
भराड़ीसैंण की ठंडी वादियों में जब मानसून सत्र का आगाज़ हुआ तो पूरे उत्तराखंड की निगाहें विधान भवन पर टिक गईं। उम्मीद थी कि आपदा, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन और लोकायुक्त जैसे गंभीर विषयों पर गंभीर चर्चा होगी। लेकिन पहले ही दिन का दृश्य चौंकाने वाला रहा—विपक्ष का शोर-शराबा, मेजें पलटतीं, माइक टूटते, कार्यवाही सात बार स्थगित होती और अंततः मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का 5315 करोड़ का अनुपूरक बजट शोर-गुल के बीच पेश हो जाना।यह तस्वीर केवल सदन की नहीं थी, बल्कि उस परछाई का रूप थी जिसमें उत्तराखंड की राजनीति पिछले ढाई दशक से कैद है।
सदन का हंगामेदार दिन :सुबह 11 बजे से शुरू हुआ हंगामा।कांग्रेस विधायकों ने सचिव की मेज पलटी, माइक तोड़ा, कार्यसूची फाड़ी।सात बार सदन स्थगित हुआ।दिवंगत पूर्व विधायक मुन्नी देवी को श्रद्धांजलि दी गई, किंतु बाद में वही श्रद्धांजलि देने वाले विधायक वेल में धरना देते दिखाई दिए।
धामी ने बजट रखा, नौ विधेयक पटल पर आए।


पेश हुए विधेयक : उत्तराखंड विनियोग अनुपूरक विधेयक 2025
2.बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर अधिनियम संशोधन
- धर्म स्वतंत्रता एवं विधि विरुद्ध प्रतिषेध संशोधन
- निजी विश्वविद्यालय संशोधन
- साक्षी संरक्षण निरसन विधेयक
- अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक
- समान नागरिक संहिता संशोधन
- पंचायती राज संशोधन
- लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक
मुख्यमंत्री धामी की प्रतिक्रिया :मुख्यमंत्री ने विपक्ष को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि—विपक्ष जनता के मुद्दों से भाग रहा है।कांग्रेस की परंपरा बन चुकी है कि चुनाव हारकर ईवीएम और चुनाव आयोग को दोष दो।पंचायत चुनाव भाजपा की भारी जीत का प्रमाण हैं कि जनता ने विकास का जिम्मा हमें सौंपा है।
नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा और उपाध्यक्ष कांग्रेस का होना ही निष्पक्षता का सबूत है।
हमें बहस चाहिए थी, लेकिन विपक्ष ने कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाईं।
स्पीकर ऋतु खंडूड़ी का क्षोभ :यह सदन की संपत्ति है। आप जनता के वोट से यहां आए हैं, उनकी संपत्ति मत तोड़िए।”
स्पीकर की यह बात केवल सदन में बैठे विधायकों के लिए नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की आत्मा के लिए कही गई प्रतीत हुई।
सवाल : क्या यही था आंदोलनकारियों का सपना?
जब 1994 में उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर कुमाऊं-गढ़वाल की सड़कों पर रक्त बहा था, तब आंदोलनकारियों की परिकल्पना यह थी कि—
एक स्वच्छ राजनीति,
पारदर्शीशासन,जनभागीदारी वाला विकास,शिक्षा और स्वास्थ्य से सुसज्जित पहाड़,पलायन-मुक्त गांव,
और भ्रष्टाचार से मुक्त प्रशासन होगा।
लेकिन आज जब हम 25 वर्ष पूरे होने की ओर हैं, तो प्रश्न खड़ा होता है कि क्या यह हंगामेदार सदन, टूटती टेबलें, और ध्वनित बजट उसी परिकल्पना का हिस्सा था?
अनुपूरक बजट की हकीकत :5315 करोड़ का अनुपूरक बजट कई मायनों में ज़रूरी है।
आपदाओं से निपटने के लिए अतिरिक्त राशि,
सड़क और स्वास्थ्य पर व्यय,कृषि और रोजगार योजनाओं के लिए प्रावधान।
लेकिन विपक्ष का शोर इस प्रश्न को जन्म देता है कि क्या जनता तक यह पैसा वास्तव में पहुंचेगा?
पिछले वर्षों की CAG रिपोर्ट्स बताती हैं कि करोड़ों रुपये योजनाओं में अटक जाते हैं, अधूरे प्रोजेक्ट्स का बोझ बढ़ता है और जनता को लाभ नहीं मिलता।
नौ विधेयक और उनकी राजनीतिक गूंज :इनमें सबसे चर्चित रहा समान नागरिक संहिता संशोधन विधेयक।
धामी सरकार इसे उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेगी, वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताएगा।
इसके अलावा—
निजी विश्वविद्यालय संशोधन शिक्षा व्यवस्था में निजीकरण की दिशा और दिखाता है।
लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक पुराने जनांदोलनों की याद दिलाता है, लेकिन सवाल यह भी है कि राज्य आंदोलनकारियों की उपेक्षा क्यों जारी है?
विपक्ष की भूमिका :कांग्रेस की भूमिका लगातार संदेह के घेरे में रही है। जनता पूछती है—
क्या विपक्ष सिर्फ कुर्सी पलटने और नारेबाजी तक सीमित रहेगा?
क्या विपक्ष ने कभी ठोस वैकल्पिक विकास मॉडल प्रस्तुत किया?
क्या यह वही कांग्रेस है, जिसके शासन में आंदोलनकारियों पर गोली चली थी?
भाजपाकीस्थिति :भाजपा को लगातार जीत इसलिए मिल रही है क्योंकि विपक्ष जनता का भरोसा खो चुका है।
लेकिन भाजपा पर भी सवाल कम नहीं हैं—क्या विकास सिर्फ योजनाओं की घोषणाओं तक सीमित है?क्या पलायन रुका?क्या स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार आया?क्या युवाओं को नौकरी मिली?लोकतांत्रिक गरिमा बनाम राजनीतिक नौटंकी :उत्तराखंड की विधान सभा एक लोकतांत्रिक मंदिर है। यहां होने वाला हर हंगामा पूरे राज्य का अपमान है।
राज्य आंदोलनकारियों ने इसलिए बलिदान नहीं दिया था कि आज विधायक टेबल पलटें और माइक तोड़ें।
राज्य आंदोलनकारी की परिकल्पना :राज्य आंदोलनकारी एक ऐसे उत्तराखंड की कल्पना कर रहे थे जहां—
- राजनीति सेवा का माध्यम हो, स्वार्थ का नहीं।
- विधायिका में मुद्दों पर बहस हो, हंगामा नहीं।
- अनुपूरक बजट जनता के जीवन स्तर को सुधारने में लगे।
- युवाओं को रोजगार और गांवों को आजीविका मिले।
- लोकायुक्त जैसी संस्थाएं भ्रष्टाचार को रोकें।
- राज्य की संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा हो।
आज जब सदन में माइक टूटता है तो मानो आंदोलनकारियों की आत्मा भी घायल हो जाती है।
✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
उत्तराखंड की जनता अब समझ चुकी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की जवाबदेही है।
सत्ता पक्ष को बजट और विधेयकों को जनता तक पहुंचाना होगा।
विपक्ष को शोर-शराबे से ऊपर उठकर ठोस मुद्दे उठाने होंगे।
राज्य आंदोलनकारी की परिकल्पना तभी साकार होगी जब उत्तराखंड की विधान सभा हंगामे का अखाड़ा नहीं बल्कि समाधान का केंद्र बने।

