भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की तैयारी में है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) एक ऐसे अत्याधुनिक हथियार पर काम कर रहा है, जो न केवल तकनीक के मामले में क्रांतिकारी होगा, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान भी दिलाएगा।

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इस हथियार का नाम है ‘सूर्य’-एक निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapon, DEW), जो 300 किलोवाट की अभूतपूर्व शक्ति के साथ हवाई खतरों को पलक झपकते नष्ट करने में सक्षम होगा।

क्या है ‘सूर्य’ हथियार?

‘सूर्य’ कोई साधारण हथियार नहीं है। यह लेजर, माइक्रोवेव या कण किरणों जैसी संकेन्द्रित ऊर्जा का इस्तेमाल कर लक्ष्य को नष्ट करने की क्षमता रखता है। डीआरडीओ के मुताबिक, यह भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली DEW होगा। इसकी खासियत है इसकी 300 किलोवाट की ताकत, जो इसे ड्रोन, रॉकेट और मिसाइल जैसे हवाई खतरों के खिलाफ एक अचूक हथियार बनाती है। इसकी प्रभावी रेंज 20 किलोमीटर तक होगी, और सबसे बड़ी बात-इसे संचालित करने की लागत पारंपरिक हथियारों की तुलना में बेहद कम होगी।

डीआरडीओ के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह हथियार न केवल तेज और सटीक है, बल्कि पर्यावरणीय नुकसान भी कम करता है। पारंपरिक मिसाइलों की तरह इसके इस्तेमाल से मलबा या विस्फोटक अवशेष नहीं फैलते।” यह तकनीक भारत को भविष्य की जंग के लिए तैयार करने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

कैसे हो रहा विकास?

‘सूर्य’ के पीछे डीआरडीओ की लेजर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (LASTEC) जैसी अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं का योगदान है। सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना में निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी शामिल किया जा रहा है, ताकि विकास प्रक्रिया को तेज किया जा सके। डीआरडीओ ने इस हथियार को 2027 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा है। यदि यह योजना सफल होती है, तो भारत न केवल तकनीकी दौड़ में अमेरिका और चीन जैसे देशों के बराबर खड़ा होगा, बल्कि कुछ मामलों में उनसे आगे भी निकल सकता है।

वैश्विक परिदृश्य में कहां ठहरता है भारत?

दुनिया भर में DEW तकनीक पर काम तेजी से हो रहा है। अमेरिका ने 100 किलोवाट क्षमता वाले लेजर हथियार विकसित किए हैं, जो ड्रोन और छोटी मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम हैं। चीन भी उच्च ऊर्जा लेजर और माइक्रोवेव हथियारों पर शोध कर रहा है, जबकि इजरायल की ‘आयरन बीम’ प्रणाली कम दूरी के खतरों से निपटने में प्रभावी साबित हुई है। रूस का ‘पेरेस्वेट’ लेजर सिस्टम तो अंतरिक्ष में उपग्रहों तक को निशाना बना सकता है। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 300 किलोवाट की शक्ति के साथ ‘सूर्य’ इन सभी को पीछे छोड़ सकता है।

रक्षा विश्लेषक कर्नल (सेवानिवृत्त) राजेश शर्मा कहते हैं, “अगर ‘सूर्य’ अपनी पूरी क्षमता के साथ तैयार हो जाता है, तो यह भारत की वायु रक्षा को अभेद्य बना देगा। यह तकनीक पारंपरिक हथियारों की तुलना में कहीं ज्यादा किफायती और प्रभावी होगी।”

चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि, इस महत्वाकांक्षी परियोजना के सामने कई चुनौतियां भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी उच्च ऊर्जा को नियंत्रित करना और सटीक निशाना लगाना तकनीकी रूप से जटिल है। इसके अलावा, मौसम की स्थिति-जैसे कोहरा या बारिश-लेजर की प्रभावशीलता को कम कर सकती है। फिर भी, डीआरडीओ के वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार प्रयोग कर रहे हैं।

एक अन्य रक्षा विशेषज्ञ, डॉ. अनिता मेहता, बताती हैं, “DEW तकनीक भविष्य की लड़ाई का आधार बनने जा रही है। यह न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभकारी है। भारत अगर इसमें सफल होता है, तो यह तकनीक निर्यात के लिए भी एक बड़ा बाजार खोल सकती है।”

आगे की राह

‘सूर्य’ हथियार भारत के आत्मनिर्भर रक्षा सपने को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल देश की सीमाओं को सुरक्षित करेगा, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की तकनीकी ताकत का परचम भी लहराएगा। जैसे-जैसे 2027 की समयसीमा नजदीक आ रही है, दुनिया की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या ‘सूर्य’ वाकई भारत के आसमान को नई रोशनी से चमकाने में कामयाब होगा।

(लेखक स्वतंत्र रक्षा पत्रकार हैं। यह लेख तथ्यों और विशेषज्ञ राय पर आधारित है।)


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