धि को विचलित करूंगा, अगले ढाई साल पेट में रहकर आपके शरीर को अस्वस्थ करूंगा और अंतिम ढाई साल पैर पर रहकर आपको भटकाता रहूंगा।
इतना कहकर शनिदेव हनुमान जी के माथे पर बैठ गए। माथे पर बैठते ही हनुमान जी को खुजली आई तो उन्होंने एक पर्वत उठाकर अपने माथे पर रख लिया। तब उस पर्वत से दबकर घबरा कर शनिदेव बोले कि ये क्या कर रहे हो आप? यह सुनकर हनुमान जी ने कहा कि आप अपना काम कीजिए, मुझे मेरा काम करने दीजिए। मैं अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं इसी प्रकार खुजली मिटाता हूं।
ऐसा कहकर हनुमान जी एक और पर्वत अपने सिर पर रख लेते हैं। जिससे शनिदेव और दब जाते हैं और हैरान-परेशान होकर कहते हैं आप इन पर्वतों को उतारिएं, मैं समझौता करने के लिए तैयार हूं। हनुमान जी कुछ नहीं सुनते हैं और तीसरा बड़ा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख देते हैं।
इस बोझ से शनिदेव चिल्लाने लगते हैं और कहते हैं- मुझे छोड़ दो, मैं आपके कभी नजदीक भी नहीं आऊंगा। लेकिन फिर भी हनुमान जी उनकी पुकार को सुना-अनसुना करके चौथा पर्वत रख देते हैं तब शनिदेव ‘त्राहिमाम त्राहिमाम’ करते हुए हनुमान जी से प्रार्थना करते हैं- मैं आप तो क्या आपके भक्तों के भी समीप भी कभी नहीं आऊंगा, कृपया करके मुझे छोड़ दें।… यह सुनकर हनुमान जी शनिदेव को पीड़ा से मुक्त कर देते हैं।
जय हनुमान।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
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Avtar Singh Bisht, Rudrapur, Uttrakhand
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।