किच्छा राजनीति में वक्त और वक़्त का रुख़ दोनों ही निर्णायक होते हैं। किच्छा के पूर्व विधायक राजेश शुक्ला के राजनीतिक ग्राफ़ को देखें तो 2022 की हार के बाद से उनकी पकड़ लगातार ढीली होती नज़र आ रही है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को उन्होंने अपनी ताकत दिखाने का सेमीफाइनल बनाया, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। तीन जिला पंचायत सीटों पर अपने पसंद के उम्मीदवार उतारने के बावजूद जनता ने साफ संदेश दे दिया कि पुराने वादे और पुराने चेहरे अब आकर्षण नहीं रखते।।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


पूर्व विधायक राजेश शुक्ला के राजनीतिक सफर को एक और झटका लगा है। किच्छा में जनता पहले ही उन्हें नकार चुकी थी और अब भाजपा ने उनकी मांग ठुकराकर साफ संकेत दे दिया है कि पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव में नए विकल्प तलाश रही है। पंचायत चुनावों में किच्छा क्षेत्र में भाजपा की हार ने इस संदेश को और स्पष्ट कर दिया है कि शुक्ला का असर तेजी से घट रहा है। इधर, सांसद प्रतिनिधि विपिन जल्हात्रा का कद संगठन में लगातार बढ़ता दिख रहा है। उनकी पत्नी को रुद्रपुर ब्लॉक प्रमुख पद का प्रत्याशी बनाना न सिर्फ उनकी सक्रियता का परिणाम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अब स्थानीय स्तर पर मजबूत, स्वीकार्य और जमीनी पकड़ वाले चेहरों पर दांव लगा रही है। यह फैसला भाजपा के अंदरूनी समीकरणों और भविष्य की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। शुक्ला के लिए यह समय आत्ममंथन का है, जबकि विपिन जल्हात्रा के लिए यह अवसर अपनी पकड़ को और मजबूत करने का है। राजनीति में संकेत अक्सर शब्दों से ज्यादा बोलते हैं, और भाजपा का यह निर्णय भी एक बड़े बदलाव का संकेत देता है।
राजनीतिक झटका यहीं खत्म नहीं हुआ। रुद्रपुर ब्लॉक प्रमुख के पद के लिए भी पार्टी ने उनकी पसंद को नकारते हुए सांसद प्रतिनिधि विपिन जल्होत्रा की पत्नी ममता जल्होत्रा को टिकट दे दिया। यह निर्णय न सिर्फ संगठनात्मक प्राथमिकताओं का संकेत है, बल्कि इस बात का भी इशारा कि भाजपा अब किच्छा में 2027 के लिए ‘नया चेहरा’ तलाशने की तैयारी में है। पंचायत चुनाव में पार्टी का किच्छा में कमजोर प्रदर्शन सीधे तौर पर शुक्ला की घटती लोकप्रियता से जोड़ा जा रहा है।
राजनीति में जीत-हार स्वाभाविक है, लेकिन लगातार झटके और संगठन से घटती पकड़ यह संकेत देते हैं कि किच्छा में नेतृत्व परिवर्तन अब केवल संभावना नहीं, बल्कि पार्टी की रणनीति का हिस्सा बन चुका है। आने वाले वर्षों में भाजपा किसे तिलक राज बेहड़ के सामने उतारती है, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन फिलहाल, पूर्व विधायक शुक्ला के लिए यह समय आत्ममंथन का है—क्योंकि जनता के ‘न’ और पार्टी के ‘ना’ के बीच अब राजनीतिक वापसी की राह और कठिन हो चुकी है।

