
चुनाव के दौरान कई जगहों पर लोग मांग पूरी न होने और विकास का कार्य न करवाए जाने पर चुनाव का बहिष्कार करते हैं और अपना विरोध दर्ज करवाते हैं. क्या आपको पता है कि आजादी के 78 साल हो जाने के बाद भी उत्तराखंड में एक गांव है, जहां किसी भी इंसान ने अभी तक वोट नहीं डाला है? चलिए आपको इस हैरान कर देने वाली घटना के बारे में विस्तार से बताते हैं.


क्यों वोट नहीं डालते लोग?
उत्तराखंड के नैनीताल में एक गांव है तल्ला बोथों. आजादी के 78 साल होने पर भी अभी तक इस गांव में प्रधानी के लिए किसी भी शख्स ने वोट नहीं डाला है. रिपोर्ट के अनुसार, अब तक इस गांव में 100 प्रधान चुने जा चुके हैं, लेकिन वोट करने की नौबत कभी नहीं आई. हर बार प्रधानी के दौरान इस गांव में प्रधान निर्विरोध चुना जाता है. वही उम्मीदवार नामांकन करने जाता है, जिस गांव वालों ने आपसी सहमति से चुना होता है.
कैसे होता है गांव के प्रधान का चुनाव?
इस गांव का एक नियम है कि गांव के प्रधान को चुनते समय बुजुर्ग और सभी लोगों की सहमति का ध्यान रखा जाता है. जिस इंसान पर गांव के सभी लोग सहमत हो जाते हैं उसी को गांव का प्रधान चुन लिया जाता है. हालांकि, प्रधान के चुनाव के दौरान इस बात का ख्याल जरूर रखा जाता है कि उसी व्यक्ति का चयन हो, जो गांव के विकास में अपना योगदान दे सके. गांव के सभी जरूरतों को पूरा करने और अपने काम को अच्छे से करने वाले को गांव का प्रधान चुना जाता है. यही कारण है कि आजादी के 78 साल बीत जाने के बाद भी इस गांव के लोगों ने अभी तक वोट नहीं दिया है.
इस प्रक्रिया से क्या फायदा?
अब सवाल उठता है कि इस गांव के लोग चुनाव क्यों नहीं कराते और इससे क्या फायदा होता है? इस पर गांव के लोगों का कहना है कि सर्वसम्मति से प्रधान चुनने के कारण चुनाव पर होने वाला खर्च बच जाता है. ऐसे में उस पैसे का इस्तेमाल गांव के विकास पर किया जाता है. यह गांव नीब करौरी बाबा के कैंची धाम से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां पक्की सड़कें, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. इसके अलावा गांव में सोलर लाइटें भी लगी हुई हैं.

