
रामनगर की घटना ने एक बार फिर से उत्तराखंड की राजनीति, समाज और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक नाबालिग छात्रा के ‘प्रेमजाल’ में फँसाए जाने और उसके विवादित वीडियो के वायरल होने ने स्थानीय जनमानस को हिला कर रख दिया है। इस पूरे प्रकरण ने केवल एक छात्रा के जीवन पर संकट नहीं डाला, बल्कि सामुदायिक सौहार्द, सामाजिक संतुलन और प्रशासनिक जिम्मेदारी को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
हिंदूवादी संगठनों द्वारा पुतला दहन और बुलडोजर एक्शन की मांग ऐसे समय में उठ रही है जब राज्य में स्वयं को “हिंदू हितों का रक्षक” बताने वाली भाजपा सरकार सत्ता में है। सवाल यही है कि यदि हिंदूवादी सरकार होने के बावजूद आम हिंदुओं को सड़कों पर उतरकर लव जिहाद जैसे मामलों के खिलाफ विरोध करना पड़ रहा है, तो आखिर यह सत्ता किसके लिए है?
1. घटना और उसका सामाजिक असर?रामनगर की यह घटना अपने आप में बेहद संवेदनशील है। आरोप है कि छात्रा को मुस्लिम सहपाठी के माध्यम से एक युवक से मिलवाया गया, उसे बुर्का पहनाया गया और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया गया। यह न केवल बाल संरक्षण कानून का उल्लंघन है बल्कि समाज के भीतर अविश्वास और असुरक्षा की भावना को बढ़ाने वाला कदम भी है।
जब यह खबर फैली और छात्रा लापता मिली, तब से ही स्थानीय लोगों के बीच गुस्सा उबाल मार रहा है। भीड़ का गुस्सा पुतला दहन और आगामी प्रदर्शन की घोषणा तक पहुँच गया। यह साफ संकेत है कि जनता का विश्वास पुलिस-प्रशासन और सरकार से कमजोर हुआ है।
2. हिंदूवादी संगठनों की नाराजगी?रामनगर में शहीद पार्क से शुरू हुआ विरोध जुलूस और ‘लव जिहाद’ का पुतला दहन महज एक सांकेतिक घटना नहीं है। यह उस नाराजगी का प्रतीक है जो लंबे समय से पनप रही है।
- सवाल यह है कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार है, मुख्यमंत्री खुद को ‘हिंदू हितों का प्रहरी’ कहते हैं, तब भी आम हिंदुओं को अपने मुद्दों पर सड़क पर उतरकर विरोध क्यों करना पड़ता है?
- क्या सरकार की मशीनरी इतनी कमजोर हो चुकी है कि जनता को न्याय दिलाने के लिए खुद ही ‘बुलडोजर एक्शन’ की मांग करनी पड़े?
3. बुलडोजर की राजनीति?उत्तर प्रदेश में बुलडोजर कार्रवाई कानून-व्यवस्था का एक प्रतीक बन चुकी है। वहीं उत्तराखंड में भी कई बार ऐसे कदम उठाए गए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल बुलडोजर चलाना ही समाधान है?
- बुलडोजर तात्कालिक संतोष जरूर दिलाता है, परंतु इससे समस्या की जड़ खत्म नहीं होती।
- लव जिहाद जैसे संवेदनशील मामलों को केवल बुलडोजर के चश्मे से देखना खतरनाक हो सकता है। यहाँ जरूरत है कानूनी, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर ठोस नीतियों की।
4. कानून और व्यवस्था की नाकामी?इस पूरे मामले ने एक बार फिर से पुलिस और प्रशासन की भूमिका को संदेह के घेरे में ला दिया है।
- अगर छात्रा समय पर सुरक्षित पाई गई तो यह अच्छी बात है, लेकिन सवाल है कि उसे पहले ही कैसे इस जाल में फँसने दिया गया?
- स्कूल-कॉलेजों में बच्चों पर निगरानी क्यों नहीं?
- क्या पुलिस की खुफिया इकाइयाँ ऐसे मामलों पर पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुकी हैं?
हिंदूवादी संगठनों के आक्रोश का असली कारण यही है कि लोगों को लगता है कि पुलिस और प्रशासन केवल कागजी कार्रवाई कर रहा है, जबकि जमीनी स्तर पर समस्या जस की तस बनी हुई है।
5. हिंदूवादी सरकार की असली परीक्षा?जब विपक्ष सत्ता में होता है, तब ऐसी घटनाओं पर सवाल उठाना सहज होता है। लेकिन जब सरकार खुद को हिंदू हितों की रक्षक बताती है, तब इन सवालों का बोझ और भी भारी हो जाता है।
- आखिर क्यों हिंदूवादी संगठन भाजपा सरकार में ही पुतले फूंकने को मजबूर हैं?
- क्यों जनता को लगता है कि सरकार केवल नारों तक सीमित है?
- क्यों आम हिंदू परिवार अपने बच्चों को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं?
यह विरोध केवल एक घटना का परिणाम नहीं है बल्कि एक संदेश है कि जनता अब केवल भाषणों से संतुष्ट नहीं होगी।
6. आगे का रास्ता?रामनगर जैसी घटनाएँ बार-बार दोहराई न जाएँ, इसके लिए जरूरी है कि सरकार केवल बुलडोजर की राजनीति तक सीमित न रहे।
- सख्त कानूनी कार्रवाई: नाबालिग छात्राओं को प्रेमजाल में फँसाने वालों के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो और कड़ी सजा दी जाए।
- शैक्षिक संस्थानों में निगरानी: स्कूल और कॉलेजों में ऐसे मामलों को रोकने के लिए विशेष निगरानी तंत्र विकसित किया जाए।
- सामाजिक जागरूकता: समाज को केवल आक्रोशित करने के बजाय जागरूक करने की ज़रूरत है। माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
- प्रशासनिक जवाबदेही: पुलिस और प्रशासन को ऐसे मामलों में तत्काल और निष्पक्ष कार्रवाई करने की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए।
रामनगर की घटना सिर्फ एक छात्रा का मामला नहीं है, यह पूरे समाज के भविष्य से जुड़ा सवाल है। जब जनता ‘हिंदूवादी सरकार’ में भी खुद को असुरक्षित महसूस करे और पुतले फूंकने पर मजबूर हो, तो यह सरकार के लिए खतरे की घंटी है।
जनता अब केवल नारों और पोस्टरों से संतुष्ट नहीं होगी। बुलडोजर की राजनीति भले ही भीड़ को कुछ देर शांत कर दे, लेकिन जब तक सरकार जमीनी स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाएगी, तब तक आक्रोश और असुरक्षा का यह वातावरण बना रहेगा।
राजनीति और धर्म से ऊपर उठकर यह समय है समाज और सरकार दोनों को आत्ममंथन करने का। अन्यथा आने वाले दिनों में विरोध की यह आग और भी भड़क सकती है।
यह संपादकीय सरकार से सीधा सवाल करता है – जब हिंदूवादी सरकार में भी हिंदुओं को लव जिहाद के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़े, तो फिर सत्ता का असली फायदा किसे मिल रहा है?

