शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का तीखा प्रहार: पहलगाम आतंकी हमले ने दिखा दिया कि आतंक का धर्म है इस्लाम संवाददाता: अवतार सिंह बिष्ट, शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रूद्रपुर (उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी)

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए ताजा आतंकी हमले ने एक बार फिर राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र की गंभीर खामियों को उजागर किया है। इस घटना में आतंकियों ने धर्म पूछकर निर्दोषों की हत्या की, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस दर्दनाक त्रासदी पर उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के पीठाधीश्वर, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अत्यंत तीखी प्रतिक्रिया दी है, जो अब एक राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बन चुकी है।

धार्मिक और वैचारिक स्पष्टता:
ग्वालियर में अल्प प्रवास के दौरान स्वामीजी ने पत्रकार वार्ता में कहा, “अब तक यह भ्रम फैलाया गया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन पहलगाम हमले में धर्म पूछकर हत्याएं की गईं। यह साबित करता है कि आतंकवाद का धर्म है – इस्लाम। यदि ऐसा नहीं होता, तो अब तक मुस्लिम धर्मगुरु इस घटना की सार्वजनिक निंदा करते, आतंकी मानसिकता वाले मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की बात करते।”

प्रशासनिक लापरवाही और खुफिया तंत्र की विफलता:
शंकराचार्य ने कड़ी प्रतिक्रिया में कहा कि जब तक भारत सरकार इस हमले की जवाबदेही तय नहीं करती, तब तक इस प्रकार के हमले होते रहेंगे। उन्होंने कहा कि “कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार दोनों इस हमले को रोकने में असफल रहे हैं। ये खुफिया तंत्र की सबसे बड़ी विफलता है।”

पाकिस्तान को लेकर युद्ध की चेतावनी:
स्वामीजी ने पाकिस्तान की संलिप्तता पर सीधा प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि यदि यह प्रमाणित हो जाए कि पाकिस्तान इस हमले में शामिल है, तो भारत को तत्काल युद्ध की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि “हजार फैसले भी तब तक व्यर्थ हैं, जब तक 26 मारे गए निर्दोषों के दोषियों के नाम और चेहरे सामने नहीं आते।”

गाजा पट्टी और भारत की तुलना:
गंभीर वैश्विक तुलना करते हुए उन्होंने कहा, “गाजा पट्टी में जब चार लोग मारे गए, तो पूरी दुनिया की नजरें उधर मुड़ गईं, जबकि भारत में 26 लोगों की हत्या के बाद भी केवल मौखिक प्रतिक्रिया हो रही है। क्या हिंदू नागरिकों का जीवन इतना सस्ता है?”

हिंदुओं के लिए शास्त्र के साथ शस्त्र की आवश्यकता:
शंकराचार्य ने हिंदू समाज से आह्वान किया कि अब केवल शास्त्र ज्ञान पर्याप्त नहीं है। आज का युग आत्मरक्षा का है और हर हिंदू को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र प्रशिक्षण लेना होगा। उन्होंने कहा, “हम सनातनी धर्माचार्य हैं, लेकिन समय की आवश्यकता को देखते हुए अब हमें हिंदुओं को प्रशिक्षित करना होगा। जम्हूरियत से अब कोई उम्मीद नहीं बची है।”

शरबत जिहाद और हलाल मानसिकता पर टिप्पणी:
चेन्नई कोर्ट में दिए गए एक एफिडेविट का उल्लेख करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि मुस्लिम समुदाय की ‘हलाल’ मानसिकता केवल खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और सांस्कृतिक रणनीति है। उन्होंने कहा कि मुसलमान तब तक किसी वस्तु का सेवन नहीं करते जब तक उसमें उनका ‘शारीरिक अंश’ न मिलाया जाए। यह मानसिकता ‘शरबत जिहाद’ जैसी गतिविधियों को जन्म देती है।

रॉबर्ट वाड्रा के बयान को खारिज किया:
राजनीति के सवाल पर उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा के बयानों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनके बयानों को तूल देना समय की बर्बादी है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि सनातनी समाज राजनीतिक रूप से भी संगठित हो।

सनातनियों के लिए नई राजनीतिक शक्ति की आवश्यकता:
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि हिंदुओं को अब अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक नई राजनीतिक शक्ति का निर्माण करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब सनातनियों को केवल धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें राष्ट्र निर्माण और नीति निर्धारण की प्रक्रिया में भी भागीदारी करनी होगी।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
भारत में धार्मिक आधार पर हुई हिंसा कोई नई बात नहीं है। इस्लामी आक्रांताओं द्वारा भारत पर हमलों से लेकर आधुनिक काल के सांप्रदायिक दंगों तक, हिंदू समाज ने बार-बार आक्रमण सहा है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की प्रतिक्रिया एक ऐसी ऐतिहासिक चेतना की पुनरावृत्ति है जो 1000 वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक संघर्षों में झलकती रही है। उनकी बातों में वह आवाज है जो महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और स्वामी विवेकानंद जैसे राष्ट्रनायकों के चिंतन से जुड़ती है।

सामाजिक और राजनीतिक असर:
स्वामीजी की इस मुखर प्रतिक्रिया ने सामाजिक स्तर पर दो स्पष्ट खेमे बना दिए हैं—एक वह जो इसे आतंकवाद के विरुद्ध न्याय की पुकार मानते हैं, और दूसरा जो इसे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के खतरे के रूप में देखता है। राजनीतिक क्षेत्र में इसने सनातनी चेतना को एक नई दिशा दी है। अनेक हिंदू संगठन और युवा मंच शंकराचार्य जी के इस आह्वान को समर्थन दे रहे हैं। यह स्थिति आने वाले समय में भारतीय राजनीति के समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष:
जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की यह प्रतिक्रिया केवल एक आतंकी हमले पर नाराजगी नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के एक वर्ग की दीर्घकालिक पीड़ा, असुरक्षा और उपेक्षा की अभिव्यक्ति है। यह वक्त है जब देश को न केवल आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्यवाही करनी होगी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी अपने ताने-बाने को मजबूत करना होगा।


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