
रुद्रपुर।उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर में 16 अप्रैल की सुबह घटित एक दर्दनाक हादसे ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। रामपुर रोड पर एक बुजुर्ग दंपती की तेज रफ्तार रोडवेज बस की चपेट में आने से मौके पर ही मौत हो गई। लेकिन पुलिस की मुस्तैदी, तकनीकी दक्षता और सीसीटीवी की आंखों ने यह साबित कर दिया कि अपराध चाहे कितना भी तेज क्यों न भागे, कानून की पकड़ से बच नहीं सकता।


शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
टक्कर… और फिर मौत का सन्नाटा
प्रीत विहार निवासी उमेद सिंह दानू के बड़े भाई कलम सिंह (68) और भाभी हीरा देवी (65) सुबह किसी निजी काम से घर से निकले थे। जैसे ही वे उत्तराखंड ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के पास पहुंचे, तभी हल्द्वानी डिपो की एक तेज रफ्तार रोडवेज बस (नंबर UP 07 PA 5112) ने उन्हें बेरहमी से रौंद दिया। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि दंपती को तुरंत जिला अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
हादसे के बाद बस चालक मौके से फरार हो गया। लेकिन पुलिस ने इस गंभीर मामले को हल्के में नहीं लिया।
सीसीटीवी कैमरों ने खोला राज, आरोपी चढ़ा हत्थे
एसएसपी के सख्त निर्देशों के बाद पुलिस ने रामपुर रोड से लेकर बिलासपुर कोयला टोल प्लाजा तक 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली। जांच के दौरान रोडवेज की जिस बस की पहचान हुई, वह हल्द्वानी डिपो की निकली। फिर एक टीम गठित कर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए दबिशें दी गईं।
शनिवार को ग्राम गंगोली, थाना किच्छा निवासी लतीफ अहमद को गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में उसने हादसे की जिम्मेदारी कबूल कर ली। पुलिस ने बस को भी सीज कर दिया है।
आरोपी को भेजा गया जेल, पुलिस की त्वरित कार्रवाई की सराहना
सीओ प्रशांत कुमार ने बताया कि तकनीकी सहायता, विशेषकर सीसीटीवी फुटेज ने इस केस में निर्णायक भूमिका निभाई। आरोपी को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
यह केस इस बात का सटीक उदाहरण बनकर सामने आया है कि जब पुलिस दृढ़ इच्छाशक्ति और आधुनिक तकनीक से लैस हो, तो न्याय तक पहुंचना कठिन नहीं होता।
परिवहन व्यवस्था पर उठते सवाल—रोडवेज बसें बनीं खतरा
इस पूरे हादसे ने उत्तराखंड की खस्ताहाल परिवहन व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। रोडवेज की अधिकांश बसें या तो जर्जर हैं या उनके चालक प्रशिक्षण और अनुशासन से कोसों दूर हैं। कहा जाता है कि रोडवेज की कई बसें ‘सुख-नशा-खर्राटा’ की तिकड़ी पर चल रही हैं—कहीं चालक नशे में पाए जाते हैं, तो कहीं बसें खुद ही मौत का निमंत्रण बन जाती हैं।
हर हादसे के बाद मुआवजे की खानापूर्ति होती है, लेकिन न तो बसों की फिटनेस की गंभीरता से जांच होती है, न ही चालकों की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाए जाते हैं। क्या किसी निरीक्षण अधिकारी की कोई जिम्मेदारी तय होगी? या फिर यह भी किसी फाइल के नीचे दब जाएगा?
शहर की सड़कों पर सुरक्षा का अभाव—डिवाइडर क्यों नहीं?
हादसे की जगह रुद्रपुर शहर से महज़ 2 किलोमीटर आगे थी। आश्चर्य की बात है कि शहर के इतने नजदीक होने के बावजूद उस सड़क पर न कोई सुरक्षा व्यवस्था है, न डिवाइडर। यदि दोनों ओर दो-दो किलोमीटर तक मजबूत डिवाइडर होते, तो यह हादसा शायद टल सकता था।
उधम सिंह नगर में आए दिन सड़क हादसे होते हैं, लेकिन जिला प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। न कोई रोड सेफ्टी अभियान दिखता है, न कोई सख्त नीति। क्या आम नागरिक की जान इतनी सस्ती हो गई है?
- रोडवेज ड्राइवरों की नियमित मेडिकल और मानसिक जांच अनिवार्य की जाए।
- सभी बसों में जीपीएस और डैशबोर्ड कैमरे अनिवार्य रूप से लगाए जाएं।
- सड़क किनारे डिवाइडर और स्पीड ब्रेकर की संख्या बढ़ाई जाए, विशेषकर शहर के बाहर जाती मुख्य सड़कों पर।
- ऐसे मामलों में दोषी परिवहन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो।
- पीड़ित परिवार को त्वरित और पर्याप्त मुआवजा मिले।
कलम सिंह और हीरा देवी की मौत केवल एक हादसा नहीं थी, बल्कि यह एक सिस्टम की नाकामी का क्रूर प्रमाण है। पुलिस ने भले ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया हो, लेकिन जब तक सड़कों पर व्यवस्था का पहरा नहीं होगा, तब तक इस तरह की मौतें होती रहेंगी।
जरूरत है सख्त कानून की, जवाबदेही तय करने की और ऐसी व्यवस्था की जिसमें आमजन खुद को सुरक्षित महसूस करें। वरना यह सड़कें किसी के लिए रास्ता नहीं, बल्कि मौत का फंदा बन जाएंगी।
