अपने गांव की पुश्तैनी जमीन जमीन बेचने के बाद महंगी ब्याज पर कर्ज लेकर अपने सपनों का आशियाना भी बनाया। लेकिन, बस कुछ ही मिनटों में सब उजड़ गया। बुलडोजर की धमक ऐसे पड़ी की मानों सालों की मेहनत बर्बाद हो गई।जी हां, यूपी के कई जिलों में रहने वाले लोगों का बस दर्द है।

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अपना गांव छोड़ने के बाद दूसरे के शहर में बसने का सपना पूरी तरह से चूर-चूर हो गया। रोते हुए लोगों का अब यह कहना है कि अब जब सिर के ऊपर छत नहीं है तो वापस गांव ही चले जाएं। अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई में जब लोगों का घर जमींदोज हुआ तो कोई भी अपने आंसू को नहीं रोक पाया था।

पुलिस-प्रशासन के सामने हाथ जोड़े के साथ कई बार गिड़गिड़ाए भी लेकिन बुलडोजर की रफ्तार बिल्कुल भी नहीं रूकी थी। यह हाल यूपी के रहने वाले लोगों का है, जिनके मकानों पर बुलडोजर की जोरदार आवाज सुनाई दी थी।

बस्तियों में जिन लोगों के मकान ध्वस्त किए जा रहे हैं, उनमें से अधिकतर लोग यूपी-बिहार से आकर देहरादून में बसे हैं। अपने घर ध्वस्त होने के दौरान लोगों ने अपनी पीड़ा सुनाते हुए कहा कि बस्तियों में रह रहे ज्यादातर लोग यूपी-बिहार आदि राज्यों से आकर देहरादून में बसे हैं।

कई ने अपने वहां अपने मकान और जमीन बेचकर देहरादून में बसने के इरादे से जमीन ली। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि बिचौलिये सरकारी जमीन बेचकर उन्हें झांसे का शिकार बना रहे हैं। नगर निगम की टीम ने मोनू, चंद्रपाल, विपिन, नवाब, राहुल, सावित्री, अजय, नासिर, दिनेश समेत ग्यारह के खिलाफ कार्रवाई की।

लोगों ने कहा कि उनके जैसे कई लोगों को सौ रुपये के स्टांप पेपर पर सरकारी जमीनें कब्जाने का काम धड़ल्ले से चल रहा है। प्रभावित लोगों ने कहा कि वह अब इधर के रहे न उधर के। उनके पास रहने को छत नहीं। किसी तरह पैसे बचाकर जो घर बनाए, वह ध्वस्त हो गए। एक व्यक्ति ने कहा कि नेताओं ने आश्वासन दिया था कि वे मकान नहीं हटाने देंगे।

दबाव में दिखे अफसर
अभियान के दौरान नगर निगम, पुलिस प्रशासन के अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव था। कई जनप्रतिनिधियों ने फोन पर कार्रवाई रोकने का दबाव बनाया। लेकिन, टीम ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक कार्रवाई की जा रही है।

कुछ लोगों ने बना लिए दो से तीन मकान
बस्ती में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके मकान एक नहीं बल्कि दो से तीन जगह हैं। एक युवक ने कहा कि उसने सड़क किनारे दुकानें बनाने के इरादे से किसी से जमीन खरीदी थी। जमीन बेचने वालों ने उसे कहा कि बिजली पानी का कनेक्शन मिल जाएगा, कोई कार्रवाई भी नहीं होगी।

लेकिन शुक्रवार को निर्माण ध्वस्त होने के बाद लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। लोगों ने कहा कि क्षेत्र में कई लोग सक्रिय हैं, जो नदी नालों के किनारे खाली जमीनों को बेचने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोेगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए।

अब सिंचाई विभाग के सर्वे ने बढ़ाई चिंता
लोगों में इस बात की चर्चा रही कि पच्चीस साल पहले और अब रिस्पना नदी की चौड़ाई में कितना अंतर आया है। इसके लिए सर्वे किया जा रहा है। सिंचाई विभाग आपदा प्रभावित क्षेत्र के दायरे में आ रहे मकानों को चिन्हित कर रहा है। ऐसे में नदी किनारे बने मकान कार्रवाई की जद में आ सकते हैं।


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