
देहरादून, 10 जुलाई।उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में छद्म साधु-संतों और आस्था के नाम पर पाखंड फैलाने वालों के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए ऑपरेशन कालनेमि शुरू करने के आदेश दिए हैं। यह कदम हाल के महीनों में सामने आए उन मामलों के बाद उठाया गया है, जिनमें कथित बाबाओं द्वारा महिलाओं से ठगी, यौन शोषण और अंधविश्वास फैलाने की शिकायतें मिली हैं। सरकार का दावा है कि यह कार्रवाई सनातन संस्कृति की गरिमा बचाने के लिए जरूरी है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
हालांकि, इस ऑपरेशन को लेकर समाज के एक वर्ग में आशंका भी है। धार्मिक और सामाजिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि कहीं इस सख्ती की आड़ में वास्तविक साधु-संत, जो किसी अखाड़े या संगठित धार्मिक संस्था से नहीं जुड़े हैं, लेकिन एकांत साधना या आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं, अनजाने में जांच के दायरे में तो नहीं आ जाएंगे।
‘कालनेमि’ की संज्ञा क्यों?
सरकार का कहना है कि जिस प्रकार रामायण में असुर कालनेमि साधु का वेश धारण कर लोगों को भ्रमित करता था, उसी प्रकार आज कई अपराधी साधु-संत का चोला ओढ़कर ठगी और अपराध कर रहे हैं। ऐसे छद्मवेशधारियों को बेनकाब करना ऑपरेशन का उद्देश्य है।
हिंदू धार्मिक संगठनों में चिंता
हिंदू धर्म में परंपरागत रूप से अखाड़ों की व्यवस्था है, जहां साधु-संत विधिवत दीक्षा लेकर संगठित रूप में रहते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे साधु भी होते हैं जो अखाड़ों या संगठनों से जुड़े नहीं होते और व्यक्तिगत साधना करते हैं।
हिंदू संत परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“हम सरकार के अभियान का स्वागत करते हैं, लेकिन चिंता यह है कि कहीं इस ऑपरेशन में निर्दोष साधु भी परेशान न किए जाएं। सभी साधु किसी संगठन से जुड़े हों, यह जरूरी नहीं। कई संत आध्यात्मिक साधना के रास्ते पर अकेले चलते हैं। उन्हें भी ‘फर्जी’ करार देना न्यायसंगत नहीं होगा।”
प्रशासन देगा सतर्कता का भरोसा
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन कालनेमि में यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाएगी कि किसी निर्दोष या सच्चे साधु को बेवजह परेशान न किया जाए। जांच में पहचान सत्यापन, पृष्ठभूमि की जांच और स्थानीय सूचनाओं के आधार पर ही कार्रवाई की जाएगी।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा,
“हमारा उद्देश्य किसी धर्म विशेष को निशाना बनाना नहीं है। कार्रवाई सिर्फ उन्हीं पर होगी जिन पर ठगी, यौन शोषण या समाज विरोधी गतिविधियों के प्रमाण मिलेंगे। सच्चे साधुओं को डरने की जरूरत नहीं है।”
कानूनी पेचिदगियां भी चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि यह ऑपरेशन कानूनी दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। ऐसे में ‘फर्जी’ साधु और वास्तविक साधु में फर्क करना आसान नहीं होगा, खासकर जब कोई व्यक्ति किसी संगठन या अखाड़े से जुड़ा न हो।
धार्मिक मामलों के जानकार डॉ. एस.के. मिश्रा कहते हैं,
“अगर सरकार सबूतों पर कार्रवाई करेगी, तो कोई दिक्कत नहीं। लेकिन अगर महज पोशाक या साधु-संत की जीवन शैली को आधार बनाकर कार्रवाई हुई, तो इससे धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े होंगे। जरूरत इस बात की है कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी हो।”
जनमानस में मिश्रित प्रतिक्रिया
प्रदेश में आम लोग भी इस ऑपरेशन को लेकर दोराहे पर हैं। जहां एक ओर लोग चाहते हैं कि ढोंगी बाबाओं पर शिकंजा कसा जाए, वहीं दूसरी ओर यह डर भी है कि कहीं आस्था का सच्चा स्वरूप ही सवालों के घेरे में न आ जाए।
हरिद्वार के एक स्थानीय श्रद्धालु कहते हैं,
“हमारे गांव में एक साधु अकेले साधना करते हैं। वे किसी अखाड़े से नहीं जुड़े। अगर प्रशासन सिर्फ संगठन के आधार पर असली-नकली तय करेगा, तो ऐसे सच्चे साधु मुश्किल में पड़ सकते हैं।”
सरकार पर निष्पक्षता की जिम्मेदारी
फिलहाल सरकार के पास चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि ऑपरेशन कालनेमि का उद्देश्य पाखंडियों पर कार्रवाई तक ही सीमित रहे, और किसी वास्तविक साधु-संत को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए।
उत्तराखंड सरकार ने बार-बार दोहराया है कि सनातन संस्कृति की गरिमा की रक्षा उसकी प्राथमिकता है, और किसी निर्दोष व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि फर्जी और असली के बीच की रेखा बेहद पतली है, जिसे पहचानना प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा।
ऑपरेशन कालनेमि एक अच्छी पहल है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सत्य और पाखंड में फर्क करने में प्रशासन कितनी बारीकी और निष्पक्षता दिखा पाता है। अगर यह अभियान केवल अखाड़ों की मान्यता पर आधारित रहा, तो उन साधुओं के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है, जो संगठनों से अलग

