
भराड़ीसैंण में 19 से 22 अगस्त तक चलने वाला मानसून सत्र शुरू होने वाला है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दावा है कि “हम पूरी तरह तैयार हैं।” सवाल यह है कि आखिर तैयारियां किसके लिए हैं—विधानसभा में उठने वाले सवालों के जवाब के लिए, या फिर जनता की उस आकांक्षा को टालने के लिए जो पिछले 25 वर्षों से “स्थायी राजधानी गैरसैंण” की मांग के रूप में जिंदा है?✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)


विधानसभा सचिवालय को अब तक 32 विधायकों से 547 प्रश्न मिल चुके हैं। सुरक्षा, नेटवर्क, वाई-फाई और स्वास्थ्य सेवाओं की समीक्षा बैठकों में जोर-शोर से चर्चा हो रही है। प्रवेश पास से लेकर वीआईपी सुविधाओं तक सब कुछ व्यवस्थित करने के आदेश दिए गए हैं। मगर, जिस मुद्दे पर सबसे बड़ी तैयारी होनी चाहिए—गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की, उस पर सरकार और सत्ता पक्ष की घोर चुप्पी क्यों?
गैरसैंण को उत्तराखंड की “ग्रीष्मकालीन राजधानी” घोषित किए जाने के बाद भी यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या यह फैसला सिर्फ पहाड़ की जनता को तसल्ली देने के लिए लिया गया था? जब 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, तब से ही राज्य आंदोलनकारियों और उत्तराखंड क्रांति दल का सपना था—”पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ में हो।” मगर, 25 साल बाद भी राजधानी अस्थायी देहरादून में ही क्यों है?
मुख्यमंत्री धामी बार-बार विकास की बात करते हैं। मगर क्या बिना स्थायी राजधानी तय किए “स्थाई विकास” संभव है? भराड़ीसैंण विधानसभा का हर सत्र दरअसल इस तथ्य की याद दिलाता है कि सरकार जनता को राजधानी पर ठोस निर्णय देने से कतराती रही है। हर बार व्यवस्थाओं पर बयान दिए जाते हैं, हर बार सत्र “औपचारिकता” बनकर रह जाता है।
आज जरूरत है इस सत्र में मुख्यमंत्री धामी यह घोषणा करें कि उत्तराखंड की स्थायी राजधानी गैरसैंण ही होगी। तभी राज्य आंदोलनकारियों के बलिदान का सम्मान होगा और जनता को यह भरोसा मिलेगा कि सरकार पहाड़ के हित में निर्णय लेने का साहस रखती है।
स्थाई विकास नहीं, स्थायी राजधानी चाहिए।
उत्तराखंड को फिर वही उत्तराखंड चाहिए—जिसका सपना आंदोलनकारियों ने देखा था।

