जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को एक बार फिर तनावपूर्ण मोड़ पर पहुंचा दिया है. इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई, जबकि 20 से अधिक घायल हुए.

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जिस स्थान को लोग शांति और सुकून के लिए चुनते थे, वह अब मौत का मंजर बन गया.

इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) नामक आतंकी संगठन ने ली है, जिसे लश्कर-ए-तैयबा का ही एक हिस्सा माना जाता है और माना जाता है कि इसे पाकिस्तान की गुप्त सैन्य एजेंसियों का समर्थन प्राप्त है. पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इसमें संलिप्तता से इनकार कर दिया है, लेकिन घटनाक्रम नया नहीं, बल्कि एक पुरानी रणनीति की पुनरावृत्ति जैसा प्रतीत होता है.

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

पाकिस्तान के अस्तित्व का खतरा

दरअसल, यह घटनाक्रम 1993 में अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) द्वारा तैयार किए गए गुप्त दस्तावेज की भविष्यवाणी को साकार करता नजर आ रहा है. नेशनल इंटेलिजेंस एस्टीमेट (NIE) नामक उस आकलन में कहा गया था कि पाकिस्तान भारत को केवल सैन्य या आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि एक ‘अस्तित्वगत खतरे’ के रूप में देखता है. उस दस्तावेज़ ने चेताया था कि भविष्य में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष कश्मीर से शुरू हो सकता है, जिसमें पाकिस्तान को शुरू से ही रणनीतिक नुकसान उठाना पड़ेगा.

यह रिपोर्ट ऐसे समय में तैयार हुई थी जब भारत आर्थिक उदारीकरण की राह पर था और पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य शासन और आर्थिक संकट से जूझ रहा था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पाकिस्तान भारत के प्रभाव को सीमित करने के लिए आतंकवाद को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में अपना सकता है. TRF जैसे समूहों की रणनीति उसी परिपाटी की पुष्टि करती है.

LoC पर बढ़ा तनाव

आज की स्थिति में, भारतीय खुफिया एजेंसियां TRF के पीछे पाकिस्तान की डीप स्टेट की भूमिका को लेकर सतर्क हैं. वहीं, भारत ने इस आतंकी हमले के बाद अपनी कूटनीतिक और सैन्य रणनीति को तेज कर दिया है. पाकिस्तान की ओर से लगातार संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे LoC पर तनाव और बढ़ गया है.

युद्ध की संभावना

विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला केवल एक आतंकी वारदात नहीं, बल्कि भारत को रणनीतिक रूप से अस्थिर करने की सोची-समझी साजिश है. सीआईए की रिपोर्ट में जिस ‘संपूर्ण युद्ध की संभावना’ की बात कही गई थी, वह आज की परिस्थितियों में अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत हो रही है. तीन दशकों बाद भी 1993 की वह चेतावनी आज के हालात में एक जीवंत दस्तावेज बनकर खड़ी है, न केवल अतीत की गवाही के रूप में, बल्कि वर्तमान के लिए एक गंभीर संकेत भी.


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