हल्द्वानी. उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर के रानीबाग में स्थित चित्रशिला घाट को कुमाऊंनी शैली में सजाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इसके लिए वहां काफी तेजी से काम चल रहा है. इन दिनों चित्रशिला घाट के मुख्य गेट और वहां के मंदिरों को सजाया जा रहा है. रानीबाग स्थित कत्यूरी वंशजों की आराध्य देवी जिया रानी के मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हो गया है.
मंदिर के शीर्ष सहित पूरे परिसर को पुरातन शैली से सजाया जा रहा है. जिया रानी की गुफा को पत्थरों से सजा दिया गया है. मंदिर को सजाने के लिए पत्थर करीब 100 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा जिले के कोसी-कटारमल से मंगाए गए हैं. यहां काम कर रहे कारीगर महेंद्र प्रसाद ने बताया कि वह अल्मोड़ा से यहां काम करने आए हैं. पत्थरों को तराशने का काम चल रहा है. इन पत्थरों में महीन नक्काशी भी होगी, जो काफी मेहनत का काम है.
जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थीं। मौला देवी राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थीं। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था, इसलिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।
क्यों कहलाई कुमाऊं की रानी लक्ष्मीबाई?
माता जिया रानी को कुमाऊं की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि माता जिया रानी ने रोहिलो और तुर्कों के आक्रमण के दौरान कुमाऊं की रक्षा की थी और युद्ध में बलिदानी हुईं थी।
स्थानीय लोगों का मानना है कि युद्ध के समय जिया रानी ने हीरे-मोती जड़ित लहंगा पहना था। जो बाद में पत्थर बन गया। ये पत्थर आज भी है रानीबाग में मौजूद हैं और इसे चित्रशीला नाम से जाना जाता है।