
ऐसी ही एक प्रसिद्ध कथा देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी है.


यह कथा देवी सती से शुरू होती है, जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह किया था. लेकिन दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे और हमेशा उन्हें अपमानित करने के अवसर खोजते रहते थे. एक बार दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया जिसमें सभी देवी-देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया.
शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
दस महाविद्याओं का प्रकट होना और शिवजी की घबराहट
जब यह बात सती को पता चली, तो उन्होंने यज्ञ में जाने की इच्छा जताई. भगवान शिव ने सती को कई बार समझाया कि बिना निमंत्रण के जाना उचित नहीं, लेकिन सती अपने पिता के यहां जाने की जिद पर अड़ गईं. उनका मानना था कि पिता के घर जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती.
शिवजी के बार-बार मना करने पर देवी सती को इतना क्रोध आया कि वे आदिशक्ति रूप में प्रकट हो गईं. उन्होंने अपने क्रोध से दसों दिशाओं से दस शक्तियों को उत्पन्न किया, जिन्हें हम आज दश महाविद्याएं कहते हैं. इन शक्तियों ने चारों ओर से शिवजी को घेर लिया. स्थिति ऐसी बन गई कि शिवजी भी क्षणभर के लिए घबरा गए.
पतियों के डर की पौराणिक शुरुआत?
कहा जाता है कि यहीं से पति द्वारा पत्नी के क्रोध से डरने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है. आखिरकार शिवजी ने सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. यह कथा न केवल पौराणिक महत्व रखती है बल्कि आज के वैवाहिक रिश्तों की एक दिलचस्प झलक भी पेश करती है.
